दिलीप मंडल-
भारतीय इतिहास लेखन की सबसे बड़ी समस्या उसमें वैदिक सभ्यता को घुसाने की ज़िद है। दूसरी समस्या तथागत गौतम बुद्ध से बौद्ध धर्म और सभ्यता की शुरुआत मानना है।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सिंह इस बारे में कुछ ज़रूरी सवाल पूछते हैं।
अंग्रेजों के समय में सिंधु घाटी सभ्यता का उत्खनन हुआ। इतिहास की हर किताब बताती है कि मोएनजोदड़ो में बौद्ध स्तूप की खुदाई से सिंधु घाटी सभ्यता का पता चला। हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल, राखीगढी, वडनगर हर जगह शहर मिले। इनमें कई जगह बौद्ध अवशेष मिले। सीधी सड़कें। ईंट के पक्के मकान। गोदाम, स्नानागार, हॉल। पूरी प्लानिंग। लगभग वैसे जैसे आज कल गाँव हैं।
भारत में ज़मीन खोदने पर बुद्ध ही मिलते हैं।
यहाँ से इतिहास लेखन पल्टी मारता है और वैदिक सभ्यता को घुसाया जाता है। सारे लोग सब भूल जाते हैं। ईंट, पक्के मकान, सीधी गली सब भूल कर जंगल चले जाते हैं, गाय चराने लगते हैं और घास फूस की झोपड़ी में रहने लगते हैं!
ये न संभव है, न ऐसा कभी हुआ होगा।
इस समस्या को जान बूझकर बनाया गया है। सच ये है कि तथागत गौतम 28वें बुद्ध थे। इसलिए बौद्ध सभ्यता ही सिंधु घाटी सभ्यता है। या सिंधु घाटी सभ्यता बौद्ध सभ्यता है।
तथागत से पहले से बौद्ध धम्म मौजूद था।
दो, वैदिक सभ्यता जैसी कोई सभ्यता नहीं थी। भारत में संस्कृत कभी नहीं बोली गई। सारे लोग कभी झोंपड़ी में रहने नहीं गए। पक्के मकान बनाना हमेशा जारी रहा। ईंट बनाना लोग भूल नहीं सकते। कुछ गरीब झोंपड़ी में भी रहते ही होंगे।
तरह तरह के लोग आते जाते रहे होंगे। लेकिन घर बनाना आदमी कैसे भूल सकता है।
प्रेम सिंह सियाग-
हड़प्पा व मोहनजोदड़ों की खुदाई में मिले अवशेषों को देखकर लगता है कि उस समय ईंटों के मकान,बड़े-बड़े गोदाम व स्नानागार बने हुए थे।पानी निकासी की उत्तम व्यवस्था थी।उन्नत नगरीकरण था।लोथल के बंदरगाह से लेकर मृण्मूर्तियाँ बता रहे है कि व्यापार उन्नत अवस्था मे था।
उसके बाद भी लगातार साकेत,नालंदा से लेकर तक्षशिला तक भव्य इमारतें बनी हुई नजर आती है।यही भारत का असल व सतत इतिहास है।
कल्पना करो बाहर से एक चूण मंगतों की टोली आई!कुछ लाल जिल्द की किताबें लाई गई!एक विचित्र भाषा मे कुछ मंत्र जपने शुरू किए और एक लंबे समय से चली आ रही उन्नत सभ्यता जंगलों में कूच कर गई और घास-फूस की टाट में रहने लगी!जिसे वैदिक युग कहा गया।जिसका जमीन पर कोई प्रमाण नहीं मिलता।
दरअसल वैदिक युग जैसा कालखंड भारतीय इतिहास में कभी रहा ही नहीं।अंग्रेज लोग भारत की उन्नत सभ्यता पर लंबे समय तक कब्जा नहीं रख सकते थे इसलिए सांस्कृतिक संक्रमण करने के लिए संस्कृत भाषा ईजाद की और थाइलैंड के लोगों को प्रचारक बनाया गया।कपोल-कल्पित कहानियां गढ़ी गई और भारत पर थोपना शुरू किया।अंग्रेज चले गए लेकिन अंग्रेजों के गुलाम थाईलैंडी चूणमंगते आज भी बची-खुची कहानियां भारत की जमी पर उकेर रहे है।
मैक्समूलर महाराज की जय हो।
Comments on “भारत में ज़मीन खोदने पर बुद्ध ही क्यों मिलते हैं?”
बुद्ध कोई भगवान नही है वो तो अन्य भिक्कूओ के समान ही एक मानव था जिसके पूर्वज सनातनी क्षत्रिय थे।
तू एक नंबर का गधा है । यदि शास्त्रार्थ ही करना है तो आमने सामने कर। ऐसे बरगलाने से तुझे कुछ नहीं मिलने वाला। तुम जैसे लोग जबतक रोज की सौ गाली सनातन संस्कृति को नहीं देते तब तक नींद भी नहीं और न ही भोजन पचता है।
राम 11 वी सदी में थाईलैंड में हुवा था । जिसके किस्से यूपीमे तुलसीदास और वाल्मीकि ने कॉपी किये ।
विष्णु , कम्बोडिया का एक बौद्ध राजा था ।
कृष्ण देवगिरी में 11 वी सदी में हुवा जिसे विठ्ठल भी कहते है ।