सत्येंद्र पीएस-
Indian National Congress के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष Ajay Kumar Lallu की प्रेस कॉन्फ्रेंस देखी। यह देखकर समझ में आया कि प्रियंका गांधी की यूपी कांग्रेस पूरी तरह से एनजीओ छाप कम्युनिस्ट छोरों के हाथ चली गई है, जिन्हें राजनीति का ककहरा भी नहीं पता है।
अगर कांग्रेस अपनी बुद्धि से अपनी नीतियों पर चलती, तो इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो कुछ कहा गया, ऐसा कहने और कहलवाने की कवायद न करती। RPN Singh को उनके हाल पर छोड़ देती कि जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी।
लल्लू जी दम भर रहे हैं कि खून का एक एक कतरा राहुल प्रियंका के अहसानों से भरा हुआ है। यह बात सही है। वो जो बने हैं, उसके पात्र नहीं थे। कहा जा सकता है कि आरपीएन की मूर्खता की वजह से बने हैं। ये आरपीएन, लालू, नीतीश टाइप लोग जयललिता या नरेंद्र मोदी की तरह कार्यकर्ता क्यों नहीं चुन पाते, जो खड़ाऊ रखकर भी उनकी पूजा कर सके? मुझे नेता बना देते, मैं आराम से ऐसा करता।
जहां तक लल्लू भैया की बात है, जब लटक झटक कर विधायक बने तो उनके रगों में आरपीएन के अहसानों का खून उसी तरह बह रहा था, जैसा इस समय प्रियंका-राहुल के अहसानों का खून बह रहा है। आगे अखिलेश, मायावती, या केजरीवाल किसी के एहसानों का खून उनकी रगों में दौड़ सकता है।
2022 में यूपी चुनाव में कांग्रेस के बुरी तरह पिटने के बाद लल्लू भाई को बचा पाने वाला आरपीएन अब कोई कांग्रेस में है नहीं। ऐसे में उन्होंने किसी दूसरे के अहसानों का खून अपनी रगों में दौड़ाने के बारे में सोच ही लिया होगा।
कांग्रेस अपनी हरकतों से 2024 के लोकसभा में यूपी चुनाव में अपनी संभावनाओं को पलीता लगा चुकी है, यह देखकर दुःख हो रहा है। इन बेचारों को अब इतनी समझ भी नहीं बची है कि जाति बताने और यूँ ही चोंय चांय करने से ओबीसी वोट नहीं मिलते। उसके लिए मुलायम, लालू, नीतीश बनना पड़ता है और उसमें भी पेंच है कि जरा सा चूके तो ओबीसी उनको उठाकर पटक देता है।
कांग्रेस की यह रवायत नहीं रही है कि अगर कोई नेता पार्टी छोड़कर जाए तो उसे गरियाया जाए। जो जाते हैं, जाएं। यह प्रियंका गांधी ने एक साक्षात्कार में कह दिया है। भाजपा से जाने वालों को भी भाजपा वाले गरियाते नहीं हैं।
वहीं कांग्रेस की यूपी यूनिट को कब्जियाये कम्युनिस्ट लोग इस समय सपा बसपा के फार्म में आ गए हैं। वह बता रहे हैं कि…
- RPN Singh पडरौना के राजा परिवार से हैं।
(एक्सक्लूसिव जानकारी है शायद कम्युनिस्टों के लिए)।
2 कांग्रेस सरकार में मलाई खाई और फिर झारखंड में मलाई खाई ।
(काशीराम और मायावती नुमा आरोप कि मिट्टी में पड़े थे, हमने नेता बनाया, वरना कौन पूछता। यानी कांग्रेसी चोरकट होते हैं और जनता की सेवा के बजाय मलाई खाते हैं और कांग्रेस इसीलिए इन लोगों को 30 साल से पार्टी में रखे हुए थी, जिससे ये लूटपाट करके देश को तबाह करें)।
- उनकी आदत थी कि अपने यहां काम करने वाले नौकरों को पदाधिकारी बनवाने की और पार्टी को बेड़ियों में बांध के रखने की। प्रियंका गांधी जब यूपी की प्रभारी बनीं तो उन्होंने अजय लल्लू को अध्यक्ष बनाया।
