Vibhor Sharma : तरुण सिसोदिया…यूं नहीं हारना था दोस्त।
उन लोगों के लिए कुछ तथ्य जो ये कह रहे हैं कि तरुण ने एम्स के डॉक्टर्स की वजह से या नौकरी जाने के डर से जान दी, उन्हें जान लेना चाहिए कि…
- तरुण आज भी दैनिक भास्कर का एम्प्लॉयी था। हां, संपादक कुलदीप व्यास जरूर जबरन इस्तीफे के लिए उस पर दवाब बना रहे थे। कॉस्ट कटिंग की वजह से नहीं। दरअसल, अपने चहेते को उन्हें एमसीडी की मलाईदार बीट सौंपनी थी।
- जनवरी में तरुण को ब्रेन ट्यूमर डिटेक्ट हुआ। ये तभी उसे टर्मिनेट करना चाहते थे। तरुण की किस्मत से अचानक मैंने खुद कुलदीप व्यास को फोन कर तरुण की हालत के बारे में बताया। तब कहीं ये टर्मिनेशन रुका।
- ब्रेन की सर्जरी के बाद मई में फिर तरुण को निकालने का प्लान बनाया गया। इसके बावजूद मैनेजमेंट तक शिकायत पहुंची तो उसकी नौकरी बची।
- तत्काल तरुण की बीट बदल दी गई। फिर मानसिक प्रताड़ना का दौर शुरू हुआ। क्योंकि तरुण के रहते एमसीडी की काली कमाई का खेल खुल जाता।
- कोरोना डिटेक्ट होने के बाद जब तरुण ने हॉस्पिटल से फोन कर सूचना दी तब उससे कहा गया। वार्ड में अकेले क्या करोगे। वहीं से खबरें दे दो।
मैनजमेंट नहीं, गुनाहगार वो लोग हैं जिन्होंने उसे रोज प्रताड़ित किया।
ये हादसा नहीं, हत्या है।