मूर्ति के नीचे लिखा हुआ है – “यस यू कैन!”

Share the news

अशोक पांडेय-

लड़का अपने स्कूल की फुटबॉल टीम का कप्तान था. लड़की चीयरलीडर्स की मुखिया. दोनों में मोहब्बत होती है और वे कुछ ही समय बाद शादी कर लेते हैं. यह 1961 का साल था. डिक हॉइट और जूडी लेटन की इस दास्तान ने फकत एक मामूली प्रेमकथा बनकर रह जाना था अगर शादी के अगले बरस जन्मा उनका बेटा एक गंभीर बीमारी लेकर पैदा न हुआ होता.

डाक्टरों ने उन्हें राय दी कि वे अपने बेटे को भूल जाएं और उसे किसी मेडिकल रिसर्च संस्थान को दान कर दें क्योंकि बच्चा जीवन भर चल-फिर या बोल सकने वाला नहीं था. डिक और जूडी ने ऐसा नहीं किया. वे उसे घर लेकर आए और उसका नाम रिक रखा. उन्हें उम्मीद थी उनका बच्चा कभी न कभी उनसे किसी तरह का संवाद कर सकेगा.

जूडी ने कड़ी मशक्कत के बाद बच्चे को इस लायक बना दिया कि वह संख्याओं और अक्षरों को पहचान सके. रिक 11 बरस का हुआ तो माँ-बाप ने टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के वैज्ञानिकों से मदद माँगी. काफी मेहनत के बाद वैज्ञानिक रिक के शरीर को एक ऐसे कम्प्यूटर से जोड़ पाने में कामयाब हुए जिसके कर्सर को वह अपने सर से छूकर नियंत्रित कर सकता था.

आखिरकार रिक संवाद स्थापित कर सकने में सफल हुआ. उसने स्कूल जाना भी शुरू कर दिया था. स्कूल में एक चैरिटी रेस होने वाली थी. रिक ने उसमें भाग लेने की इच्छा जाहिर की.

शारीरिक रूप से बेहद मिसफिट हो चुके बाप की सांस एक किलोमीटर दौड़ने में फूल जाती थी. पांच किलोमीटर कैसे भाग सकेगा? वह भी अपने बेटे को उसकी व्हीलचेयर में बिठाकर धकेलते हुए.

डिक हॉइट को उसके अंतर्मन ने लताड़ा, “विकलांग तुम्हारा बेटा है या खुद तुम?”

कोशिश करने में क्या हर्ज़ है – उसने अपने आप से कहा और रेस में हिस्सा लिया. दो सप्ताह तक डिक की मांसपेशियां दर्द करती रहीं लेकिन उस दिन रेस ख़त्म होने के बाद बेटे रिक ने जो बात कही थी उसने दोनों का जीवन बदल दिया. रिक ने पिता से कहा – “जब आप और मैं दौड़ रहे थे, मुझे महसूस हुआ जैसे मैं विकलांग हूँ ही नहीं.”

डिक हॉइट ने अपने बेटे को वह अहसास बार-बार दिलाने का फैसला किया और अपनी देह पर इस कदर मेहनत की कि बाप-बेटे 1979 में दुनिया की सबसे मशहूर मैराथन यानी बोस्टन मैराथन के लिए तैयार थे.

लेकिन बोस्टन मैराथन के आयोजकों ने साफ़ मना कर दिया. वे बाप-बेटे की जोड़ी को एक धावक नहीं मान सकते थे.

डिक ने हार नहीं मानी और अगले चार साल तक खूब मेहनत की. 1983 में वे एक मैराथन इतनी तेज़ भागे कि उन्होंने अगले बरस की बोस्टन रेस के लिए क्वालीफाई कर लिया.

उसके बाद से हर साल की बोस्टन मैराथन में उन्हें टीम हॉइट के नाम से प्रवेश मिला और उन्होंने अगले बत्तीस साल तक उसमें हिस्सा लिया. 1992 की मैराथन में उनका समय वर्ल्ड रेकॉर्ड से कुल 35 मिनट कम रहा. 2007 वाली मैराथन के समय पिता-पुत्र की आयु क्रमशः 65 और 43 थी. कुल 20 हज़ार धावकों ने हिस्सा लिया और टीम हॉइट का नंबर रहा – 5,083 जो करीब 15 हज़ार स्वस्थ स्त्री-पुरुषों से बेहतर था.

2014 में उन्होंने अपनी आख़िरी बोस्टन मैराथन दौड़ने की घोषणा की क्योंकि डिक 74 साल के हो चुके थे और उनका शरीर कमज़ोर पड़ रहा था. 2015 से लेकर 2019 तक मैसाचुसेट्स के एक डेंटिस्ट ब्रायन लियोन्स ने डिक की जगह ली और रिक की व्हीलचेयर को धकेलने का जिम्मा उठाया. बदकिस्मती से जून 2020 में मात्र 50 की आयु में लियोन्स की मौत हो गई.

उधर रिक ने 1993 में बोस्टन यूनीवर्सिटी से स्पेशल एजूकेशन में डिग्री हासिल की और बोस्टन कॉलेज की एक कम्प्यूटर लैब में नौकरी करना शुरू किया जो विकलांगों के लिए विशिष्ट संचार तकनीकों पर कम कर रही थी.

पहली बोस्टन मैराथन के कुछ समय बाद किसी ने डिक को ट्रायथलन में हिस्सा लेने का विचार दिया. डिक को तैरना नहीं आता था और साइकिल उसने छः साल की उम्र के बाद से नहीं चलाई थी.

कोशिश करने में क्या हर्ज़ है – उसने अपने आप से फिर से कहा और एक ट्रायथलन में हिस्सा लिया. 2005 तक वे 212 ट्रायथलन दौड़ चुके थे.

2003 में डिक हॉइट को दिल का दौरा पड़ा. डाक्टरों ने पाया उसके दिल की एक धमनी 95% ब्लॉक्ड थी. “अगर तुम दौड़ न रहे होते तो शायद 15 बरस पहले मर गए होते” – डाक्टरों ने उसे बताया.

विकलांग रिक ने इस तरह अपने पिता को नया जीवन भी दिया. एक इंटरव्यू में अपने पिता को ‘फादर ऑफ़ द सेन्चुरी’ बताने वाले रिक ने कहा था, “मेरे दिल में एक ही ख्वाहिश है कि पापा कुर्सी पर बैठे हों और उन्हें धकेलता हुआ मैं दौड़ रहा हूँ.”

टीम हॉइट ने ग्यारह सौ से ज़्यादा दौड़ों में हिस्सा लिया. 17 मार्च 2021 को अस्सी साल की आयु में डिक हॉइट की मृत्यु हो गई.

2013 में बोस्टन मैराथन के आयोजकों ने पिता-पुत्र के अविश्वसनीय और अदम्य हौसले के सम्मान में उनकी एक प्रतिमा ठीक उस जगह स्थापित की जहाँ से यह प्रतिष्ठित रेस शुरू होती है.

मूर्ति के नीचे लिखा हुआ है – “यस यू कैन!”

भड़ास व्हाट्सअप ग्रुप ज्वाइन करें- BWG9

भड़ास का ऐसे करें भला- Donate

भड़ास वाट्सएप नंबर- 7678515849

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *