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आयोजन

कृति के सभी जीवों और तत्वों के साथ सह अस्तित्व ही आदिवासियत

नई दिल्ली। आदिवासियत या आदिवासी विमर्श को अन्य विमर्शों की तरह नहीं समझना चाहिए। आदिवासियत जीवन जीने का एक बेहतरीन तरीका है, एक दर्शन और वैचारिकी है अपितु यह एक जीवन शैली है। आदिवासी समस्त प्रकृति के तत्त्वों और मानवेतर जीव – जगत के साथ सह अस्तित्व की भावना के साथ जीता है,यही उसका मूल दर्शन है। पारिस्थितिकी असंतुलन और पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं के निदान के लिए हमें आदिवासियत की ओर जाना होगा, प्रकृति और मानवेत्तर जीव – जगत के पास जाना पड़ेगा।

सुप्रसिद्ध लेखक और आदिवासी विषयों के मर्मज्ञ हरिराम मीणा ने उक्त विचार हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज द्वारा आयोजित वेबिनार ‘कृति चर्चा: धूणी तपे तीर ‘ में व्यक्त किए। मीणा ने आदिवासी लोकतंत्र की अवधारणा के बारे में कहा कि आदिवासियों का जो गणतंत्र है, वह आधुनिक लोकतंत्र की तरह बहुमत पर आधारित नहीं है ,वह गण ,जन और संघ के सर्वमत पर आधारित है। उन्होंने विकास की वर्तमान अवधारणा पर कहा कि दुनिया जिस विकास की ओर जा रही है,वह केवल आर्थिक उन्नति है, जबकि विकास एक बहुत ही वृहद अवधारणा है ,जिसमें सौहार्द्र है, धार्मिक/ सामाजिक सहिष्णुता है, सांस्कृतिक वैविध्य है, आदमी के खुश रहने की मानसिकता है। मूलतः समग्रता को लेकर चलने वाली धारणा ही वास्तविक विकास है।

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आदिवासी साहित्य के बारे में मीणा ने कहा कि आदिवासी दर्शन,आदिवासी संस्कृति, वैचारिकी पर आधारित साहित्य ही आदिवासी साहित्य है। उन्होंने कहा कि आदिवासी साहित्य इसलिए जरूरी है क्योंकि यह संपूर्ण साहित्य को और समृद्ध करेगा, समाज के जिस तबके की आधिकारिक और पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं हो पाई है,यह उसे भी अभिव्यक्ति प्रदान करेगा। जब हम आदिवासी साहित्य के बारे में विचार करते हैं तो यह ध्यान रखना चाहिए कि वह केवल आदिवासी समाज के जीवन के बारे में नहीं है बल्कि उसमें और मानवेतर जीव- जगत भी हैं।

वेबिनार के अगले भाग में उन्होंने अपनी प्रसिद्ध औपन्यासिक कृति ‘धूणी तपे तीर’ के बारे में विस्तृत चर्चा की। मीणा ने अपने इस प्रसिद्ध उपन्यास की रचना प्रक्रिया के बारे में बताया और आधार सामग्री के लिए किए शोध की जानकारी दी। उन्होंने खेदपूर्वक कहा कि भारत में स्वतंत्रता के लिए जलियाँवाला बाग़ से बड़ी कुर्बानी वाली इस लोमहर्षक घटना पर राजस्थान के सबसे बड़े इतिहासकारों में से एक गौरीशंकर हीराशंकर ओझा जैसे विद्वान् ने इस घटना उल्लेख तक नहीं किया। यह तथ्य इतिहासकारों के आदिवासियों और वंचित समुदायों के प्रति नजरिए को बताता है। इसके बाद उन्होंने ‘धूणी तपे तीर’ में वर्णित महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र किया और उसमें अभिव्यक्त आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक शोषण के बारे में बताते हुए मानगढ़ में हुए भीषण नरसंहार की घटना पर प्रकाश डाला।

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प्रश्नोत्तर सत्र का संयोजन विभाग के प्रध्यापक डॉ नौशाद अली ने किया। इसके बाद विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापिका रचना सिंह ने हिंदी साहित्य सभा के नए पदाधिकारियों की घोषणा की। वेबिनार के प्रारम्भ में विभाग के प्राध्यापक डॉ विमलेन्दु तीर्थंकर ने मीणा का परिचय दिया और उनके रचनात्मक अवदान को रेखांकित किया। साहित्य सभा के परामर्शदाता डॉ पल्लव ने स्वागत उद्बोधन दिया।

आयोजन में हरिराम मीणा की उपस्थिति में ही हिंदू कॉलेज की भित्ति पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ के नए का ऑनलाइन लोकार्पण किया गया। अंत में साहित्य सभा की कोषाध्यक्ष दिशा ग्रोवर ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संयोजन विभाग के प्रध्यापक डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया। वेबिनार में विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ रामेश्वर राय, डॉ हरींद्र कुमार सहित अनेक महाविद्यालयों के हिंदी विभागों के प्राध्यापक में विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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