संजय सिन्हा
Sanjay Sinha : हमारे फेसबुक परिवार के एक सदस्य ने गज़ब की इच्छा जाहिर की है। उन्होंने मेसेज बॉक्स में आकर मुझे लिखा है कि उनकी दिली तमन्ना है कि वो अपनी पत्नी को विधवा होते हुए देखें। वाह! रिश्ता हो तो ऐसा हो। यही खासियत है रिश्तों की। रिश्ता जो कभी आपको जीने के लिए प्रेरित करता है, तो कभी मर जाने के लिए उकसाता है। लेकिन इन दोनों स्थितियों से परे भी एक स्थिति होती है और उसी स्थिति की कल्पना हमारे फेसबुक परिवार के इस सदस्य ने की है। वो जीना नहीं चाहते, वो शायद मरना भी नहीं चाहते, वो चाहते हैं अपनी पत्नी को विधवा होते हुए देखना।
ये रिश्तों की पराकाष्ठा है। ऐसी चाहत जब आप दूसरों की तबाही देखना चाहें, बेशक उसे देखने के लिए आप स्वयं मौजूद न रहें, रिश्तों की सबसे जटिल चाहत है। जाहिर है ऐसी चाहत बदले की भावना से पैदा होती है। हम में से बहुत से लोगों के मन में कभी न कभी ऐसी चाहत जरूर होती है जब हमें लगता है कि अब ये ज़िदगी न रहे तो अच्छा है। और ऐसी चाहत भी कभी-कभी होती है कि काश ये पल कभी हमारी ज़िंदगी से कभी जुदा ही न होता। मतलब हर आदमी इस गाने को कभी न कभी गुनगुनाता है, “आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है।”
यही ज़िंदगी कभी पहाड़ लगती है, तो कभी समंदर बन जाती है। आदमी वही होता है पर मन बदल जाता है।
मुझसे निजी चैट बॉक्स में चैट करते हुए तो कई लोग कहते हैं कि उनका मूड बहुत खराब था, पर अब ठीक हो गया है। इसका मतलब हुआ कि बातचीत से, एक दूसरे से अपने मन को साझा करने से मूड बदल जाता है। कई बार उदास और अकेला पड़ा मन जरा सी बातचीत से खिल उठता है। मैं उन सभी महिला परिजनों से माफी मांगते हुए और ये वादा करते हुए आज यहां लिख रहा हूं कि कभी उनकी निजता की हत्या यहां नहीं करूंगा पर, कई महिलाओं ने मुझसे पहली बात में रोते हुए अपने दुखों को बयां किया है। कइयों ने कहा कि सबके रहते हुए भी उनकी ज़िंदगी इतनी अकेली और वीरान है कि उन्हें जीने की कोई चाहत ही नहीं।
ऐसी परिस्थिति में फंसी कई महिलाओं से जब मैंने बात करनी शुरू की तो सबसे पहले उन्हें यही समझाया कि आप दुनिया की परवाह मत कीजिए, खुद की कीजिए। अपनी खुशियों को टटोलिए उसे पुकारिए, उसे सहलाइए। अपनी खुशी के लिए आप किसी और पर निर्भर हैं, इसीलिए खुशी आपसे दूर है। आप सबसे पहले खुद से दोस्ती कीजिए फिर बाहर दोस्त तलाशिए। और मेरा भरोसा कीजिए मर जाने की चाहत वाली तमाम महिलाएँ आज मेरी दोस्त हैं, मुझसे अपनी खुशियंा साझा करती हैं, और अब कभी-कभी मैं उन्हें छेड़ता हूं कि क्या हुआ आपके मर जाने का इरादा, तो इठताली हुई पूछती हैं, अभी उन्होंने देखा ही क्या है अभी तो दो पल जीने का मौका मिला है।
यही है मन की गति। जीवन रूपी गाड़ी को चलाते हुए कई बार हम उसके रिश्ता रूपी मीटर पर से अपनी आंख हटा लेते हैं, और हमें पता ही नहीं चलता कि जीवन की गा़ड़ी दरअसल चल किस रफ्तार से रही है।
