अर्थव्यवस्था में चौतरफा मिल रहे आसन्न संकट के संकेत… नई सरकार के सामने होगी देश को आर्थिक बर्बादी से बचाने की सबसे बड़ी चुनौती…
अच्छे दिन लाने का झांसा देकर सत्ता में आये नरेंद्र मोदी ने पांच साल में ही देश की आर्थिक हालत इस कदर खस्ता कर दी है कि अगली सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती ही यही है कि बुरे दिनों के मुहाने पर खड़े देश को कैसे बचाया जाए …. इसी वजह से मोदी सरकार की चलाचली की बेला में जो आर्थिक आंकड़े भारत की अर्थव्यवस्था के आ रहे हैं, वे साफ इशारा कर रहे हैं कि भारत अब एक आर्थिक मंदी के बेहद करीब पहुंच चुका है… और इसके संकेत चारों ओर से मिल रहे हैं।
मसलन, दिसम्बर के बाद के तीन महीनों में आर्थिक विकास दर 6.6% पर आ गई है, जो कि पिछली छह तिमाही में सबसे कम है। कारों और एसयूवी की बिक्री सात साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। ट्रैक्टर और दोपहिया वाहनों की बिक्री भी कम हुई है। बैंक और वित्तीय संस्थानों को छोड़कर 334 कंपनियों का कुल लाभ 18% नीचे आ गया है। इतना ही नहीं, मार्च में दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने वाले उड्डयन बाज़ार में पैसेंजर ग्रोथ पिछले छह सालों में सबसे कम रहा। बैंक क्रेडिट की मांग भी अस्थिर है।
उपभोक्ता सामान बनाने वाली भारत की अग्रणी कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर ने मार्च की तिमाही में अपने राजस्व में सिर्फ़ 7% की विकास दर दर्ज कराई, जो कि 18 महीने में सबसे कम है। ये सब आंकड़े शहरी और ग्रामीण आमदनी में कमी को दर्शाते हैं और बताते हैं कि मांग सिकुड़ रही है। फसल की अच्छी पैदावार से खेतीबाड़ी में आमदनी गिरी है। बड़े ग़ैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों के दिवालिया होने से क्रेडिट में ठहराव आ गया है, जिससे क़र्ज़ देने में भी गिरावट आई है।
इसका एक बड़ा कारण 2016 में विवादित नोटबंदी भी है, जिसने किसानों पर उल्टा असर डाला। नकदी आधारित भारतीय अर्थव्यस्था में मौजूद 80% नोटों को प्रतिबंधित कर दिया गया। इस झटके ने किसानों के क़र्ज़ पर असर डाला और इसके कारण उन्हें लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ा और ये अभी भी जारी है और कृषि क्षेत्र में लगातार गिरावट आ रही है। इसके अलावा, पिछले पांच सालों में निर्यात में विकास की दर लगभग शून्य के पास रही है।
बहरहाल, नरेंद्र मोदी हों, उनकी पार्टी भाजपा हो या संघ हो या फिर मोदी जी के पढ़े लिखे अंधभक्त हों, कोई भी इन आर्थिक आंकड़ों पर न तो बात करने को तैयार होगा और न ही इसे कोई मुद्दा ही मानेगा। इन सबकी नजर में फिलहाल राष्ट्र और धर्म ही सबसे बड़ा मुद्दा है। इनका मानना है कि मोदी हैं तो राष्ट्र और धर्म सुरक्षित हैं वरना ये खतरे में पड़ जाएंगे। इनका यह भी मानना है कि जब राष्ट्र और धर्म ही नहीं होगा तो आर्थिक खुशहाली लेकर ये करेंगे भी क्या?
जाहिर है, मोदी को राष्ट्र और धर्म का एकमात्र रक्षक मान लेने वाले इन अंधभक्तों के लिए ये आंकड़ें और आर्थिक मंदी का खतरा कोई मायने नहीं रखता। पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे कट्टर धार्मिक मुल्क भी अपने लिए धर्म और राष्ट्र को आर्थिक संपन्नता से बड़ा मुद्दा मानते आए हैं। और अगर इस बार हमारे देश की जनता ने भी आर्थिक मुद्दों को दरकिनार कर बहुमत से मोदी की वापसी करवाई तो इसमें अब कोई संदेह नहीं रह जायेगा कि हमें भी मोदी जी पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे कट्टर मगर आर्थिक रूप से बदहाल मुल्कों की राह पर लेकर जाने वाले हैं. वरना साल 2014 में जब मनमोहन सरकार से मोदी ने देश की बागडोर छीनी थी, तब देश की अर्थव्यवस्था अमेरिका और चीन को पछाड़ने की होड़ में थी। देश की आर्थिक खुशहाली का आलम यह था कि अमेरिका में तो डोनाल्ड ट्रम्प सत्त्ता में आये ही भारत और चीन की बढ़ती आर्थिक व सामरिक ताकत का डर दिखाकर…और खुद चीन भी लगातार भारत की आर्थिक तरक्की से खौफजदा होकर मुकाबले की तैयारी में जुटा हुआ था।
लेकिन दुर्भाग्य देखिये कि देश ने दुनियाभर के आर्थिक जगत में सम्मानित मनमोहन सिंह की सरकार को हटाकर अच्छे दिन के झांसे में आकर एक ऐसी सरकार चुन ली, जिसने आर्थिक नीतियों के नाम पर एक के बाद एक ऐसे फैसले किये, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई। नतीजा यह है कि अब देश अमेरिका और चीन की आर्थिक समृद्धि से टक्कर लेने की बजाय अपने सर पर मंडराती मंदी से खौफजदा है।
उदय शंकर
May 20, 2019 at 12:21 am
वाह क्या ये किसी कोंग्रेसी की हृदय पीड़ा ही है या और कुछ?
ये साहब दिन में सपने देख रहे हैं नई सरकार लाने की, या फिर मोदी भगाने की?
Man
September 9, 2019 at 8:30 am
Sahi hai
Abhishek Kant pandey
May 22, 2019 at 1:23 am
सही लेख