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खुला पत्र लिखकर वीर विक्रम बहादुर मिश्र ने खुद को यूपीएसएसीसी के मुख्य चुनाव अधिकारी पद से अलग किया

मेरे साथियों, राजनीति के क्षेत्र में न केवल हमारा प्रदेश उत्तर प्रदेश अगुआ है बल्कि पत्रकारिता जगत में भी यह अग्रणी रहा है। उत्तर प्रदेश ने देश को न केवल बड़़े-बड़े नेता दिए हैं बल्कि मूर्धन्य पत्रकार भी दिए हैं। पत्रकारिता की इस विरासत को सहेजने की जिम्मेदारी  हम साथी पत्रकारों के ऊपर है। अब लगता है कि हम अपनी इन जिम्मेदारियों से कुछ भटक गए हैं। जब उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति की ओर से मुझे मुख्य चुनाव अधिकारी नामित किया गया था तो मुझे विश्वास था कि मैं सभी पक्षों से बातचीत कर सर्वसम्मत  और एक साथ चुनाव करवा लूंगा। परंतु मेरी कई कोशिशों के बाद भी जो परिस्थितियां बनी हैं उससे मैं स्वयं को विफल होता देख रहा हूं।

मेरे साथियों, राजनीति के क्षेत्र में न केवल हमारा प्रदेश उत्तर प्रदेश अगुआ है बल्कि पत्रकारिता जगत में भी यह अग्रणी रहा है। उत्तर प्रदेश ने देश को न केवल बड़़े-बड़े नेता दिए हैं बल्कि मूर्धन्य पत्रकार भी दिए हैं। पत्रकारिता की इस विरासत को सहेजने की जिम्मेदारी  हम साथी पत्रकारों के ऊपर है। अब लगता है कि हम अपनी इन जिम्मेदारियों से कुछ भटक गए हैं। जब उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति की ओर से मुझे मुख्य चुनाव अधिकारी नामित किया गया था तो मुझे विश्वास था कि मैं सभी पक्षों से बातचीत कर सर्वसम्मत  और एक साथ चुनाव करवा लूंगा। परंतु मेरी कई कोशिशों के बाद भी जो परिस्थितियां बनी हैं उससे मैं स्वयं को विफल होता देख रहा हूं।

मेरी पहल को कुछ वरिष्ठ साथियों ने स्वीकार करते हुए उत्साह पूर्वक समर्थन दिया था। परंतु कुछ साथियों की परस्पर टकराहट, उनमें पैदा हुई खटास से उपजे आक्रोश और उनके आरोप प्रत्यारोप सुनकर मैं बहुत व्यथित हूं। मेरी दृष्टि में कोई शरीर से अथवा आयु से बड़ा नहीं होता, बड़ा उसका बड़प्पन होता है। वरिष्ठ साथियों में क्षमाशीलता हो, कनिष्ठ साथियों में उनके प्रति सम्मान  की वृत्ति हो तभी कोई संगठन जीवित रह सकता है। मैं चाहता था कि भूत की बातों पर विराम दिया जाता और भविष्य को देखते हुए वर्तमान की चिंता की जाती तो मेरा प्रयास ज्यादा सार्थक साबित होता। परंतु आश्चर्य होता है कि मेरे कुछ साथियों के ऊपर भूत इतनी गहरी सवारी गांठ चुका है कि हम उससे पीछा रही नहीं छुड़ा पा रहे हैं। हम अगर बड़े हैं और सोच बड़ी नहीं है तो किस बात के लिए बड़े हैं। किसी की लाइनें हैं—‘‘रकवा हमारे गांव का मीलों हुआ तो क्या , रकवा हमारे दिल का दो इंच भी नहीं।’’

