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सुख-दुख

इंसान की इस दुनिया में क्या जरूरत है?

हिमांशु कुमार-

इस दुनिया में हर जीव की कोई ना कोई जरूरत है. मधुमक्खियों के बिना फसल नहीं होगी चीटियों की जरूरत है ताकि वह सफाई कर सकें.

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सूअर की जरूरत है कुत्तों की जरूरत है भेड़ियों की जरूरत है. हाथियों की जरूरत है शेरों की भी जरूरत है सांप की भी जरूरत है. लेकिन इंसान की इस दुनिया में क्या जरूरत है यह कोई नहीं बता सकता. इंसान के पैदा होने से पहले यह दुनिया मौजूद थी और इंसान के खत्म हो जाने के बाद भी यह रहेगी.

इंसान ने इस दुनिया को लड़ाइयां दीं झूठ और नफरत दी. धरती पर लकीरे बनाकर अलग-अलग देशों के नाम पर बंटवारा किया. दूसरे को गुलाम बनाकर खुद को अमीर बनाने की हवस में इंसान हथियार बनाने और दूसरों को मारने की तरफ चला.

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इंसान आज दुनिया में सबसे ज्यादा पैसा इंसान को मारने के लिये इस्तेमाल होने वाले हथियार बनाने के लिए करता है. पर्यावरण का नुकसान किया नदिया गंदी करी समुंदर में कचरा डाला पेड़ काटे दुनिया के मौसम को गड़बड़ा दिया.

इसके बावजूद इस मूर्ख इंसान को वहम है कि मैं अशरफ उल मखलूक हूं यानी दुनिया के सभी जीवों में सबसे श्रेष्ठ हूँ. इंसान जानता है कि वह बेहद बेकार का जीव है. इसलिए वह महत्वपूर्ण बनने के लिए पूरी जिंदगी उछल कूद करता रहता है.

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कभी कहता है मेरी इज्जत इसलिए करो क्योंकि मैं इस मज़हब को मानने वाला हूं कभी कहता है मेरी इज्जत इसलिए करो क्योंकि मैं इस जात में पैदा हुआ हूं.

कभी कहता है मेरी इज्जत इसलिए करो क्योंकि मेरी चमड़ी का रंग सफेद है कभी कहता है मेरी इज्जत इसलिए होनी चाहिए क्योंकि मैंने इस देश में जन्म लिया.

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लेकिन इंसान की सारी कसरत अपनी उस गहरी समझ से पैदा होती है जिसमें अपने भीतर उसे पता है कि वह बिल्कुल बेकार का जीव है.

सिर्फ प्रेम ही इंसान को पहली बारी एहसास कराता है कि उसका इस संसार में कोई महत्व है वह किसी के लिए महत्वपूर्ण है कोई उसे चाहता है उसके होने या ना होने से किसी को तो कोई फर्क पड़ता है.

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लेकिन घमंडी इंसान उस प्रेम पर भी लूटमार डाकाजनी करना चाहता है. वह कहता है मेरी बेटी किस से प्रेम करेगी यह मैं तय करूंगा मेरी बीवी मेरे अलावा किसी की तरफ नहीं देखेगी यह मेरा अधिकार है मेरी मां मेरे बाप के अलावा किसी से प्रेम नहीं कर सकती.

मेरी बहन किस से प्रेम करेगी यह भी मैं तय करूंगा. इंसान औरतों पर कंट्रोल करना चाहता है बच्चों पर कंट्रोल करना चाहता है जात के नाम पर अमीरी और गरीबी के नाम पर दूसरे इंसानों को कंट्रोल करना चाहता है.

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इंसान की सारी घटिया सोच उसके गहरे डर और उसकी महत्वहीनता यानी एहसास ए कमतरी से निकलता है. एहसास ए कमतरी यानी हीन भावना से निकली हुई सोच ने इंसान को बहुत डरपोक और दुखी बनाया है इसी में से उसकी हिंसा और क्रोध निकली है.

जब तक इंसान वास्तविक तरीके से सोचना शुरु नहीं करेगा और अपनी कमजोरी और हालत को मजहब का चश्मा उतार कर नहीं देखेगा तब तक इस दुनिया में कोई सुख और कोई शांति नहीं आ सकती.

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