सत्ताधारी दल द्वारा वित्त पोषित मीडिया जनता को अब शिक्षित नहीं करता, भीड़ का ‘भेड़’ बनाता है!

Girish Malviya : एक वक्त हुआ करता था जब अखबार पत्र पत्रिकाएं लोगों को शिक्षित करने का काम किया करते थे. मुझे याद है डंकल समझौता, गेट समझौते पेटेंट कानून पर लम्बी बहस चलती थी. लगभग सभी लोग इन विषयों के पक्ष विपक्ष में पत्र पत्रिकाओं में अपनी राय रखते थे. अखबार के बीच वाले …

विपक्ष के हर मुद्दे और आरोप पर जवाब देने के लिए न्यूज चैनल एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं!

Ashwini Kumar Srivastava : भाजपा को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती… विपक्ष के हर मुद्दे और आरोप पर जवाब देने के लिए मीडिया ही एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है… अब देखिये, जैसे ही मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके ईवीएम पर अपने आरोपों को दोहराया, ऐन उसी वक्त टीवी चैनलों पर ईवीएम को अभेद्य साबित करने के लिए होड़ मच गयी…

पत्रकारिता के लिए साल का आखिरी दिन चेतावनी भरा रहा, आप लोगों के मरने पर अखबारों में एक लाइन की भी खबर न छपे

: मीडिया को पुनर्जीवित करने का अभियान : मीडिया में अब मामला पेड न्यूज भर का नहीं रहा है। कई अखबार तो खबरें भी उन्हीं की छापते हैं, जो पैसा देते हैं। पूरे के पूरे अख़बार, सप्लीमेंट्स ही पेड हो गए हैं। छोटे- बड़े , कई – कई यही काम कर रहे हैं। चैनलों के ब्यूरो के ब्यूरो खुले आम नीलाम हो रहे हैं। पैसा लाओ , जो छापना है छापो; जो दिखाना है दिखाओ। राजनीतिक दल और सरकारें भी मीडिया को गुलाम बनाने पर तुली हैं। नाहक नहीं है कि प्रेस कौंसिल के चेयरमैन कह रहे हैं कि मीडिया आम अवाम की आवाज दबाने की साज़िश का हिस्सा हो गया है। इस सन्दर्भ में एक रपट…