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मंदी की मार : टेक्सटाइल इंडस्ट्री की हालत तो ऑटो इंडस्ट्री से भी बुरी, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में विज्ञापन छपवाकर लगाई गुहार!

Girish Malviya : एक एक करके सारे सेक्टर्स ढहते नजर आ रहे हैं. परसों तक हमें ऑटो सेक्टर की मंदी की मालूमात थी. कल पता चला कि टेक्सटाइल की हालत तो ऑटो इंडस्ट्री से भी बुरी है. कल इंडियन एक्सप्रेस में टेक्सटाइल इंडस्ट्री की एसोसिएशन की जानिब से दिए गए विज्ञापन में यह दावा किया गया टेक्सटाइल इंडस्ट्री का एक्सपोर्ट पिछले साल के मुकाबले (अप्रैल-जून) करीब 35% घटा है. इससे इंडस्ट्री की एक तिहाई क्षमता भी कम हुई है. मिलें इस हैसियत में नहीं रह गई हैं कि वो भारतीय कपास को खरीद सकें. साथ ही अब टेक्सटाइल इंडस्ट्री में नौकरियां का भी जाना शुरू हो गया है.

टेक्सटाइल इंडस्ट्री करीब 10 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देती है. साथ ही ये इंडस्ट्री किसानों के उत्पाद जैसे कपास, जूट वगैरह भी खरीदती है. यानी अगले साल तक कपास उत्पादक किसान भी इसकी चपेट में आ जाएगा.

लेकिन क्या यह आज अचानक आई समस्या है? नहीं न! दरअसल इस इंडस्ट्री की बदहाली की स्क्रिप्ट सालो पहले लिखी जा चुकी है. टेक्सटाइल उद्योग को भी चीनी सामान बर्बाद कर रहे हैं. दरअसल चीन से कच्चा माल बांग्लादेश जाता है और वहां से वस्त्र के रूप में भारत आता है. चीन सरकार अपने निर्यातकों को 17 फीसदी की निर्यात छूट देती है. इससे चीनी वस्तुएं भारतीय वस्तुओं की तुलना में 5-6 फीसदी सस्ती होती हैं.

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बंगलादेश और भारत में समझौता हो रखा है कि बंगलादेश से आने वाले माल पर जीरो प्रतिशत डृयूटी होगी. टेक्सटाइल इंडस्ट्री का उत्पादन 2018 में गिरकर 37.12 अरब डॉलर रह गया. जबकि वर्ष 2014 में यह 38.60 अरब डॉलर था. यही नहीं, इस दौरान आयात 5.85 अरब डॉलर से बढ़कर 7.31 अरब डॉलर हो गया है.

इसका मतलब है कि जो भी उपभोग बढ़ा, वह आयात के जरिए पूरा किया गया. 2017 में जीएसटी के लागू किये जाने से टेक्सटाइल इंडस्ट्री की कमर टूट गई. बिजनेस स्टेंडर्ड में छपी खबर के मुताबिक कुछेक महीनों को छोड़कर अक्टूबर 2017 से परिधान निर्यात में लगातार गिरावट आई. इसका मुख्य कारण कड़ी प्रतिस्पर्धा, कुछ खास निर्यात प्रोत्साहन का बंद होना और मंदी को बताया गया.

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भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ के अध्यक्ष संजय जैन ने कहा कि जीएसटी के क्रियान्वयन के बाद आयात शुल्क में काफी गिरावट देखी गई है जिसने सस्ते आयात को प्रोत्साहित किया है। इस सबसे लागत पर 6-7 प्रतिशत असर पड़ा जिससे कपड़ा निर्माताओं के मुनाफे को सख्त चोट पहुंची.

यानी एक तरफ यहाँ के लोकल उद्योग को टैक्स लगाकर परेशानी में डाला गया, वहीं इसे तबाह करने के लिए इम्पोर्ट ड्यूटी भी कम कर दी गयी. यह खेल ‘सबका साथ सबका विकास’ करने वाली हमारी मोदी सरकार ने खेला है. वैसे, आप कहते रहिए- नमो नमो!

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इंदौर निवासी आर्थिक विश्लेषक गिरीश मालवीय की एफबी वॉल से.

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1 Comment

1 Comment

  1. Shiraj

    August 24, 2019 at 9:07 pm

    और हम आपका भी धन्यवाद करेगे जो सच को दिखाता है

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