उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव आज एक प्रेस कांफ्रेंस में जिस तरह से एक चैनल के एक रिपोर्टर से बदसुलूकी की, तू-तकार किया, तुम्हारा नाम क्या है जैसे बेहूदे सवाल पूछे और अंत में बोले कि तुम्हारा तो ड्रेस ही भगवा है। आदि-आदि। और सारे उपस्थित पत्रकार अपनी रवायत के मुताबिक ही ही करते रहे तो टीवी के परदे पर यह देखना मेरे लिए कोई नई बात नहीं थी। यह तो दलाल पत्रकारों की मामूली तफसील है। ऐसा पहले अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव भी करते रहे हैं।
अखिलेश की कोई प्रेस कांफ्रेंस या कवरेज करने का दुर्भाग्य तो मुझे नहीं मिला है लेकिन उन के पिता मुलायम सिंह यादव की तमाम प्रेस कांफ्रेंस, कवरेज और उन के साथ हवाई और सड़क यात्राएं तो की हैं। पहले तो नहीं पर बाद के दिनों में मुलायम के तेवर भी यही हो चले थे। अव्वल तो वह पत्रकारों को, मीडिया मालिकों को पूरी तरह ख़रीद लेते थे तो कोई अप्रिय सवाल उन से करता नहीं था। अगर गलती से कोई पत्रकार ताव में आ कर कोई अप्रिय सवाल कर भी देता था तो मुलायम भड़क कर पूछते थे, तुम हो कौन? किस अखबार से हो? किस चैनल से? और उस पत्रकार को पब्लिकली बुरी तरह बेज्जत कर उस की नौकरी भी खा जाते थे। उन का हल्ला बोल तो हाकरों की पिटाई तक में तब्दील हो गया था। मुलायम सिंह यादव तो प्रेस क्लब में बैठ कर पत्रकारों से पूरी हेकड़ी से पूछते थे, तुम्हारी हैसियत क्या है?
बाद के दिनों में मायावती ने भी यही सब किया। मायावती ने तो फिर सवाल सुनने ही बंद कर दिए। लिखित वक्तव्य पढ़ कर उठ जाती हैं। लेकिन अगर मायावती के मुख्य मंत्री रहते उन के खिलाफ कोई गलती से भी संकेतों में भी लिख दे तो वह फौरन उस की नौकरी खा जाती थीं। कई पत्रकारों की नौकरी खाई है मायावती और मुलायम ने। मायावती तो कहती थीं, मीडिया मालिक से कि या तो अखबार बंद करो या इसे निकाल बाहर करो। एक बार एक पत्रकार को मायावती ने प्रेस कांफ्रेंस में ही घुसने से रोक दिया था तो सभी पत्रकार बायकाट कर गए थे। लेकिन तब वह मुख्य मंत्री नहीं थीं। लेकिन पत्रकार चूंकि कुत्ते होते हैं सो फिर जाने लगे। अखिलेश यादव ने भी पिता के नक्शे कदम पर पत्रकारों को ख़रीद कर कुत्ता बना लिया। अब वह भले सरकार में नहीं हैं लेकिन उन को लगता है कि यह कुत्ते तो उन के ही हैं। सो कुत्तों को लात मारने की उन की आदत अभी गई नहीं है। जाते-जाते जाएगी। पर जाएगी ज़रुर। बहुतों की जाते देखी है मैंने।
एक समय था कि ज़रा-ज़रा सी बात पर बड़े से बड़े नेताओं को हम पत्रकारों ने इसी लखनऊ में उन की अकड़ उतार कर उन के हाथ में थमा दी है। किस्से अनेक हैं। पर वह समय और था, दिन और था, हम लोग और थे। अब दौर और है, लोग और हैं और हम जैसे पत्रकार इसीलिए मुख्य धारा से दूर हैं। क्यों कि मीडिया मालिकों, पक्ष-प्रतिपक्ष के नेताओं, अधिकारियों और इस समाज को भी सिर्फ़ कुत्ते और दलाल पत्रकार ही रास आते हैं। लिखने पढ़ने वाले , खुद्दार और समझदार पत्रकार नहीं। इस सिस्टम पर अब बोझ हैं खुद्दार पत्रकार।
दयानंद पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार
लखनऊ
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sanjeev kumar
April 26, 2017 at 12:09 pm
दयानंद जी सही और बेबाक लिखा है आपने, सैल्यूट