पहले लोगों की ज़िदगी ऐसी थी कि उन्हें उसकी गति का अंदाज़ा होता था। दरअसल मन के सफर में कभी ड्राइवर अकेला ही नहीं पड़ता था। जीवन के सफर में हमेशा कोई न कोई सह यात्री होता था। पति काम पर चला गया तो मां, बहन, भाई, सास, देवरानी, जेठानी, पड़ोसी कोई न कोई मन की यात्रा वाली गाड़ी पर सवार हो जाता था। उनमें से कोई एक यात्री मन लायक न हुआ तो भी कोई एक मन लायक मिल ही जाता था। समय की बात है कि आज ज्यादातर आदमी को अपने मन की यात्रा में अकेला या फिर इक्का-दुक्का यात्रियों के साथ यात्रा करनी पड़ती है। शुरू में तो उसे ये सफर अच्छा लगता है लेकिन जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ती जाती है उन इक्का-दुक्का यात्रियों से नहीं बनी तो यात्रा मुश्किल जान पड़ने लगती है। कहने का मतलब ये कि आदमी का अकेले चलना जितना मुश्किल होता है, उससे ज्यादा मुश्किल हो जाता है उसका उसके साथ चलना, जिसका साथ उसे नापसंद है।
ये जरा गूढ़ मामला है, पर है बहुत खतरनाक। मुझे लगता है कि जैसे ़सरकार ने सिगरेट के डिब्बों पर लिखना अनिवार्य कर दिया है कि सिगरेट पीने से स्वास्थ्य को नुकसान होता है, वैसे ही मन रूपी जीवन के डिब्बे पर लिखवा देना चाहिए कि बुरे रिश्ते जानलेवा होते हैं। जिस तरह सिगरेट छोड़ कर जीवन जीने के लिए प्रेरित किया जाता है, उसी तरह मैं आप सबको प्रेरित कर रहा हूं कि अगर आपकी ज़िदगी में एक भी ऐसा रिश्ता है जो आपको जीने से रोकता है, तो उसे छोड़ कर आगे बढ़ जाएं। ऐसे रिश्ते जिसमें आप खुद को मिटा कर उसकी तबाही देखने का ख्वाब पाले बैठे हैं उसे छोड़ दीजिए।
अपनी पत्नी को विधवा देखने की चाहत कुछ ऐसी ही है जैसे अपने ही सिगरेट पीने वाले लत में आप खुद को कैंसर से मरते हुए देखना चाहते हैं। अपनी पत्नी को सफेद साड़ी में सुबकते हुए देखने की चाहत रखने से अच्छा है उसे न देखने की चाहत।
अगर आपके मन की गति अपने सहयात्री के साथ यात्रा करते हुए इतनी बिगड़ गई है तो उससे खुल कर बात कर लीजिए। उसे बता दीजिए कि इस सफर में उसकी मौजूदगी आपको और अकेला कर रही है, ऐसे में दोनों यात्रियों के लिए जुदा हो जाना बेहतर विकल्प है, बजाए इसके कि अपनी मौत के बाद उसकी बर्बादी के जश्न को जीने की चाहत रखने के। फिर भी अगर ऐसी चाहत हो ही जाए तो बेशक अपना सफर बदल लीजिए, हम सफर बदल लीजिए।
जीवन की यात्रा जितने दिन की भी है मस्ती से काटिए। अगर आपके जीवन रूपी कोच में कोई यात्री इतना बुरा आ ही गया है कि आप उसके साथ आगे की यात्रा नहीं कर सकते तो टीटीई से संपर्क कीजिए। क्या पता टीटीई आपकी सीट बदल दे। आपको कोई ऐसा सहयात्री मिल जाए जिसके संपर्क में आपकी यात्रा अति सुखद हो जाए। उम्मीद मत छोड़िए। किसी ने यूं ही तो नहीं कहा न कि जहां उम्मीद है, वहीं ज़िंदगी है।
चलते-चलते एक डॉयलाग सुना देता हूं, जो आज आपको अच्छा लगेगा और कभी न कभी आपके काम आएगा –
दो लोगों के बीच कोई भी रिश्ता सबसे सुखद तब होता है, जब दोनों को ऐसा महसूस होता है कि उसे जो मिला है वो उसकी उम्मीद और योग्यता से ज्यादा है।
आप भी अपने रिश्तों में एक बार झांक कर देखिए तो सही, क्या पता वो आपकी उम्मीद और योग्यता से ज्यादा ही हो!
आजतक न्यूज चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत संजय सिन्हा के फेसबुक वॉल से.