रंगनाथ सिंह-
आज सुबह-सुबह शंभुनाथ शुक्ल सर ने अपनी एक पोस्ट में लिखा, ‘गिरा अनयन नयन बिन बानी’ जिसे पढ़कर मन खुश हो गया। ऐसी सुंदर पँक्तियाँ कोट करने वाली पीढ़ी अब हिंदी में विरल होती जा रही है।
बाबा तुलसीदास की चौपाई है-
देखन बागु कुअँर दुइ आए। बय किसोर सब भाँति सुहाए॥
स्याम गौर किमि कहौं बखानी। गिरा अनयन नयन बिनु बानी॥
प्रसंग यह है कि राम और लक्ष्मण जनकपुर पहुँचे हैं और वहाँ की वाटिका का भ्रमण करने निकले हैं। जाहिर है कि बाबा तुलसी दास के समय तक गोरेपन की क्रीम की वह महिमा नहीं रही होगी, तभी स्याम रंग का बखान किया जा रहा है लेकिन अर्थ का चमत्कार आखिरी अर्धाली में है, जिसका आशय है-
वाणी बोल सकती है तो उसके पास नेत्र नहीं है, आँख उन्हें देखती है तो उसके पास वाणी नहीं है। यानी वाणी और दृष्टि जो ठीक-ठीक महसूस करती हैं उसे अभिव्यक्त नहीं कर सकतीं। दोनों परनिर्भर हैं तो एक के देखने में और दूसरे के कहने में कुछ कमी रह ही जाएगी।
विंटगेंस्टाइन या काफ्का ने यदि रामचरित मानस की यह पँक्ति पढ़ी होती तो हिल गये होते। हिंदी का जीनियस देखना हो तो रामचरित मानस जरूर पढ़ें। भाषा में कहन सीखना हो तो तुलसीदास को जरूर पढ़ें।
शम्भूनाथ शुक्ला- फ़िराक़ साहब ने भी इसी आधार पर लिखा है-
तुम मुखातिब भी हो क़रीब भी हो।
तुमको देखें कि तुमसे बात करें।
अनुराग शर्मा- इसी के बाद तुलसी कहते हैं कि चंद्रमा सी सुंदर सीता जी को जब श्रीराम चकोर की तरह देखने लगे तो जैसे निमि ने भी सकुचाकर पलकें छोड़ दीं और पलकों का गिरना रुक गया। निमि का सबकी पलकों में निवास माना गया है और वे सीता के पूर्वज भी माने जाते हैं तो उन्हें बेटी-दामाद के मिलन में उपस्थित होना ठीक नहीं लगा।
अस कहि फिरि चितए तेहि ओरा। सिय मुख ससि भए नयन चकोरा॥
भए बिलोचन चारु अचंचल। मनहुँ सकुचि निमि तजे दिगंचल॥2॥
ज्योति राय- नायिकाओं के नख – सिख वर्णन तो बहुत हुए हैं । तुलसीदास ने राम का नख – सिख वर्णन किया है जो की बहुत ही दुर्लभ है ।
संदीप तिवारी- मुझे भी यह पंक्ति बहुत प्रिय है। अर्थ के चमत्कार तो तुलसी के यहाँ इतने हैं कि उन्हें गिनना नहीं सम्भव।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
देवेंद्र कुमार- “गिरा अनयन नयन बिनु बानी” को जिगर मुरादाबादी ने एक शेर में इस तरह कहा/रखा है
तेरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं