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सुख-दुख

टाइटन ध्वंस की ख़बर मिलते ही काहिल भारतीयों का दार्शनिक स्विच ऑन हो गया!

बिमल कुमार यादव-

टाइटैनिक के अवशेष देखने गए पाँच लोग पहले लापता हो गए फिर काफ़ी खोजबीन के बाद पता चला कि पनडुब्बी के फट जाने से सभी की मृत्यु हो गई। ये पर्यटन बहुत महँगा है और दुनिया के सबसे अमीर ही इसे अफ़्फोर्ड कर पाते हैं।

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जैसे ही यह ख़बर भारत पहुँची, यहाँ लोगों का दार्शनिक स्विच ऑन हो गया और मोह माया धन संपदा जीवन नश्वर क्षणभंगुर आदि इत्यादि पोस्ट सोशल मीडिया पर तैरने लगे हैं। अपने देश में तीन चार पाँच सौ लोग भी इकट्ठे साफ़ हो जाएँ तब भी ये दार्शनिक खिड़की नहीं खुलती। विश्वगुरुअयी हमारे डीएनए में है।


रत्नेश चौधरी-

पागलों ने ही इतिहास रचा है, सयानों ने उसे किताबों में पढ़ा है।

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अभी हाल ही में टाइटैनिक सब मैरीन हादसा हुआ। कुछ लोग टाइटैनिक जहाज जिस जगह डूबा, वहां तक गए ,यह अभियान असफल रहा और वह सभी 5 लोग डूब गए।

इस दुःखद घटना पर सभी लोग अपने अपने ढंग से प्रतिक्रिया दे रहे हैं, अधिकतर लोग इसे 5 अरबपति मूर्खों की सनक कहकर उनका मजाक उड़ा रहे हैं। बहुत लोग कह रहे हैं पागल थे ये सब। वह भी कोई कोई जाने की जगह थी।

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मैं एक घुमक्कड़ के नज़रिए से इस घटना को देखना चाहता हूं।

मानव मन सदैव अज्ञात के प्रति एक खिंचाव अनुभव करता है, ईश्वर ने मानव को जो बुद्धि दी है, वह हर जिज्ञासा शांत करना चाहती है।

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एक घुमक्कड़ को हर नया स्थान आकर्षित करता है, हर घुमक्कड़ अपनी सीमाएं तोड़ कर घूमना चाहता है। यह मानव मन की अंनत अतृप्त जिज्ञासा ही तो है कि वह किसी जगह जाने के लिए कितना ही बड़ा जोखिम ले सकता है।

आप हर घुमक्कड़ को पागल मान सकते हैं।

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मानव को चंद्रमा पर जाने की क्या आवश्यकता है, क्या इतने महंगे अभियान का कोई आर्थिक लाभ भी है, अभी तक तो नहीं, पर जब नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा पर पहला कदम रखा, हम सभी को एक आनन्द अनुभव हुआ, नील आर्मस्ट्रांग भी एक पागल घुमक्कड़ ही हुआ ना।

आप सभी जानते होंगे कि महा घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन ने अपने प्राणों को संकट में डाल कर तिब्बत की यात्राएं की। तिब्बत में विदेशियों के प्रवेश पर प्रतिबंध था, रास्ते में डाकू ,यात्रियों की हत्या कर देते और सामान लूट लेते, इससे बचने के लिये राहुल सांकृत्यायन जी ने साधु वेश धरा, भिक्षुक समान याचनाएँ की। यह सब किसलिए, केवल एक घुमक्कड़ मन की ज्ञान पिपासा की तृप्ति के लिये ना।

