किसी अखबार का मालिक मर जाए तो सब पत्रकार मिलकर उसकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं… तनखइया पत्रकार की मजबूरियां आप क्या जानें साहब… है तो कड़वा सच… मालिक की मौत की खबर से अख़बार रंग दिए जाते हैं और अगर अख़बार कर्मचारी-पत्रकार की मौत हो तो दो अलफ़ाज़ की श्रद्धांजलि भी उनके अख़बार में नहीं छापी जाती… अख़बार वाले का कोई कार्यक्रम हो, प्रेस की कोई बैठक हो तो जनाब अख़बार से खबर गायब रहती है…..