अब आप नौकर नहीं रह गए! अब आप अपने कीमती वक़्त को बेच नहीं रहे। अब पूरे समय, पूरी दिन रात के आप खुद मालिक हैं। आप दुनिया के प्रभु कैटगरी के लोगों के क्लब में शामिल हो गए हैं। आप थरिया भर खाने के बाद भरी दोपहरिया में कुछ घण्टे इत्मीनान से सो सकते हैं। आप मनुष्य के रूप में जन्म लेने का असली सुख उठाने की प्रक्रिया में हैं। आप कश्मीर से कन्याकुमारी तक कहीं भी कभी भी जा सकते हैं। आप आज़ाद हैं। आप मुक्त हैं। यह उच्चतम अवस्था होती है जीवन की। इस पर गर्व करें। लंबी सांस खींचकर सीना फुलाएं।
ऊपर जैसा लिखा गया है, वैसा सोचें। कोई इफ बट किंतु परन्तु न सोचें न कहें। आपको आदेश दिया जाता है कि ऊपर जो लिखा है वैसा महसूस करें, जबरन ही सही।
गुलामी / नौकरी एक सड़ी हुई माइंडसेट का निर्माण करती है। नौकरी / गुलामी के खत्म हो जाने पर माइंडसेट नहीं खत्म हो पाता। ये सड़ा हुआ माइंडसेट बदबू मारता है। तनाव देता है। बेचैन करता है। हताश करता है।
पहले इस माइंडसेट को मिट्टी में मिलाओ।
ईश्वर को धन्यवाद दीजिए कि आप मुक्त हो गए नौकरी से!
मुक्त मनुष्य की आज़ाद-उदात्त मानसिकता का निर्माण आसान नहीं होता। उसके लिए पहले गुलामों/नौकरों वाली सड़ी मानसिकता पर हथौड़े चलाइये।
उल्टा सोचिए।
नौकरी जाना हमारे लिए विपत्ति नहीं, चैलेंज है, मौका है।
अच्छा हुआ नौकरी चली गयी।
भला हुआ मोरी मटकी फूटी, पनिया भरन से छूटी रे!
आज बस इतना ही।
ये पहले दिन का क्लास सबसे मुश्किल है।
ये पहले दिन का ज्ञान ही बेस है।
ये प्रस्तावना है।
ये प्रारम्भ बिंदु है।
इस कैपशूल पर शक़ न करिए।
आंख बंद कर पानी के साथ गटक जाइए और डॉक्टर को थैंक्यू कहिए।
अच्छा फील करिए।
नई दृष्टि डेवलप करिए। नई आँख लगवा लीजिए।
आप कम सोचिए, गर्व करिए, धन्यवाद कहिए उनको जिनने आपको बेरोजगार किया। जिनने आपको मुक्त कर दिया गुलामी से!
हम भाग्यशाली हैं जो नौकर संघ से बाहर आ सके, प्रभु क्लब में प्रवेश कर सके।
मानसकिता भी अब प्रभुओं वाली बनानी होगी।
कुछ न करने को, खाली होने को एन्जॉय करना सीखना पड़ेगा। इसके लिए अपने आज़ाद होने पर गर्व करना सीखना पड़ेगा!
दूसरों के सवालों, दूसरों की निगाहों को दरकिनार करिए। क्या कहेंगे लोग, सबसे बड़ा रोग। आप की ज़िंदगी खुद की है। इसे खुद के नियम से जीना सिखाइये। दूसरों के बनाए पिच पर आखिर हम बैटिंग क्यों करें!
आज का लेसन, आज का ज्ञान बस सोच बदलने की एक शुरुआत की अपील भर है।
सोचिए, कि आप कितना सड़ा सोचते हैं जिससे खुद परेशान रहते हैं।
जिस सोच से खुद को तनाव मिले, हताशा मिले, बेचैनी मिले, अपराधबोध हो, वो सोच सड़ी हुई है।
आप आज़ाद हैं। ये गर्व लायक बात है!
ऐसे सोचना शुरू करें।
शुभ रात्रि
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