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क्या जरूरत थी मनुष्य को अपनी जान जोखिम में डाल कर एवरेस्ट पर चढ़ने की , पर नहीं, मानव भी कभी हार मानता है भला सालों से अजेय एवरेस्ट पर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग ने मानव कदमों की पहचान उकेर ही डाली। इसके बाद आज तक लगातार घुमक्कड़ लोग तमाम जोखिम लेकर उस पर पहुंच ही रहे हैं । यहां तक कि अभी हाल ही में पुणे में रहने वाली एक 6 साल की साहसी बच्ची ने एवरेस्ट के बेस केम्प पर अपने नन्हे कदमों से सफलता की गाथा लिख दी।

घुमक्कड़ सिर्फ पहाड़ की ऊंचाई ही नहीं नापता, वह महासागर की अंनत गहराई तक भी जा सकता है।

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फ्रांस के अर्नोड जिरोल्ड ने 3 मिनिट में 393 फीट गहरे तक समुद्र में डीप डाइव की है। रुकिये रुकिये, उन्होंने इस डाइव में ऑक्सिजन सिलेंडर का इस्तेमाल तक नहीं किया। पागल घुमक्कड़ जो ठहरे।

जर्मनी के Heinz Stücke ने अपनी नौकरी छोड़ दी और साईकल से ही संसार को नापने निकल पड़े। उन्होंने संसार के 195 देश ही अपनी साईकल से घूम डाले। पागल घुमक्कड़ हैं ना भाई।

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और सुनिए भारद्वाज दयाला जो आंध्रप्रदेश से हैं, उन्होंने 18 महीने में 5 महाद्वीप और 14 देशों में अपनी देसी हीरो करिज़्मा बाइक घुमा डाली, वो भी बिना किसी स्पॉन्सर के।

तो भाइयों हां घुमक्कड़ होते ही पागल हैं, कोई पैदल ही निकल पड़ता है, कोई साईकल पर, कोई दंडवत यात्रा कर रहा है तो कोई रिक्शे पर ।

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जब सयाने अपने घर में बैठकर सर्दी गर्मी का हिसाब लगा रहे होते हैं तब एक घुमक्कड़ बाहर मानव के साहस का उदाहरण बन घूम रहा होता है। आखिर पागल ही इतिहास रचते हैं, सयाने तो सिर्फ उसे किताबों में पढ़ते हैं।


संजय ओमर-

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दो दो करोड़ से ज्यादा खर्च करके सिर्फ टाइटैनिक का मलबा देखने और फोटोग्राफी करने के मंतव से अपनी जान गवा बैठे 5 अरबपति, आखरी समय उनका समय कैसा पीड़ा वाला रहा होगा कोई सोच भी नही सकता। और अब “टाइटन गेट” पनडुब्बी में सवार सभी अरबपति आज मृत घोषित कर दिए गए।

उनके पास चाहे कितना ही पैसा था पर आखिरी समय में केवल “जीवित रहने” और धरती पर वापस आने के लिए प्रार्थना कर रहे होंगे।

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जीवन अपने आप में कितना अनमोल है, इसे महत्व दें, इसके लिए आभारी रहें, अपनी ऊर्जा एवं धन को सकारात्मक कार्यों में खर्च करें।

जब आपके पास बहुत ज्यादा पैसा हो तो उलटी सीधी हरकतों के बजाय अपने जीवन का अधिकतम लाभ उठायें गरीबों एवं जरूरतमन्दों की मदद करें..

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Ocean Gate कंपनी पहले ही एफिडेविट ले चुकी थी के अगर इस 8 घंटे के हैरतंगेज टूर में जान चली जाती है तो उसका कोई क्लेम नही होगा।

सोचकर ही रोंगटे खड़े होते है के यह कैसा हैरतंगेज काम था जो लगभग एक सदी पहले डूब चुके टाइटैनिक जहाज का मलबा मात्र देखने का प्रोग्राम था।

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सोचकर देखो उस जगह पर हजार से ज्यादा लोगों की आत्मा भटक रही होगी और यह लोग अब उन्हीं आत्माओं के पास चले गए। अपना पैसा और समय अच्छे कार्यों पर खर्च करे।

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