इस देश में प्रेस आजाद है, शर्त बस यह है कि आप दूरदर्शन में काम न करते हों. और हां, खबर जशोदा बेन के बारे में न हो. अगर ये दोनों संयोग मिल जाएं तो फिर कोई गारंटी नहीं है. आपको पलक झपकते ‘कालापानी’ भेज दिया जाए तो भी कोई बड़ी बात नहीं. अहमदाबाद में तैनात दूरदर्शन अधिकारियों ने यही बात समझने में थोड़ी देर कर दी. जशोदा बेन की खबर दिखाने का नतीजा एक डीडी अधिकारी के तत्काल तबादले के रूप में सामने आ गया. बाकी अधिकारी भी सफाई देने में जुटे हैं.
मामला यह है कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘परित्यक्ता’ पत्नी जसोदा बेन ने आरटीआई के जरिए यह जानना चाहा था कि उन्हें प्रशासन की ओर से जो सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है, वह किस हैसियत से दी जा रही है. क्या प्रधानमंत्री की पत्नी होने के नाते वह इस सुरक्षा की हकदार हैं या किसी अन्य रूप में. अगर पीएम की पत्नी होने की वजह से उन्हें सुरक्षा दी जा रही है, तो फिर वह ऐसी और किन-किन सुविधाओं की हकदार हैं?
प्रशासन ने जब इनका जवाब देने से 25 नवंबर 2014 को इनकार कर दिया तो जशोदा बेन ने इसके खिलाफ अपील दायर की. यह खबर देश के लगभग सभी अखबारों और टीवी चैनलों में दिखाई गई. गलती से दूरदर्शन, अहमदाबाद केंद्र के भी कुछ अधिकारी इसे खबर मानने की ‘गुस्ताखी’ कर बैठे. दूरदर्शन अधिकारियों की इस ‘हिमाकत’ पर चकित सूचना और प्रसारण मंत्रालय के ऑफिसरों ने तत्काल इसे संज्ञान में लिया. इस बुलेटिन के लिए जिम्मेदार असिस्टेंट डायरेक्टर वी एम वनोल का तबादला पोर्ट ब्लेयर (अंडमान द्वीप) कर दिया गया.
अहमदाबाद दूरदर्शन केंद्र के जॉइंट डायरेक्टर धर्मेंद्र तिवारी भी सफाई देते-देते परेशान हैं. सूचना और प्रसारण सचिव विमल जुल्का ने जानना चाहा है कि आखिर यह खबर चुनी ही क्यों गई/ इस यक्षप्रश्न का उत्तर तलाशने, जुल्का का यह लिखित नोटिस लेकर पिछले दिनों दूरदर्शन के डीजी (न्यूज) अक्षय रावत खुद अहमदाबाद पहुंचे हुए थे. एक की ‘लापरवाही’ सबकी आफत बन गई है.
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