‘न्यूज नेशन’ वाले अब नौकरी नहीं करा रहे, खून पी रहे, देखें पढ़ें इस पत्रकार की राम कहानी!
Sumit Chauhan : अलविदा न्यूज़ नेशन… महज़ महीने भर में ही मुझे न्यूज़ नेशन से अलविदा कहना पड़ा। एक्सिडेंट की वजह से करीब 8 महीने घर बैठने के बाद मैंने बीते 19 मई को ही न्यूज़ नेशन ज्वाइन किया था। इससे पहले इंडिया न्यूज़ में था लेकिन वहां जिस तरह से कर्मचारियों को परेशान किया गया, वो किसी से छिपा नहीं है।
जून के पहले हफ्ते में ही ऑफिस में कोरोना पॉजिटिव केस मिलने शुरू हो गए थे, उसके बाद से ही सबके मन में डर था कि कहीं अगला शिकार हम ना हों क्योंकि रोज़ाना कोई ना कोई पॉज़िटिव केस रिपोर्ट हो रहा था। इस दौरान भी मैं ऑफिस जा रहा था लेकिन Azra की सुरक्षा के लिए खुद को अलग कमरे में बंद रखता था। ऐसे ज़ोखिम भरे माहौल में भी हम तब तक काम करते रहे, जब तक नॉएडा अथॉरिटी ने ऑफिस 24 घंटे के लिए सील नहीं किया। लेकिन अगले दिन से फिर दोपहर बाद काम शुरू हो गया… उस दिन तक मुझे बुखार आ गया था। अगले कुछ दिन में लक्षण दिखे तो डॉक्टर की सलाह पर प्राइवेट लैब में कोरोना टेस्ट भी कराया। मेरा टेस्ट नेगेटिव आया लेकिन लगातार बुखार की वजह से मुझे फोलो अप टेस्ट की सलाह दी गई। इस दौरान भी मैं घर से काम करता रहा… 11 दिन तक मैं एहतियातन एक कमरे में बंद रहा ताकि संभावित खतरे को टाला जा सके। ये आइसोलेशन आपके और आपके परिवार के लिए किसी यातना से कम नहीं है लेकिन फिर भी सुरक्षा के लिए ऐसा करना सबसे ज़रूरी है।
लेकिन कल मुझे अचानक ऑफिस आने के लिए कहा गया, जबकि मेरा दूसरा टेस्ट अभी बाकी है। हवाला दिया गया कि मेरे शो की टीआरपी कम हो गई है इसलिए दफ्तर आना ही होगा। वैसे भी मीडिया संस्थानों के लिए टीआरपी के आगे अपने कर्मचारियों की जान की क्या वैल्यू। बतौर मीडियाकर्मी TRP की एहमियत मैं अच्छे से समझता हूं…हर हफ्ते हमें इन आंकड़ों के साथ अपने काम और नौकरी को जस्टिफाई करने के लिए ज़द्दोजहद करनी पड़ती है। इतने सालों में अलग-अलग चैनलों में कई हिट शो का प्रोड्यूसर रहा हूं लेकिन इस बार मैं TRP को पहले नंबर पर रखने को तैयार नहीं हूं।
क्योंकि संस्थान की ओर से हमें ना कोई हेल्थ बीमा दिया जा रहा है और ना ही लाइफ इंश्योरेंस…मैंने बीते 12 जून को ही HR को मेल करके संस्थान की कोरोना नीति के बारे में जानकारी देने को कहा था लेकिन आज तक उसका जवाब नहीं मिला। मुझे ज़ोखिम भरे माहौल में काम करने से दिक्कत नहीं है लेकिन अपनी और अपने परिवार की ज़िंदगी दांव पर लगाने की एवज में हमें कुछ बुनियादी सुरक्षा ज़रूर मिलनी चाहिए। अगर हम आपके लिए शहीद हो रहे हैं तो कम से कम हमें शहादत का दर्जा तो मिले। हमारे बाद हमारे परिवार वालों के लिए कुछ इंतजाम तो हो।
आप सोच रहे होंगे कि ज्वाइनिंग के वक्त मैंने पॉलिसी के बारे में क्यों नहीं पूछा? दरअसल मेरी ज्वाइनिंग अर्जेंट हायरिंग बेसिस पर हुई थी और पहले दिन से ही मैंने काम शुरू कर दिया था। एचआर टीम घर से काम कर रही थी और आज तक मेरी एचआर में किसी से मुलाकात भी नहीं हुई है। मैंने सारा पेपर वर्क ऑनलाइन ही जमा किया जहां इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। मैंने ऐसा मान लिया कि इस तरह की सुरक्षा सुविधा तो हर चैनल में मिलती है, यहां भी होगी। काम और नई जॉब के प्रेशर में मैं ज्यादा सवाल-जवाब नहीं कर पाया…लेकिन जब दफ्तर में जाना सुसाइड करने जैसा लगने लगा तो मैंने 12 जून को ही मेल कर दिया कि पहले आप मुझे अपनी कोरोना पॉलिसी बताइए… लेकिन जवाब नहीं मिला। अपने सहकर्मियों से पूछने पर पता चला कि कंपनी की ऐसी कोई पॉलिसी नहीं है। मुझसे गलती हुई और मैं अब इस गलती को सुधार रहा हूं।
