Satyendra PS : आप को याद होगा कि जब नरेंद्र मोदी सरकार आई थी तो नीम कोटेड यूरिया और फोर्टिफाइड फर्टिलाइजर की खूब चर्चा हुई थी। उस समय यह तर्क दिया गया कि किसान यूरिया का बहुत इस्तेमाल करते हैं। इससे खेत बंजर हो जा रहे हैं।
अनाज में यूरिया का जहर भर जा रहा है। खेत का हेल्थ कार्ड बनेगा। यूरिया के इस्तेमाल को कम करने के लिए उसका दाम बढाया गया। दाम इतना बढ़ा कि खाद का इस्तेमाल कम हो गया। किसानों को दाम कम लगे, इसलिए 50 किलो की जगह कम वजन वाली बोरी लाई गई।
फोर्टिफाइड और नीम कोटेड का क्या हुआ? यह या तो पाकिस्तान बता सकता है, या शाहीनबाग के राष्ट्रद्रोही या टुकड़े टुकड़े गैंग। सरकार तो नहीं बताएगी।
इस बीच आज एक खबर पर नजर पड़ी। सरकार यूरिया के दाम को रेशनलाइज करने जा रही है जिससे खाद का संतुलित इस्तेमाल हो।
रेशनलाइज का अर्थ कम करना या ज्यादा करना दोनों ही होता है। लेकिन परंपरा यह है कि भारत सरकार इस शब्द का इस्तेमाल करे तो उसका मतलब होता है कि दाम बढ़ाने जा रही है।
इस बार भी संतुलित इस्तेमाल वाला ही तर्क है। यह कहा जा रहा है कि सब्सिडी कम्पनी के बजाय सीधे किसान को मिलेगी और सब्सिडी चोरी का पैसा बचेगा, जिससे उनको बढ़िया वाली खाद मुहैया कराई जाएगी।
किसान खाद खरीदेगा। उसके खाते में सब्सिडी आएगी। वह खुश हो जाएगा कि हमारी सरकार कितनी अच्छी है। भारत के इतिहास की पहली सरकार है जो खाते मे पैसे डाल रही है । और सरकार का सब्सिडी पर मिलने वाला पैसा भी बच जाएगा। यह तर्क दिए जाएंगे कि सब्सिडी की चोरी रुक गई। पहले कई हजार करोड़ रुपये की 4 कम्पनियों को सब्सिडी जाती थी और 4 कम्पनी की चोरी सरकार नहीं रोक पा रही थी, अब कई करोड़ किसानों को सब्सिडी देगी और चोरी रोक लेगी, पैसे भी बच जाएंगे। इसीलिए अबकी बजट में खाद सब्सिडी घटा दी गई है।
यह सब उलटबासी लगता है न? फिलहाल भारत माता की जय बोलें। फेसबुक चलाने वाले पढ़े लिखे लोगों को यह समझ मे नहीं आ रहा है तो बेचारा बन चुका किसान क्या समझेगा?
बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र पी सिंह की एफबी वॉल से.