Sanjaya Kumar Singh-
इफको की पोल खोल का असर क्यों नहीं हो रहा है…
इफको को कौन नहीं जानता। जानता मैं भी हूं पर वह खबरों में नहीं रहा। उसकी प्रचारनुमा खबरों में मेरी दिलचस्पी नहीं रही। संयोग से यह देश के कुछ गिने-चुने बड़े संस्थानों में है जिसके लिए मैंने सीधे या किसी एजेंसी के जरिये भी कभी कोई अनुवाद नहीं किया। खबरों से वह ठीक-ठाक चलता सहकारी संगठन लगता है। उसके खिलाफ कोई बड़ी खबर कहीं नहीं दिखी। हाल में इफ्फको अपनी बोरियो के कारण सोशल मीडिया पर छाया हुआ था। दरअसल मोदी जी की तस्वीर, आत्मनिर्भर भारत और भाजपा की पर्याप्त प्रचार सामग्री से युक्त यह बोरी थी तो भारत यूरिया की और इसपर आत्म निर्भर भारत के साथ उद्गम स्थल चीन लिखा था। तब और भी बातें हुई थीं पर अभी वह मुद्दा नहीं है।
भड़ास4मीडिया (bhadas4media.com/) ने हाल में बरेली के पत्रकार रविन्द्र सिंह की किताब, “इफ्फको किसकी” को तीस से ज्यादा किस्तों में अपने पोर्टल पर प्रकाशित किया है। इसके अनुसार, भारत सरकार ने इफ्फको में 290 करोड़ का निवेश कर 70 प्रतिशत हिस्सेदारी अपने पास रखी और 30 प्रतिशत किसानों की थी तथा प्रबंध निदेशक को भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया गया जो वेतनभोगी थे। उर्वरक, कृषि और वित्त मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को निदेशक नामित किया गया था। धीरे-धीरे उनका इसपर कब्जा हो गया और वे अपने हिसाब से चला रहे हैं।
इसके तहत, भारतीय औद्योगिक घराने जब हमेशा देश में ही निवेश को बल देते आए हैं जिससे सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर्ज की जा सके तो इफ्फको ने विदेश में कई परियोजनाएं संयुक्त उपक्रम के तहत चालू की हैं। इसके पीछे मंशा क्या है, पता नहीं। यह मुद्दा कभी संसद में भी नहीं उठाया गया। 2004-05 से पहले वार्षिक आख्या में इफ्फको को घाटे में दिखाया गया था। जब सरकार का अंश धन वापस हो गया तो अचानक 150 करोड़ के फायदे में दिखा दिया गया। फिर भी, गरीब किसान के शेयर (अंश) की कीमत नहीं बढ़ी है।
तीस किस्तों में प्रकाशित किताब में ऐसी कहानियां तो कई हैं पर कार्रवाई कोई नहीं हुई। यही नहीं, 22 अप्रैल 2021 की एक एफआईआर पहले से है तब भी। मीडिया ने इस खबर में कोई दिलचस्पी नहीं ली, सो अलग। एफआईआर में चेयरमैन, उदय शंकर अवस्थी उनके दोनों बेटों – अमोल व अनुपम सहित एक दर्जन लोगों को आरोपी बनाया गया है। भड़ास का आरोप है कि इफ्फको माफिया ने देश विदेश में सक्रिय गैंग के जरिये उसपर साइबर हमला करवा दिया है जो रुक-रुक कर चल रहा है। हमले के खिलाफ शिकायतों पर भी कार्रवाई नहीं हुई है। हालत यह है कि उसने पाठकों से पूछा है कि पोर्टल को चैन से चलाने के लिए क्या इफको सीरिज बंद कर दी जाये।
दूसरी ओर, लगभग साथ-साथ जो 2021 में एफआईआर के बाद की तैयारी हो सकती है, एक और किताब है, द जॉय ऑफ क्राइसिस, आई है। अंग्रेजी में यह किताब अर्नब मित्रा की लिखी हुई है और इसका हिन्दी अनुवाद, ‘संकट की खुशियाँ’ एक ही साथ आया है। इसमें बताया गया है कि कैसे यूएस अवस्थी ने इफको के उदय की पटकथा लिखी। इसके अनुसार संगठन की जरूरतों को हर चीज से पहले रखने की अवस्थी की क्षमता ने इफको को पीएम मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में सक्षम बनाया है, साथ ही एक ज्ञान महाशक्ति, एक विश्वगुरु के रूप में भारत की स्थिति को भी बढ़ाया है।
इस पुस्तक में फोटो वाले कागज के 16 शीट में दोनों तरफ कई तस्वीरें हैं। पहली तीन तस्वीरों में इफ्फको प्रमुख प्रधानमत्री नरेन्द्र मोदी के साथ (2014 में), दूसरी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ और तीसरी केंद्रीय रसायन व उर्वरक मंत्री मनसुख मांडवीय के साथ है। इसके बाद यह समझना मुश्किल नहीं है कि कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है। इसके साथ यह भी माना जा सकता है कि पोल खोलने वाली किताब आई तो प्रचार करने वाली किताब भी आ गई। आप कह सकते हैं कि एफआईआर के बाद (या पहले) हिन्दी के पत्रकार ने पोल खोली तो संस्थान ने पैसों के दम पर प्रशंसा में किताब छपवा ली। सरकार चुनाव जीतने में व्यस्त है।
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