टेलीविजन भारत में पत्रकारिता का कोई जरिया नहीं रहा है, वह सिर्फ शो करता है!

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उमेश चतुर्वेदी-

उत्तर प्रदेश के माफिया और पूर्व सांसद के मूत्र विसर्जन की लाइव रिपोर्टिंग इन दिनों सवालों के घेरे में हैं..पूरा सोशल मीडिया इसकी लाइव रिपोर्टिंग करने वालों की आलोचना कर रहा है..
आलोचना होनी भी चाहिए..लेकिन यह भी सच है कि आज का दौर टेलीविजन केंद्रित दौर है..बेशक सोशल मीडिया का प्रभाव और प्रसार बढ़ा है..लेकिन आज टेलीविजन जो दिखाता है. उसे ही स्वीकार किया जाता है…आलोचना भी उसी की होती है..

टेलीविजन का असर ही है कि उसके पर्दे पर दिखने वाली औसत प्रतिभाएं भी प्रतिभाशाली, तेज तर्रार और बौद्धिक मान ली जाती हैं…मूत्रकांड को लेकर आलोचना करने वाले भी इसे जानते हैं…वे भी टेलीविजन की इस ताकत को समझते हैं.. इसलिए उनकी भी नजर में बौद्धिक, प्रभावशाली, आदि-आदि वही है, जो टीवी के पर्दे पर नजर आता है..

रही बात टेलीविजन रिपोर्टिंग की..शुरूआती कुछ साल को छोड़ दें तो भारत में टेलीविजन पत्रकारिता का कोई जरिया रहा भी नहीं है..वह सिर्फ शो करता है..टेलीविजन के न्यूज रूमों में भी कार्यक्रमों को शो ही कहा जाता है..पत्रकारिता नहीं..

एक बात और..टेलीविजन के संपादक, भी असल में संपादक नहीं हैं..वे सिर्फ शो मैनेजर हैं..शो का प्रबंधन करते हैं..शो सफल रहे, इसलिए उसमें फिल्मों की तरह वे लटके-झटके भी समो देते हैं..

टेलीविजन की आलोचना करने वालों को शो और पत्रकारकर्म में अंतर समझना होगा. लेकिन ऐसा नहीं होगा.. दर्शक, चाहे प्रबुद्ध हों या सामान्य..वे टेलीविजन के शो के आवरण वाली कहानियों को पत्रकारिता भी समझेंगे, शो मैनेजरों को बड़ा पत्रकार भी मानेंगे और उनके कामों को पत्रकारिता के मानदंड पर भी कसेंगे..
यह सोच ही अपने आप में बेमानी है..आप टेलीविजन के पर्दे पर दिखने वाली समाचारनुमा चीजों, दृश्यों को पत्रकारिता नहीं, शो मानना शुरू कर दीजिए..फिर आपको शिकायत नहीं रह जाएगी..

हां, समाचार जानना है तो अब भी अखबारों और कुछ चुनिंदा वेबसाइटों पर भरोसा कीजिए…

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