बलिया के भीमपुरा थाने की कार्यशैली व मेरी गिरफ्तारी (पार्ट-2)
थाने के ऑफिस में मुझे बिठा दिया गया. वैसे तो पूरे थाने का स्टाफ मुझे जानता है और सब जानते हैं कि मैं ईमानदार आदमी हूँ. इसलिए कोई बदतमीजी से बात नहीं करता, और न ही किसी ने की. थोड़ी देर के बाद फिर SO भीमपुरा सत्येंद्र राय थाने के ऑफिस में आया और अपने स्टाफ से बात करने लगा. वो बोल रहा था- ‘ये आदमी तो सही है मगर इसका व्यवहार सही नहीं है’. तब जवाब में मैंने कहा- “‘तो क्या करूँ, आपके पाँव पकड़कर माफ़ी मांगू, तब आपको सही लगेगा? आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मैं बेक़सूर हूँ. फिर भी जो आपने मेरे साथ किया है, अच्छा ही किया है.”
थोड़ी देर बाद मेरी पत्नी आईं और पुलिस से बोलीं कि इन्हें क्यों बंद किये हैं? इन्होंने क्या गलती की है? SO सत्येंद्र राय फिर गरम हो गया. वर्दी की गरमी थी. मुंशी को चिल्ला कर बोले- ‘महिला कांस्टेबल को बुलाओ और इस भोसड़ी को बाहर निकालो.’ एक महिला कांस्टेबल आई और मेरी पत्नी को बाहर लेकर चली गयी. शाम तक मेरी पत्नी, मेरा भाई व मेरे दूसरे दोस्त थाने में बैठे रहे, इस इंतजार में कि शाम तक पुलिस वाले मुझे छोड़ देंगे तो साथ लेकर घर जाएंगे. पर ऐसा हुआ नहीं. उन लोगों ने मुझे नहीं छोड़ा. मैंने घर वालों को बोला कि इन लोगों ने जो किया है, ठीक किया है, 2-4 दिन में मेरी जमानत हो जायेगी, फिर मैं आकर इन्हें बताता हूँ.
शाम को मेरे भाई सतीश को मेरा मोबाइल व लैपटॉप वगैरह सुपुर्द कर दिया गया. दरोगा केके त्रिपाठी ने सुपुर्दगीनामा बनाया. शाम तक दूसरे मामलों में बहुत सारे आदमी पकड़ कर थाने लाये गए. ये लोग अहिरौली गाँव के थे. उनके बीच शायद मारपीट का मामला था. शाम को सब इंस्पेक्टर केके त्रिपाठी ने चाय मंगाई. 10-12, जितने भी आदमियों को बंद किया हुआ था, सबको चाय दी. बाद में दूसरे बंदी मुझे बोले कि चाचा जी, आपकी वजह से ये हमें चाय मिल रही है, नहीं तो पुलिस हमें क्या चाय पिलाएगी?
अँधेरा हो गया. पुलिस ने कहा खाना वगैरह मंगा लीजिये. मैं बोला – खाना मैं नहीं मँगाऊँगा, आपकी हिरासत में हूँ. अब आप मुझे खाना खिलाएं या भूखे सुलाएं, ये आपकी मर्जी है. दरोगा त्रिपाठी जी बोले- कोई बात नहीं, मेस से खाना मिल जाएगा आपको. कुछ बंदियों के घर से खाना आ गया था. कुछ के नहीं. जिनका खाना नहीं आया, वो परेशान थे. वो बोले- चाचा जी हमारे खाने के लिए भी बोलिये. मैंने मुंशी को बोला- भाई इनमें से कुछ के पास खाना नहीं है. पुलिस वालों ने खाना मंगवाया, मेरे लिए भी और उनके लिए भी, जिनके पास खाना नहीं था. खाना खाने के बाद मैं SI त्रिपाठी जी को बोला- सर मेरी दवाई मंगवा दीजिये, घर से, दवाई नहीं छूटनी चाहिए. उन्होंने घर पर फोन लगाया और थाने में मेरी दवाई पहुंचाने के लिए बोले. मेरी पत्नी बोलीं- घर में कोई है नहीं, आप आकर दवाई ले जाइये. त्रिपाठी जी घर गए और दवाई ले आये. रात को हम लोग वहीँ ऑफिस में ही सो गए. सीमेंट की बेंच थी. मैं उसी पर सोया. बाकी लोग नीचे ही कम्बल बिछाकर सो गए.
