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न्यूज18 के युवा और प्रतिभाशाली पत्रकार ने ट्रेन के आगे कूद कर जान दे दी

Abhishek Srivastav : अमन के साथ मैंने यूसी न्यूज़ में 6 महीने तक काम किया। हम लोगों एक साथ बैठते थे, बातें करते थे, बिरयानी भी खाते थे। कई बार व्हाट्सऐप पर भी बातें होती रहती थीं. उसके बाद मैंने न्यूज़ 18 ज्वाइन किया और अमन भी न्यूज़ 18 पंजाबी से जुड़ गया. हंसता, खिलखिलाता अमन कब दर्द में आ गया मालूम ही नहीं चला. दोस्त शायद तुम्हें समझने वाले लोग नहीं थे या फिर तुम्हारे दर्द को कोई समझ ही नहीं पाया. माफ करना अपनी भी पिछले 10 महीनों में कोई बात ही नहीं हुई. ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे. RIP

अमन बरार

Harshendra Singh Verdhan : It’s extremely terrible to know that very young & talented journalist Aman is no more with us. Why he took his life is still a question ? But one should speak up with others whatever is going in the mind. It’s very important to share the inner thoughts with others. May God Rest Your Soul in Peace.

Shyam Meera Singh : हमारा अमन (Aman Brar) अब दुनिया में नहीं रहा. अमन ने सराय रोहिल्ला स्टेशन (दिल्ली) के पास ट्रेन के आगे अपनी जान दे दी है. पिछले एक महीने से लगातार बीमार था, शरीर में दर्द रहता था. परेशान था. कल उसकी हिम्मत जवाब दे गई. कल शाम अपोलो अस्पताल से एक कैब लेकर निकल गया था. बिना अपने साथियों को बताए. क्या कहूँ, क्या लिखूं, मालूम नहीं…. किसी से कुछ नहीं कहना. अमन ऐसे न जाना था दोस्त…. जिंदगी भर का घाव दे गए यार तुम.. शिकायत रहेगी मेरे भाई..

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कुछ समय से अमन की हड्डियों में दर्द रहता था. पिछले दिनों जितनी भी बात होती थी उस ‘दर्द’ पर ही होती थी. कि तबियत कैसी है, अब कैसी है? उसका जवाब होता था ‘बुरी है’, ‘खराब है’. कल अमन अपने घर वालों के साथ अपोलो अस्पताल दिल्ली चेकअप के लिए आया हुआ था. वहां से अमन बिना किसी को बताए कैब लेकर निकल गया था. रात से ही हम सब लोग उसे ढूंढने लग गए थे. किसी को मालूम नहीं था कि इस दुनिया में अमन की ये अंतिम रात है. आज रात दर्द से सामने अमन की हिम्मत जबाव दे गई. रात 3 बजे उसके भाई से खबर मिली कि अमन अब दुनिया में नहीं रहा है, ट्रैन के आगे आकर अमन ने अपनी जान दे दी है. जगह करोलबाग के आसपास, सराय रोहिल्ला स्टेशन के नजदीक की है.

अमन यार, भाई, एक बार और गले लगना है दोस्त…. बस एक बार… अंतिम विदाई कैसे लिखूं यार तेरे लिए, अब दम निकलने के बाद ही तू निकलेगा दिल से.. दुनिया छोड़ने वालों के लिए कोई आसमान होता होगा तो जरूर मिलेंगे भाई… जरूर मिलेंगे.

Anurag Anant : अभी अभी ख़बर लगी कि अमन बरार ने आत्महत्या कर ली। कई पोस्ट पढ़ी, आत्महत्या की वजह के तौर पर बीमारी बताई जा रही है। बीमारी इतना बीमार कभी नहीं करती कि आदमी आत्महत्या कर ले। आत्महत्या अकेलेपन और अवसाद से भाप की तरह उठती है और वजूद निगल जाती है। जब हम अकेले छूटते जाते हैं। जो चाहते हैं वो नहीं होता वो नहीं कर पाते। अपने आप को एक ऐसी दौड़ का हिस्सा पाते हैं जहाँ जीत हार का कोई मतलब नहीं रह जाता। जीवन से रस जाता रहता है और बंजर जमीन पर चलते हुए पाँव जलने लगते हैं तो जीवन के वाक्य को आगे बढ़ाने से इनकार करते हुए फुल स्टॉप लगा देते हैं। ये तरीका नहीं है जीवन जीने का और ना ही मरने का ये तरीका है पर जब सबकुछ बेतरिका ही हो रहा हो उस दौर में तरीके पर बात करना बेईमानी है।

