Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

अल्लामा इकबाल जो आज होते तो मुसलमान उनके खून के प्यासे होते!

-मशाहिद अब्बास-

जन्मदिन विशेष – सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, हम बुलबुले हैं इसके ये गुलसितां हमारा. ये गीत है मुहम्मद इकबाल का, जिसे पूरी दुनिया अल्लामा इकबाल के नाम से जानती और पहचानती है. अल्लामा कहते हैं विद्वान को. मोहम्मद इकबाल को उनकी शायरी देख कर अल्लामा के खिताब से नवाज़ा गया था. अल्लामा इकबाल उर्दू भाषा के कवि यानी शायर थे. उन्होंने बेहद कम उम्र से शायरी की शुरूआत भी की थी. आज उनका जन्मदिवस है तो उनकी चर्चाएं हो रही है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

अल्लामा इकबाल को कट्टरवादी समझा जाता है जबकि तस्वीर इसके बिल्कुल उलट है. अल्लामा इकबाल तो खुद ही कई बार कट्टरवाद के शिकार हुए थे और इस हद तक उनकी आलोचनाएं हुई थी कि उन्हें काफिर (गैर-मुस्लिम) तक कह डाला गया था. अल्लामा को काफिर लफ्ज़ तो पसंद ही नहीं था लेकिन जब उन्हें ही कट्टरपंथियों ने काफिर कहा तो अल्लामा ने एक शेर के ज़रिए अपना दर्द बयान किया और कहा कि –

“ज़ाहिदे तंग नज़र ने मुझे काफिर जाना, और काफिर ये समझता है मुसलमान हूं मैं”

Advertisement. Scroll to continue reading.

अपने इस शेर के ज़रिए ही उन्होंने कट्टरवाद को जवाब दे डाला. हालांकि इसके बाद भी अल्लामा इकबाल को कट्टरपंथियों से निजात नहीं मिल पाई और वह लगातार कट्टरपंथ के निशाने पर रहे. उन्होंने कट्टरवाद के खिलाफ एक शेर और लिख डाला जो शायद आज की तारीख में वह लिखते तो उनकी चारों ओर आलोचनाएं ही आलोचनाएं होती, और उनको मुस्लिम समाज अपने साथ बिठाना भी न पसंद करता. अल्लामा इकबाल ने कट्टरवाद के खिलाफ लिखते हुए शेर में लिखा कि –

“मस्जिद तो बना ली पल भर में, ईमां की हरारत वालों ने, दिल अपना पुराना पापी था, बरसों में नमाज़ी बन ना सका”

Advertisement. Scroll to continue reading.

अल्लामा इकबाल का ये शेर पूरी तरह से कट्टरपंथियों के खिलाफ था जिसकी वजह से लोग उन्हें गैर मुस्लिम तक कह डालते थे. अल्लामा इकबाल के एक और शेर ने कट्टरपंथ विचारधारा पर वो तमांचा जड़ दिया था जिसकी धनक आज तक सुनाई देती है. अल्लामा इकबाल ऩे भगवान राम के बारे में शेर लिखते हुए कहा कि –

“है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़, अहले नजर समझते हैं उसको इमाम-ए-हिन्द”

Advertisement. Scroll to continue reading.

इकबाल के इस शेर में भगवान राम के प्रति आदर और उनका भरपूर सम्मान नज़र आता है, राम को इमाम की उपाधि देने पर इकबाल की खूब आलोचनाएं हुई विरोध भी हुआ, लेकिन इकबाल अपने लिखे गए शेर पर कायम रहे और धर्म के ठेकेदारों को एक शेर के ज़रिए अपना जवाब दे डाला, उन्होंने एक फारसी शेर लिखा जिसका अनुवाद है कि “मामूली लोगों के लिए धर्म सिर्फ सुनी-सुनाई बातें हैं जबकि समझदार और विद्वानों के लिए आंखों से देखकर उसपर ही यकीन करना धर्म है” अल्लामा इकबाल हिंदुस्तान को अपना धर्म मानते थे ये उनके इस शेर में भी दिखाई देता है, उन्होंने लिखा –

“मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तां हमारा”

Advertisement. Scroll to continue reading.

हिन्दुस्तान से लगाव रखने वाला ये शायर हरदम हिंदुस्तान की बातें किया करता था, देश से मोहब्बत उसके शेरों में बराबर दिखाई देती थी. मुल्क में हिन्दू-मुसलमान के बीच हालात खराब होते देखता था तो ये शायर बोल पड़ता था और कैसे बोलता था वह इस शेर के ज़रिए आप समझ सकते हैं, इकबाल ने देश से कहा –

“वतन की फिक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है, तेरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में,
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदोस्तां वालो, तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में”

Advertisement. Scroll to continue reading.

इकबाल का देशप्रेम उनके गीत, गज़ल व नज़्म में दिखाई देता है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इन्हीं अल्लामा इकबाल को सबसे पहले पाकिस्तान की मांग करने वालों में गिना जाता है. हालांकि उनके बेटे जावेद इकबाल और उनपर शोध कर चुके लोगों का मानना है कि अल्लामा इकबाल मुसलमानों के लिए कुछ विशेष छूट की मांग कर रहे थे वह अलग देश के मुखर समर्थक नहीं थे. अल्लामा इकबाल को मुसलमानों ने काफिर तो ज़रूर कहा था लेकिन कट्टर मुस्लिमों ने उन्हें सिर्फ मुस्लिमों का शायर बनाकर ही पेश किया. इकबाल ने सन् 1938 में दुनिया को अलविदा कह दिया था. उनके जाने के बाद उनके कई शेरों को तब्दील कर कट्टरपंथियों ने उनकी शख्सियत पर कट्टरवाद का नकाब डाल दिया था. जिसकी वजह से आज उन्हें अधिकतर लोग मुस्लिमों का ही शायर मान बैठे हैं. जबकि ये सच नहीं है वह कट्टरवाद के धुर विरोधी रहे हैं. सोचिए आज जब कट्टरपंथी ताकतें मज़बूत हो रही हैं तो ऐसे समय में जो अल्लामा इकबाल खुद मौजूद होते तो उनके साथ कैसा सलूक होता.

इन सभी चीज़ों पर उनका एक शेर बेहद हावी है जिसमें उन्होंने कहा –

Advertisement. Scroll to continue reading.

“खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है”

इसे भी पढ़ें-

Advertisement. Scroll to continue reading.

अल्लामा शायर बड़े रहे होंगे पर आदमी कट्टर ही थे

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement