Awadhesh Kumar : आजकल मैं यह देखकर आश्चर्य में पड़ रहा हूं कि आखिर नई दुनिया में जागरण के छपे लेख क्यों छप रहे हैं। जागरण इस समय देश का सबसे बड़ा अखबार है। उसका अपना राष्ट्रीय संस्करण भी है। जागरण प्रबंधन ने नई दुनिया को जबसे अपने हाथों में लिया उसका भी एक राष्ट्रीय संस्करण निकाला जो रणनीति की दृष्टि से अच्छा निर्णय था। पर उस अखबार को जागरण से अलग दिखना चाहिए।
जब तक श्रवण गर्ग रहे उन्होंने नई दुनिया के संपदाकीय पृष्ठ को ऐसा बना दिया जिसे आम पाठक पढ़ ही नहीं सकता था। उसका पहला लेख केवल अंग्रेजी लेखकों का छपने लगा। इससे उसके परंपरागत पाठक दूर हुए। लोगों ने नाक भौं सिकोड़ी, पर श्रवण गर्ग को कोई असर नहीं पड़ा। अंग्रेजी में ऐसे पत्रकारों के लेख भी छपते रहे जो पत्रकारिता की मुख्य धारा से भी दूर हो चुके हैं। ऐसे भी हैं जिनके पास विषयों की अद्यतन जानकारी नहीं होती। विचार तो होते भी नहीं। कोई क्यों पढ़े उसे।
स्वयं नई दुनिया के बहुसंख्य पत्रकार इसके विरुद्ध थे, पर श्रवण जी का आतंक ऐसा था कि कोई बोल नहीं सकता था। इसलिए वे जैसा चाहे होता रहा। उन्होंने साफ कर दिया कि अंग्रेजी लेखकों का लेख पहला लेख होगा और हिन्दी के कुछ लेखकों का दूसरा। उसमें भी उन्होंने कुछ नामों को वहां प्रतिबंधित कर दिया। इसका कोई कारण नहीं था। इन सबसे नई दुनिया की छवि को, उसके प्रसार को, विश्वसनीयता को भारी धक्का लगा है।
मुझे आश्चर्य होता था कि जागरण के मालिकान श्री संजय गुप्ता, श्री महेन्द्र मोहन गुप्ता आदि कैसे ऐसा होने दे रहे थे। लेकिन अब जब उन्होंने श्रवण गर्ग जी से इस्तीफा ले लिया तो उनके ऐसे गलत निर्णयों को भी बदलना आवश्यक है। जागरण प्रबंधन से मेरी कुछ अपील है। सबसे पहले तो यह आरक्षण तत्काल खत्म होनी चाहिए कि केवल अंग्रेजी के लेखक जो घास भूसा लिख दें उसे ही पहले लेख के रुप में छापा जाए। नई दुनिया की यह तासीर नहीं रही है। इसलिए वह एकीकृत मध्यप्रदेश का सबसे चहेता और विश्वसनीय अखबार था। इसी तरह जागरण के लेखों को छापने से भी परहेज करना चाहिए। पाठक इसे पसंद नहीं कर रहे हैं। नई दुनिया की स्वतंत्र पहचान कायम रहे।
जागरण प्रबंधन को अवश्य इसका इल्म होगा और उम्मीद है तुरत वे इस पर निर्णय करेंगे। जो लोग वहां अभी संपादकीय पृष्ठ पर काम कर रहे हैं उनके पास श्रवण जी के सामने अपनी सोच समझ को अपने तक सीमित रखने के अलावा कोई चारा नहीं था। ऐसा न करने पर उनका कोपभाजन बनते जैसे अनेक लोग बने। लेकिन उनके अंदर भी ऐसी समझ होगी कि उसका संपादकीय पृष्ठ कैसा होना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि उन्हें यदि स्वतंत्रता दी जाए तो वे बेहतर संपादकीय पृष्ठ निकाल सकते हैं जो सर्वसाधारण पाठक के लिए भी पठनीय होगा। इसलिए जागरण प्रबंधन विवेकशील निर्णय ले और नई दुनिया को उसके मूल स्वरुप में लाने के लिए अंग्रेजी के जूठन और जागरण के लेखों से मुक्त करे।
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार के फेसबुक वॉल से.