कन्हैया शुक्ला-
क्या United news of India के पत्रकारों और कर्मचारियों को बकाया वेतन, ग्रेच्युटी, भत्ते व अन्य कुल मिलाकर 97 करोड़ 38 लाख 45 हज़ार 438 रुपय मिल पाएंगे? इस संस्था के करीब 565 नियमित कर्मचारियों ने फॉर्म डी एवं फॉर्म ई भरकर तथा 80 कर्मचारियों ने ईमेल के जरिये अपने दावे रिसीवर के सामने पेश किए हैं। 72 स्ट्रींगर्स और कॉन्ट्रैक्ट के कर्मचारियों ने भी रिसीवर के सामने अपने दावे पेश किए हैं।
इसके 16 अन्य क्रेडिटर भी हैं जिनमें ईपीएफओ भी शामिल है। इस तरह रिसीवर के सामने कुल 126 करोड़ 78 लाख 68000 ₹309 के दावे पेश किए गए हैं। इस तरह कुल 734 व्यक्तियों और संस्थाओं ने अपने-अपने दावे पेश किए हैं।
गौरतलब है कि एनसीएलटी ने दस साल से आर्थिक संकट में घिरी यू एन आई को “दिवालिया “घोषित कर दिया है और 19 मई को पूजा बाहरी नामक एक महिला को रिसीवर भी नियुक्त कर दिया है।
नियम के अनुसार रिसीवर की नियुक्ति के 15 दिन के भीतर कर्मचारियों और अन्य क्रेडिटर्स को अपने अपने बकाया के दावे पेश करने होते हैं।
रिसीवर को दी गयी दावों कीलिस्ट के अनुसार 15 दिन के भीतर 229 पत्रकारों और कर्मचारियों ने फ़ॉर्म डी भरकर अपना दावा पेश किया है तो शेष 336 कर्मचारियों ने फॉर्म ई भरा है। फॉर्म डी उन कर्मचारियों को भरना होता है जिन्होंने अपनी बकाया राशि को लेकर किसी अदालत में मुकदमा दायर किया है और वे समूह में नहीं बल्कि व्यक्तिगत रूप से दावे के आवेदन कर रहे। इनमें ज्यादातर सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं।
अब सवाल यह है कि क्या कर्मचारियों और अन्य क्रेडिटर्स को यह पैसे मिल पाएंगे या कम्पनी पर ताला लग जायेगा?
एनसीएलटी कानून के जानकारों के अनुसार जब एक बार कोई कंपनी दिवालिया हो जाती है तो उस कम्पनी का बोर्ड भंग हो जाता है और उसके बाद सरकार एक रिसीवर नियुक्त करती है जिसे 6 महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट एनसीईएलटी को देनी होती है जिसमें कंपनी की देनदारी और संपत्ति का हिसाब किताब दिया जाता है।
फिर अखबारों में विज्ञापन जारी कर पूंजी निवेशकों को आमंत्रित किया जाता है कि क्या वह पूंजी निवेश कर इस कंपनी को फिर चलाना चाहता है और अगर कोई पूंजी निवेशक बोली के समय पूंजी लगाने के लिए सामने नहीं आता है तो फिर सरकार उस कंपनी को दिवालिया घोषित कर स्थाई रूप से तालाबंदी कर देती है। उस कम्पनी की सम्पति बेच दी जाती है और उससे कर्मचारियों को बकाया का भुगतान किया जाता है लेकिन यू एन आई का मामला पेचीदा है क्योंकि उसकी अपनी कोई जमीन नहीं और जो सारी जमीनें हैं वे लीज पर हैं और उनके ऊपर दफ्तर बने हैं। इसलिए उस जमीन को बेचा भी नहीं जा सकता है।
दिल्ली में 9 रफी मॉर्ग पर स्थित जो मुख्य कार्यालय है वह जमीन शहरी विकास मंत्रालय की है जिसे खाली कराने का नोटिस सरकार भेज चुकी है लेकिन इस बीच6 महीने का समय अदालत से मिल गया है यानी अदालत अभी परिसर को खाली नहीं करा सकती है।