(फर्जी बात। आरपीएन खुद इस पक्ष में थे कि कोई ओबीसी चेहरा सामने आए। अब लल्लू की भी परीक्षा है। पहली बार उन्हें आरपीएन के बिना चुनाव जीतकर दिखाना है)। - अजय लल्लू को आर पी एन सिंह नौकर की तरह ट्रीट करते थे। हमेशा ललुआ और गाली से ही उनको बुलाया।
(आरपीएन के पिताजी यह करते रहे हों तो नहीं कह सकता, आरपीएन सौम्य हैं, किसी को तुम तड़ाम नहीं करते)। - अब लल्लू यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष थे। आरपीएन सिंह जैसे तमाम लोगों को यह नई राजनीति रास नहीं आई। एक भूंजा बनाने वाले का बेटा यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष है, जबकि तमाम राजा महाराजा की सेटिंग काम नहीं आ रही है।
(इस भूजा वाले से पूछा जाना चाहिए कि मिट्टी में से उठाकर इनको विधायक बनाने में किसी का योगदान रहा है या नहीं। भूजा वाले ने यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद एक बार भी कहा हो कि आरपीएन हमारे सम्मानित नेता हैं और उनके आशीर्वाद से मैं नेता बना हूँ, ऐसी कोई क्लिपिंग भूजा बाबू की हो तो दिखाई जाए। इन्हें इतना घमंड हो गया कि यूपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनते ही आरपीएन को भूल गए, जबकि आरपीएन का एक भी बयान कभी इनके खिलाफ नहीं आया। जबकि कांग्रेस वाले खुद यह खुलासा कर रहे हैं कि नौकर को उन्होंने विधायक बनवा दिया था, जिसे।प्रियंका जी ने यूपी अध्यक्ष बनाने का महती कार्य किया।) - आरपीएनसिंह की यूएसपी क्या थी। मीडिया का कनेक्शन। दिल्ली के कुछ पत्रकारों के लिए उनका सोफा न्यूज का सोर्स था। ये दिल्ली के पत्रकार आपको नहीं बताएंगे कि ये राजा लोगों का विद्रोह है क्योंकि कांग्रेस का चरित्र बदल रहा है। दरबारी नहीं, मेहनतकश को जगह मिल रही है। इसलिए दरबारियों का सिंहासन डोल रहा है।
(आरपीएन और ज्योतिरादित्य की यूएसपी यह है कि राहुल गांधी के लिए हाथापाई तक करते हुए वीडियो वायरल हो चुका है। ज्योतिरादित्य को एक किताब छूकर फोटो खिचानी थी, उन्होंने कहा कि सोनिया जी से पूछना पड़ेगा। किसी कुत्ते से भी ज्यादा वफादार, जो मालिक की मर्जी के बगैर भूँके भी नहीं। आरपीएन की यूएसपी यह है कि जब इंदिरा गांधी मानसिक रूप से हार गई थीं तो पड़रौना से उन्होंने चुनाव अभियान की शुरुआत की। आरपीएन की यूएसपी यह है कि जब यूपी में खरीद बिक्री से मंत्री बनते थे और एक से एक लड़हेर गुंडा मवाली को लोग मंत्री बनाये रहे थे, आरपीएन कांग्रेस का झंडा थामे बने रहे।
मेरी राय में आरपीएन भाजपा में जाकर महा चुतियापंथी किये हैं, इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है। भाजपा इस समय स्वर्ग है और आरपीएन स्वर्ग के दरवान बन गए। कांग्रेस में कम से कम राजा थे। इनको या ज्योतिरादित्य को चुपचाप बैठना चाहिए था। उचित समय का इंतजार करना था। ज्योतिरादित्य और आरपीएन बहुत छोटे लोगों से खुंदक में कांग्रेस छोड़ गए। लल्लू पंजू (प्रियंका की कम्युनिस्ट टीम) एक दो इलेक्शन के मेहमान हैं। आरपीएन का वरदहस्त न रहने पर लल्लू को Indian National Congress निगल जाएगी, इसमें किसी को सन्देह नहीं करना चाहिए। सपा के चम्मच चेले भी इस मामले में किसी जाति विशेष को गरियाने के बजाए खामोश ही रहें तो शायद सपा के हित में होगा!