यहां मैं साफ कर दूं कि मेरे पास पर्सनल लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस है लेकिन उसके लिए मैं हज़ारों रुपये प्रीमियम भरता हूं। मैं मानता हूं कि इस महामारी के वक्त मीडिया संस्थान अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। उन्हें किसी भी कीमत पर TRP चाहिए तो हमें भी बीमार होने पर इलाज कराने और मौत हो जाने पर परिवार को आर्थिक मदद की गारंटी चाहिए। क्या मीडिया कर्मियों को इतनी बुनियादी सुविधा भी नहीं मिलनी चाहिए?
इंश्योरेंस ना होने के अलावा मुझे सबसे ज्यादा सीनियर्स और मैनेजमेंट के रवैये से भी दिक्कत हुई। कोरोना मामलों को लेकर पहले भी मैनेजमेंट ने कर्मचारियों की सुरक्षा से खिलवाड़ किया। एक मेकअप आर्टिस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद भी उसे दफ्तर बुलाया गया। लेकिन अब भी सुरक्षा इंतजाम बहुत अच्छे नहीं हैं और जब भी अपने सीनियर से अपना डर जाहिर करो तो एक ही जवाब…अरे इससे कुछ नहीं होता, बहुत कम लोग ही तो मर रहे हैं। क्योंकि मीडिया के लिए हज़ारों मौतें आंकड़ों से ज्यादा कुछ नहीं है। फिर भले ही हमारी ज़िंदगी भी महज़ आंकड़ा बन कर रह जाए लेकिन शो मस्ट गो ऑन… इसलिए मैंने कह दिया कि आपको आपकी TRP मुबारक और मुझे मेरी ज़िंदगी।
मैं यहां विक्टिम कार्ड नहीं खेल रहा और ना ही मुझे कोरोना से मौत का डर सता रहा है लेकिन नैचुरल मौत और आत्महत्या करने में फर्क होता है। मैं TRP के लिए सारे सिद्धांतों को आग में झोंक देने वाली मीडिया के लिए आत्महत्या नहीं कर सकता। मैं ऐसी मीडिया के लिए नहीं मरना चाहूंगा जिसने मौजूदा वक्त में देश का सबसे बड़ा नुकसान किया है।
मीडिया का मौजूदा स्वरूप भी मुझे लगातार परेशान करता रहा है। हिंदू-मुस्लिम, चीन-पाकिस्तान, बहुजन विरोधी मानसिकता, जातिवाद , जनहित के मुद्दे भटकाना, पॉलिटिकल एजेंडा सेट करना और प्रोपेगेंडा मशीनरी का हिस्सा होना किसी तकलीफ से कम नहीं है। हालांकि मैंने कभी अपने ज़मीर से समझौता नहीं किया और जहां भी मुमकिन हुआ, वहां विरोध जताया। ABP न्यूज़, ZEE न्यूज़ और इंडिया न्यूज़ में काम करते हुए भी मैंने ना कभी सार्वजनिक तौर पर विरोध करना छोड़ा और ना ही कभी आलोचना करने में पीछे रहा। मेरे साथ काम करने वाले और सोशल मीडिया पर मुझे फोलो करने वाले लोग इसे बेहतर जानते हैं। मैंने हमेशा सही और गलत में से सही का चुनाव किया लेकिन बतौर कर्मचारी आपकी सीमाएं होती हैं, आप निर्णायक पद पर नहीं हैं इसलिए दम घुटने लगता है। लेकिन अब मैंने चैन की सांस लेने का फैसला ले लिया है। अब मैं आज़ाद हूं। कल मैंने अपना इस्तीफा सौंप दिया है। अब आगे कुछ नया करेंगे।
युवा टीवी पत्रकार सुमित चौहान की एफबी वॉल से.
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