उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ ही विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत समेत नौ विद्रोही विधायकों की छवि पर हालिया घटनाओं से ऐसा बट्टा लगा है, जिसे सुधारने के लिए उन्हें शायद दूसरा जन्म रखना पड़े, लेकिन सरकार की बैसाखी बने पीडीएफ के विधायक भी इस राजनीति की इस काली कोठरी से बेदाग़ नहीं निकल पाए। राज्य में स्थायी सरकार के लिए समर्थन करने की पीडीएफ की जितनी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की गयी थी, स्टिंग प्रकरण के बाद भी सरकार से इनके गलबहियां किये रहने की उतनी ही भर्त्सना हुई है। पीएडीएफ के नेता मन्त्री प्रसाद नैथानी सतपाल महाराज के ख़ास लोगों में एक माने जाते रहे हैं। जब कॉंग्रेस महासचिव होते हुए भी पिछले विधानसभा चुनाव में मन्त्री को देवप्रयाग से टिकट न मिला तो मन्त्री प्रसाद निर्दलीय लड़े और जीत गए थे।