Kumar Vinod : सोचिए ‘बड़ी ताकत’ का कितना बड़ा डर है! इतनी बड़ी खौफ, कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई भी डर गए. गोगोई के खिलाफ एक महिला ने सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाया है. इस पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी हुई. लेकिन सीजेआई इस आरोप से नहीं डरे. बल्कि उन्होंने आरोपों के बीच अपना नियमित कामकाज करने का हौसला दिखाया.
सीजेआई के मुताबिक महिला का क्रिमिनल रिकार्ड है. इसकी वजह से उसे 4 दिनों तक जेल में भी रहना पड़ा है. यहां तक कि पुलिस भी महिला के व्यवहार को लेकर उसे चेतावनी दे चुकी है. सो डरने की बात ये नहीं. सीजेआई ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि महिला के आरोपों का खंडन करने के लिए मुझे इतना नीचे उतरना चाहिए. लेकिन गोगोई साहब डरे हुए हैं. उस साजिश की भनक की वजह से, जिसमें उन्हें लगता है कोई बड़ी ताकत न्यापालिका और सीजेआई के ओहदे को निष्क्रीय करने में लगी है.
सीजेआई का बयान सुनिए- ‘स्वतंत्र न्यायपालिका को अस्थिर करने के लिए बड़ी साजिश की गई है. जरूर इन आरोपों के पीछे कोई बड़ी ताकत होगी, वे सीजेआई के कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं.’ कही गोगोई साहब के कहने का मतलब ये तो नहीं कि अगले हफ्ते वो कुछ अहम मामलों की सुनवाई करने वाले हैं जिसमें राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना याचिका, पीएम मोदी की बॉयोपिक के रिलीज के साथ-साथ तमिलनाडु में वोटरों को कथित तौर पर रिश्वत देने की वजह से वहां चुनाव स्थगित करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई शामिल है. संतों का समाज तो पहले से ही राम मंदिर पर फैसला नहीं सुनाने की वजह से नाराज थे. जाहिर है उनके समर्थक सत्ता में भी होंगे.
सुप्रीम कोर्ट से अलग रहते हुए भी गोगोई साहब ने देखा होगा कैसे देश की कई तमाम संस्थाओं को ध्वस्त किया गया. या तो उनके नाम बदल गए या फिर अपनी कमान में लेकर पंगु बनाया गया. रिजर्व बैंक, सीबीआई, मीडिया, चुनाव आयोग आदि इसकी मिसाल है. तो क्या अगला नंबर सुप्रीम कोर्ट का है? क्या पता. लेकिन दाद देनी पड़ेगी सीजेआई की हिम्मत का. उन्होंने डंटे रहने का ऐलान करते हुए कहा- ‘मैं इस कुर्सी पर बैठूंगा और बिना किसी भय के न्यायपालिका से जुड़े अपने कर्तव्य पूरे करता रहूंगा।’
सही बात, अगर देश में न्याय की अंतिम उम्मीद जगाने वाला ही डर गया तो फिर समझो हम सब तो तानाशाही के चंगुल में फंसे…
Sanjeev Chandan : दोधारी तलवार है चीफ जस्टिस मामला… दोनों धार स्त्रीवाद की गर्दन पर… सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी ने यौन-उत्पीड़न का आरोप लगाया और सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय बेंच ने इसपर सुनवाई कर इस आरोप को दुर्भावनापूर्ण करार दिया। यह सामान्य खबर नहीं है। अपने बचाव में चीफ जस्टिस ने कहा कि वे बेहद ईमानदार हैं और उनसे ज्यादा बैंक बैलेंस तो उनके चपरासी के पास है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका खतरे में है, इस आरोप के पीछे बड़ी ताकतें हैं।
यह हो सकता है और इसकी पूरी संभावना भी है कि कुछ ताकतें, जो कि स्पष्ट है कि वे कौंन होंगीं गोगोई और न्यायपालिका को स्मूथ चलने नहीं देना चाहती हैं। हो सकता है कि वे कुछ बड़े मामलों की सुनवाई जल्द न हो यह सुनिश्चित करना चाहती हों। ऐसा है तो स्त्रियों के इस कानूनी ताकत का बेजा इस्तेमाल अन्ततः स्त्रियों के खिलाफ जायेगा। यह स्त्रीवाद के खिलाफ एक परिघटना सिद्ध होगी-एक धार तो स्त्रीवाद की गर्दन पर यह हुई। हालांकि हर संभावना सत्य नहीं होती।
अब जिस तरह से तीन जजों वाली बेंच ने इस मामले को सुना जिसमें तीनो ही मर्द थे और उसमें खुद चीफ जस्टिस भी शामिल थे, जिन पर यह आरोप है वह तलवार की दूसरी धार है। वे एक निष्कर्ष पर भी पहुंच गये हैं।
कानूनन इस मामले को कार्यस्थलों पर यौन-उत्पीड़न की तरह देखना चाहिए था। इसे बाजब्ता शिकायत-समिति को देखना चाहिए था। संयोग से अब यौन-उत्पीड़न मामले की सुनवाई के लिए एक समिति सुप्रीम कोर्ट में है भी। अन्यथा 2009 में मैंने आरटीआई डालकर पूछा था कि क्या सुप्रीम कोर्ट में अपने ही निर्देश के अनुरूप यौन-उत्पीड़न की जांच-समिति है? तो वे चुप्प बैठ गये थे। कुल मिलाकर इस की मार स्त्री के पक्ष में हासिल लगातार की बढ़त को ही झेलना है।
कुमार विनोद और संजीव चंदन की एफबी वॉल से.
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