दरअसल यू एन आई का संकट उस समय शुरू हुआ जब इस जमीन पर सुभाष चंद्रा की गिद्ध दृष्टि लगी और उन्होंने मात्र 32 करोड़ में इसके 51 प्रतिशत शेयर खरीद कर इसके मालिक बन गए लेकिन इस कम्पनी के अन्य शेयर धारक आनंद बाज़ार पत्रिका एनसीएलटी में चले गए और सुभाष चन्द्र मुकदमा हार गए थे। यू एन आई के बाइलॉज में यह लिखा है कि अखबार से जुड़ी हुई संस्था ही इस कंपनी में शेयर खरीद सकती है।
अब जब एनसीएलटी ने कम्पनी को दिवालिया घोषित कर दिया तो इस कंपनी के बोर्ड को भंग कर दिया गया है। अभी कानूनी रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि इस कंपनी के बायोलॉजी भी अब भंग हो गए हैं और कोई गैर मीडिया क्षेत्र से जुड़ा व्यक्ति उसमें पूंजी निवेश कर सकने का अधिकारी है या नहीं। इस कंपनी की रिसीवर इस कानूनी पक्ष का अध्ययन कर रही हैं। इसके बाद ही जब इस कंपनी के लिए बोली आमंत्रित की जाएगी तब पता चलेगा की गैर मीडिया क्षेत्र से जुड़े पूंजीपति इसमें पूंजी निवेश कर सकेंगे या नहीं।
दरअसल पूंजी निवेश वही पूंजीपति करना चाहेगा जिसकी दिलचस्पी 9 रफी मार्ग पर स्थित अरबों रुपए की जमीन को हथियाने में होगी अन्यथा वह क्यों पूंजी निवेश करना चाहेगा जब तक उसके व्यवसाय हित न सधते हो लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि इस अरबों रुपए की जमीन पर ए एन आई और हिंदुस्तान समाचार की निगाह लगी हुई है और यह भी संभव है कि सरकार की मदद से इनमें से किसी को यह जमीन मिल जाये तब ये पूंजी निवेश कर इस जमीन पर कब्जा कर अपना हित साध सकती हैं लेकिन सवाल है कि तब यू एन आई के कर्मियों का क्या होगा?
क्या पहले से चल रहा ए एन आई या हिंदुस्तान समाचार उन कर्मचारियों को अपने यहां रखेंगे या उन्हें उनका बकाया देंगे या नौकरी से बाहर कर देंगे? ऐसे में यू एन आई के कर्मचारियों का क्या होगा अभी कहना मुश्किल है? अगर कोई पूंजी निवेश करने वाला नहीं मिल पाएगा तो फिर 6 माह के बाद इस कंपनी पर ताला लग जाएगा।
अभी हर कर्मचारी का करीब 60 माह का वेतन बाकी है और लोग 15 हज़ार पर नौकरी कर रहे हैं। सेवानिवृत लोगों की करीब 8 या 9 लाख ग्रेच्यूटी और 45 माह की सैलरी बाकी है?
कुछ कर्मचारियों की इस बीच मृत्यु भी हो गई। एक दो कर्मचारी कैंसर से भी मर गए और एक कर्मचारी ने आत्महत्या भी कर ली लेकिन सरकार पर जूं तक नहीं रेंगी …और तो और सरकार ने प्रसार भारती से यू एन आयी को मिलने वाले ₹7 करोड़ सालाना भी बंद कर दिए तथा यूएनआई की उर्दू सर्विस को हर बार मिलने वाले करीब 50 लाख के अनुदान भी उसने बंद कर दिए।
यह सरकार नहीं चाहती है कि यू एन आई चले। प्रधानमंत्री कार्यालय को कई बार पत्र भी भेजे गए। संसद में सवाल उठे लेकिन सरकार ने उसका कोई जवाब भी नहीं दिया। उल्टे जमीन खाली करने का नोटिस भी दे दिया। यह है अपने देश में पत्रकारों की हालत। इस पर कोई बोलने वाला नहीं है और उनकी आवाज भी उठाने वाला कोई नहीं है। चिराग तले अंधेरा इसे ही कहते हैं।
यूएनआई को लेकर अगर आप भी कुछ कहना बताना चाहते हैं तो भड़ास को मेल करें- [email protected]