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हमारा हृदय विशाल होना चाहिए। सभी साथी हमारे ही साथी हैं, हमारे कुटुक्वब के सदस्य हैं। कुटुक्वब के सदस्यों की सोच, उनकी जीवनशैली होती अलग-अलग जरूर है पर वे रहते एक ही कुटुंब में हैं। अपनों में अपना खोजने की प्रवृत्ति से ही कुटुंब में बिखराव होता है, इसी से समाज टूटता है। हमारी अपेक्षा थी कि इस वृत्ति  का परित्याग कर ‘हम सबके और सब हमारे’ की वृत्ति  प्रोत्साहित होगी। परंतु मुझे बड़ी पीड़ा है कि इस वृत्ति   को प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। हमारा व्यन्न्तिगत अहम इसमें बाधक बन रहा है। किसी शायर की लाइनें हैं—- ‘‘आइने ने किसी सूरत को अपनाना नहीं सीखा, उसकी यही अकड़ उसे चकनाचूर करती है। ’’

किसने क्यों क्या किया, अबतक क्यों क्या नहीं हुआ, यह समय इसके विश्लेषण का नहीं है, बल्कि इस समय को अच्छे ढंग से सदुपयोग करने का है। हम जिस दोराहे पर खड़े हैं, हमारे निर्णय दूरगामी प्रभाव डालेंगे। हम एक से दो में बंटेंगे तो इसकी क्या गारंटी है कि आगे और टुकड़े नहीं होंगे। फिर हम अपने नए साथियों को क्या  संदेश देंगे? क्या   होगा इस पत्रकारिता के पवित्र पेशे का जिसके संरक्षण का दायित्व हम सबका ही है। हम प्रदेश की राजधानी की प्रतिष्ठिïत पत्रकार बिरादरी के सदस्य हैं। हमारे आचरण पर प्रदेश के जनमानस की नजर है। हमें अपनी मर्यादा पर ध्यान केन्द्रित करना होगा और इसकी गरिमा के संरक्षण के लिए हर तरह का प्रयास करना होगा। हमारे आपस के झगड़े चर्चा का विषय नहीं होने चाहिए थे। संभवत: बशीरबद्र का ही यह शेर है जिसकी कुछ लाइनें मैं पेश करता हूं– मैं अमन पसंद हूं मेरे शहर में दंगा रहने दो, मुझे धड़ों में मत बांटो मेरी छत पर तिरंगा रहने दो।

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मैं बेचैन हूं। अपने जिन साथियों की पारस्परिक मुस्कान से मैं ऊर्जा ग्रहण करता रहा हूं, उनमें आपसी आक्रोश, परस्पर टकराहट देखकर मुझे बहुत पीड़ा हुई है। हम तो अपना समय बिता चुके। हमें चिंता अपनी युवा पीढ़ी की है जिनके हम स्वाभाविक रूप से मार्गदर्शक हैं। उनकी नजरें हमारे प्रयासों पर टिकी हुई हैं, वे बड़ी आतुरता से हमारी एकता की प्रतीक्षा कर रही हैं। हम अपने लिए नहीं, उनके भविष्य के लिए एकजुट हो जाएं। पत्रकारिता के क्षेत्र में कोई बड़ा छोटा नहीं होता, सब बराबर होते हैं। कई बार बड़ों की अपेक्षा छोटे ज्यादा समझदार साबित होते हैं। हमारा भविष्य भी इसी में सुरक्षित है कि छोटे हमसे ज्यादा समझदार साबित हों। मैं सारी परिस्थितियों को देखते हुए उत्तर प्रदेश राज्य मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के मुख्य चुनाव अधिकारी की भूमिका से स्वयं को पृथक करता हूं। क्योंकि  मैं अपनों में अपना सोचने की वृत्ति नहीं रखता हूं। मेरे सब मेरे हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीमद रामचरितमानस में लिखा है— ‘‘उमा जे राम चरन रत विगत काम मद क्रोध। निज प्रभुमय देखहिं जगत केहिसन करहिं विरोध॥’’

सादर
दिनांक  
26 अगस्त, 2015                                                  
वीर विक्रम बहादुर मिश्र
3/8 कैसरबाग आफीसर्स कालोनी
लखनऊ।

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