सुबह हुई. मेरी पत्नी भीगे हुए चने लेकर आयीं थीं क्योंकि सुबह मैं वही खाता हूँ. मैंने चने खाये व पत्नी को बोला- ”बिलकुल परेशान होने की जरुरत नहीं है, मैं बेगुनाह हूँ तो कितनी दिन तक अंदर रख पाएंगे ये लोग. जज के सामने पेशी होगी तो मैं उनको सच्चाई बताऊंगा.” वो मेरा मोबाइल लेकर आई थी. मैं जीवन में पहली बार पुलिस हिरासत में था. जिंदगी में पहली बार यह सब देख-झेल रहा था. मैंने उससे मोबाइल ले लिया और उनको बोला- तुम लोग घर जाओ और मेरे बारे में बिलकुल भी चिंता मत करना. मैं थाने के ऑफिस में बैठा हुआ फेसबुक पर ही कुछ कमेंट्स के जवाब दे रहा था. तभी सतेंद्र राय आया और वो मेरे हाथ में मोबाइल देखकर भड़क गया. बोला- कौन दिया आपको मोबाइल? मैं बोला- मेरी पत्नी दे गयी है. उसने फिर से मोबाइल मुझसे ले लिया और मुंशी को दे दिया. मैंने उसको बोला- मोबइल का कोई डाटा डिलीट नहीं होना चाहिए. थानेदार ने कहा कि बेफिक्र रहिये, सब सेफ रहेगा.
दोपहर बारह बजे के बाद मुझे बलिया कोर्ट के लिए ले गए. PHC नगरा में मेरा मेडिकल चेकअप कराया गया. मैंने डाक्टर को अपनी बीमारी के बारे में बताया. उन्होंने मेडिकल रिपोर्ट पर लिख दिया और कॉन्स्टेबल को भी बोले कि जेल के डाक्टर को बता देना, इनकी दवाई मंगवा लेंगे, एक दिन भी दवाई मिस नहीं होनी चाहिए. मुझे कोर्ट ले जाया गया. मगर मुझसे पहले ही मुझ पर छेड़छाड़ का फर्जी आरोप लगाने वाली महिला को कोर्ट में पेश कर उसका बयान आर्डर करवाया जा चुका था. जब मुझे ले गए तो कोर्ट ने मेरा 14 दिन का रिमांड लेटर बना दिया था. कोर्ट में ना तो मुझे जज के सामने पेश किया गया और न ही मेरा कोई बयान दर्ज हुआ. इसके बाद मुझे जेल भेज दिया गया.
बलिया जेल में एंट्री वगैरह करने के बाद जेल के हॉस्पिटल में ले गए. उनको मेडिकल का पर्चा दिया. एंट्री करने के बाद उन्होंने मुझे एक आदमी के साथ भेज दिया, बोले- इनको 7 नंबर बैरक में छोड़ आयो. वो आदमी मुझे 7 नंबर बैरक के गेट तक ले गया और बोला- यहीं अंदर आप भी कहीं बैठिये या घूमिये. बैर नंबर 6, 7 व 8 एक ही कंपाउंड में थे. मेरे लिए ये सब बिलकुल ही नया था. मगर किसी चीज से मुझे घबराहट बिलकुल भी न थी.
पीड़ित सिंहासन चौहान की जुबान में आपबीती सुनने के लिए नीचे दिए video को प्ले करें…
…जारी….
सिंहासन चौहान बलिया के सोशल एक्टिविस्ट और आरटीआई कार्यकर्ता हैं. बलिया के भीमपुरा थाने के थानेदार सत्येंद्र कुमार राय की दल्लागिरी के चलते उन्हें दो महीने से ज्यादा वक्त तक फर्जी मुकदमें में जेल में रहना पड़ा. सिंहासन चौहान जेल से छूटने के बाद सिलसिलेवार ढंग से अपनी कहानी भड़ास4मीडिया पर बयान कर रहे हैं.
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