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श्रवण गर्ग और नई दुनिया संबंधी मेरी अपील पर एक साथी इतनी तीखी प्रतिक्रिया देंगे, यह कल्पना न की थी : अवधेश कुमार

: यह पत्रकारिता के व्यापक हित के लिए लिखा गया : मेरी एक सार्थक और सकारात्मक अपील पर, जिसकी आम पत्रकारों ने और स्वयं जागरण एवं नई दुनिया के पत्रकारों ने स्वागत किया, हमारे एक साथी के अंदर इतनी तीखी प्रतिक्रिया पैदा हो जाएगी (जो भड़ास पर प्रकाशित है), यह मेरे कल्पना से परे था। लेकिन उनको अपनी प्रतिक्रिया देने की आजादी है। जीवंत समाज में इस तरह बहस होनी भी चाहिए।  पर यहां निजी स्तर की कोई बात न थीं, न है। यह पत्रकारिता के व्यापक हित को ध्यान में रखकर लिखा गया है। इसमें तो सभी खासकर हिन्दी और भाषायी पत्रकारों को प्रसन्न होना चाहिए था।

: यह पत्रकारिता के व्यापक हित के लिए लिखा गया : मेरी एक सार्थक और सकारात्मक अपील पर, जिसकी आम पत्रकारों ने और स्वयं जागरण एवं नई दुनिया के पत्रकारों ने स्वागत किया, हमारे एक साथी के अंदर इतनी तीखी प्रतिक्रिया पैदा हो जाएगी (जो भड़ास पर प्रकाशित है), यह मेरे कल्पना से परे था। लेकिन उनको अपनी प्रतिक्रिया देने की आजादी है। जीवंत समाज में इस तरह बहस होनी भी चाहिए।  पर यहां निजी स्तर की कोई बात न थीं, न है। यह पत्रकारिता के व्यापक हित को ध्यान में रखकर लिखा गया है। इसमें तो सभी खासकर हिन्दी और भाषायी पत्रकारों को प्रसन्न होना चाहिए था।

पता नहीं इन्हें इसमें गलत क्या लगा। मुझे व्यक्तिगत कोई समस्या नहीं है। यह तो एक सुझाव है कि दोनों अखबारों का स्वतंत्र अस्तित्व  रहे, अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद की अनिवार्यता खत्म हो। हिन्दी की गरिमा स्थापित हो। जिस तरह हिन्दी अखबारों में सामान्य रूप से अंग्रजी लेखकों के लेख अनुवादित होकर छप रहे हैं उस तरह अंग्रेजी अखबारों में कभी हिन्दी के लेख अनुवादित होकर नहीं छपते। इसलिए मैंने ये अपील की है।

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दूसरे, नई दुनिया एक समय आदर्श अखबारों में से एक था जिसका अपना गौरवपूर्ण इतिहास है। और वह गौरव अंग्रेजी के लेखकों के छपने से नहीं कायम हुआ था। वही गौरव पुनर्स्थापित हो, ये मेरी कामना है। इसी सोच के तहत ये अपील मैंने अपने फेसबुक पर लिखी थी। इसे व्यापक समर्थन मिला है।  लेकिन जैसा आपने उदाहरण दिया वह आजकल हो रहा है। कंपनी चाहे तो शेयर करे। लेकिन मेरी अपील होगी कि ऐसा न कर, दोनों की स्वतंत्र महिमा बनाने की कोशिश हों। निजी आरोपों का उत्तर देना आवश्यक नहीं, पर लगता है मेरे बारे में साथी को पता नहीं है। मेरा घर न कभी शीशे का था, न है., न होगा। सच तो यह है कि मेरे घर में कोई दरवाजा ऐसा नहीं है जहां से आपको यह पता न चले कि मैं क्या हूं, क्या करता हूं।  

मैं कई कॉलम लिखता हूं और देशभर के अनेक अखबारों में छपता है….सबको मालूम है। ऐसा करते समय जितनी नैतिकता का पालन मुझे करनी चाहिए, उसका सख्ती से करता हूं। जो मुझे छापते हैं उन्हें भी मालूम हैं और सबका मेरे प्रति लगाव, प्रेम और सम्मान वर्षों से यू ही कायम नहीं है। मैं देश का अकेला पत्रकार होउंगा जो 200 के आसपास छोटे अखबारों के लिए मुफ्त में लिखता हंू। कई आंदोलन की, कई संस्थाओं की जो बेहतर काम कर रहे हैं, उनके लिए भी समय-समय पर लिखता हूं। मैं अपनी किसी रचना पर कोई कॉपीराइट नहीं रखता। कोई मेरी सामग्री का उपयोग कर सकता है। ऐसे कई चैनल हैं जो मुझे भुगतान नही करते, पर जाता हूं।

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जहां तक पहचान का प्रश्न है तो लेखन और पत्रकारिता के अलावा गैर दलीय इतने संगठन, आंदोलन, अभियान से अपना जुड़ाव है कि मेरे मित्रों और जानने वालों की संख्या उतनी है जितनी बहुत लोगों को कल्पना भी नहीं होगी। मेरे लिए पत्रकारिता समाज सेवा है, मेरी तपस्या है…..। मैं इसे उतने ही पवित्र भाव से अंजाम देता हूं।  फिर भी इस प्रतिक्रिया के कारण मेरे मन में कोई कटुता नहीं। यह हर व्यक्ति का अधिकार है कि वह अपने नजरिये से मुझे, मेरे काम को, मेरे लेखन को देखे।

लेखक अवधेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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पूरे प्रकरण को समझने के लिए इन शीर्षकों पर क्लिक करें…

जागरण प्रबंधन से अपील, श्रवण गर्ग के बाद नई दुनिया के संपदाकीय पृष्ठ को भी मुक्ति दिलाये

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अवधेश कुमार जी, खुद के घर जब शीशे के हों तो दूसरों पर पत्थर नहीं मारते

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0 Comments

  1. sanjeev singh thakur

    November 27, 2014 at 7:17 am

    Awdesh kumar ji waise to thek likhte hain. Parantu thode pro bjp hain.

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