खैर… नेता और पार्टी चूल्हे में जाएं, अपन का क्या। शिमला में बर्फ गल रही है, दिल्ली में हड्डी गल रही है। आज दिल्ली में अलाव और ठंड की फोटो आई, यह खुशी की बात है। वर्ना मोदी जी हमेशा कोई टास्क दिए रहते हैं। लोगों को ठंड नहीं लग पाती।
आरपीएन सिंह RPN Singh भाजपा में चले गए। जिंदगी में पहली बार सांसद बने तो कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री बना दिया। हार भी गए तो झारखंड का प्रभारी और राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया।
भाजपा से इनकी क्या डील हुई, यह समझना भी मुश्किल है। अगर पड़रौना हाटा से टिकट के लिए गए हैं (जैसा कि कहा जा रहा है, हालांकि मुझे नहीं लगता कि ये इतने बेवकूफ हैं कि सिर्फ विधायकी के टिकट के लिए भाजपा में जा रहे हैं) और स्वामी प्रसाद मौर्य से हार गए तो मुंह दिखाने लायक भी नहीं बचेंगे। विधानसभा हारने पर भाजपा वाले लोकसभा का टिकट भी न देंगे। टिकट दे भी दिया तो बाबा लोग इनको सिर से पांव तक ताकत लगाकर हरा देंगे, क्योंकि भाजपा वाले कुशीनगर से आज तक बाबा लोगों को ही टिकट दिए हैं, उन्ही का नुकसान होगा।
ज्योतिरादित्य किसी तरह लटक झटक कर मंत्री बन गए, हालांकि भाजपा में देश के 62वें स्तर के भी नेता नहीं हैं जो कांग्रेस में सोनिया कुनबे के बाद दूसरे नम्बर के नेता थे।
और अगर विधानसभा जीत भी गए तो क्या मिलेगा? जोगी बाबा की सरकार में मंत्री? ज्योतिरादित्य तो इतना अमीर है कि मोदी और आरएसएस सिर आंखों बिठाए रखेंगे, आरपीएन का अस्तित्व स्वतंत्रदेव और धर्मेंद्र प्रधान से नीचे की है, उन्हीं ने ज्वाइनिंग करा दी!
कांग्रेस छोड़ने की इनकी भी वही वजह है जो ज्योतिरादित्य की है। या कहें उससे बड़ी वजह। जिसे इन्होंने प्यादे से घोड़ा बनाया वह यूपी कांग्रेस का मुखिया बन गया और कभी इनका नाम भी नहीं लेता। प्रियंका ने उसे सर माथे पर बिठा लिया। इनका एक चेला भाजपा में जाकर इन्ही को लोकसभा चुनाव में रगेद दिया था।
वाह रे कांग्रेस के केंद्रीय गृह मंत्री!
खैर… आपकी जिंदगी है, आपकी मर्जी है। जो चाहें वह करें। नई जिंदगी आपको मुबारक हो।
समाचार चैनलों ने आरपीएन सिंह की जाति खोज निकाली। नासा के शोध से यह पता चला है कि आरपीएन सिंह कुर्मी हैं, इसलिए उनको भाजपा में सम्मान दिया गया है। उनकी ज्वाइनिंग में माठारा सिंह जैसे किसी क्षत्रिय कुलभूषण को नहीं बिठाया गया। उन्हें भाजपा ज्वाइन कराने वाले में धर्मेंद्र प्रधान (स्वघोषित फर्जी कुर्मी, जो उड़ीसा की सबसे बड़ी जमींदार खंडायत जाति से हैं); ज्योतिरादित्य सिंधिया (स्वघोषित फर्जी कुर्मी, जो देश के सबसे बड़े शासक समुदाय रहे मराठा जाति से हैं) अनुराग सिंह ठाकुर (हिमाचल के धूमल जाति के भिजलहा ठाकुर) और एक असली वाले कुर्मी स्वतंत्रदेव सिंह शामिल रहे हैं.
सुनने में आ रहा है कि भाजपा उनकी मां या उनकी पत्नी को विधानसभा टिकट देगी, जैसा कि कुछ चैनलों ने बताया। आरपीएन सिंह की माँ मेरी जानकारी के मुताबिक सिंधी हैं, वह भी देश विभाजन के दौर में पाकिस्तान से भागी हुई।
सोनिया सिंह, जो विवाह के पहले सोनिया वर्मा हुआ करती थीं, उनकी जाति बताई जाए । धोखा नहीं होना चाहिए कि जंता गलत जाति को वोट कर दे.