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एक साथी बेहद ख़ामोशी से अवसाद में डूब गया। किसी को कोई ख़बर ही नहीं लगी। हम मुस्कुराते चेहरे के पीछे की उदासी देखने की ज़रूरी संवेदनशीलता भूल चुके हैं। हम ठहर कर मौन पढ़ने की सलाहियत से हाँथ धो चुके हैं। हम खुद अकेले होते जा रहे हैं और अपनों को अकेला होते छोड़ रहे हैं। जीवन साझेदारी से ही जिया जा सकता है। जीत और हार साझी होती है। अमन की ये हार हम सबकी भी हार है। अलविदा दोस्त !! तुमसे कभी मुलाक़ात नहीं हुई। पर मेरे बेहद अज़ीज़ों के दोस्त रहे हो तुम। फेसबुक पर बातचीत भी नहीं हुई कभी पर पोस्ट पर लाइक कमेंट का रिश्ता रहा है। अभी मित्र सूची देखी तो तुम वहां नहीं हो। कैसे और कब बाहर हुए या किया कह नहीं सकता। पर इतना जानता हूँ कि तुम अंधेरे में घिर रहे थे और हमको रोशनी बनना था, नहीं बन सके। तुमको हाँथ देना था नहीं दे सके।

अपने आसपास देखिए, दोस्तों यारों से मिलते रहिए उनके जीवन के बारे में, उनके दुःख सुख के बारे में बात करते रहिए। उनकी बेचैनी और मौन में जो अकेलापन, अवसाद और उदासी है उसमें रचनात्मक और उत्साह का रंग भरते रहिए। ये एहसास कराते रहिए। कोई भी अंधेरा इतना गहरा नहीं जो जिंदगी निगल जाए। कोई भी रात इतनी लंबी नहीं कि सवेरा खा जाए। बस मज़बूती से पैर टिकाए रखना है। अपमान, हार, अवहेलना, नज़रंदाज़ किया जाना, पैसे की तंगी, जीवन में वांछित सफलता का ना मिलना, किसी का छोड़कर जाना या कुछ भी तोड़ देना वाला अनुभव जीवन का ही हिस्सा है। इन बेरंग अनुभूतियों से भी रंग चुराते हुए जीवन को संपूर्णता और उसके विराट भाव को समझा जा सकता है। अगर मरना ही है तो पलायन से नहीं पराक्रम से मरना है। बस यही कहते हुए अपने दोस्त, साथी, यार परिचित की लड़ाई में अपनी संभव हिस्सेदारी निभाएं। नहीं तो बस पीड़ा होगी और कुछ ना कर पाने की असमर्थता पर ग्लानि।

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अलविदा अमन…

उपरोक्त सभी तस्वीरें अमन बरार की हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं.

Kumar Sahil : जागने के बाद फेसबुक पर देखा कि एक युवा पत्रकार Aman Brar ने खुदकुशी कर ली है। मैं इस लड़के को 2017 की सर्दियों से जानता हूँ जब ये मुझे न्यूज़ नेशन में मिला था। इंटरव्यू हो गया था, सामने काउच पर बैठा था, चेहरे पर पैशन और ललक साफ दिख रही थी। मैंने पूछा क्या बात है, तुम खुश भी दिख रहे हो और कंफ्यूज भी। उसने बोला सर आईआईएमसी से पास आउट हूँ, थोड़े दिन uc ब्राउज़र में काम किया था, ऊब गया, अब यहां भी नौकरी मिल गयी है लेकिन मुझे रिपोर्टिंग करनी है, अब क्या करूँ। मैंने कहा जो मन कहे वो करो। तुम्हारे पास बेहतरीन कल है। फिर हमने नम्बर शेयर किया। बात आई गई होगई। कुछ महीने बीतने के बाद उसका मैसेज आया सर मैं रिपोर्टर बन गया। नेटवर्क 18 के पंजाब सेक्शन में। बहुत खुश था। उसके बाद उसने बहुत कम दिनों में बेहतरीन रिपोर्टिंग और इंटरव्यू किया। लेकिन अचानक उसका इस तरह से जाना मुझे शून्य कर दिया। अमन तुम्हें इस तरह से नहीं जाना चाहिए था। पाश को पढ़ने लिखने और गुनने वाला कोई इस तरह से भागता है क्या? अंतिम विदाई अमन

Sushant Prabha : अमन बरार, न्यूज़ 18 पंजाबी में काम करने वाला एक रिपोर्टर था. पता चला कि आज सुबह उसने आत्महत्या कर ली. वजह किसी बीमारी को बताया जा रहा है लेकिन बीमारी वजह नहीं थी, वजह वो दबाव और अकेलापन होता है जो धीरे धीरे एक बीमारी में बदल जाता है…

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मैं अमन की निजी ज़िंदगी से वाकिफ़ नहीं था लेकिन एक दो बार बात हुई थी – फेसबुक लाइव में क्या सावधानी बरतें, डिजिटल और टीवी में कैसे अंतर करें – ऐसा ही कुछ… फिर लंबे समय तक बात नहीं हुई हां उसके रिपोर्ट दिखते थे – मुझे लगता था सब सही ही होगा…

पर सब सही नहीं था, वो परेशान था, सोशल मीडिया की उस एक पोस्ट से मैंने जज कर लिया था कि वो सही ही होगा लेकिन वो नहीं था….वो तो डूब रहा था और हम लाइक, शेयर, कमेंट कर रहे थे…

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वैसे तो मुश्किल वक्त में कमज़ोर नहीं पड़़ना चाहिए, ऐसी बातें करने वाले, समझाने वाले हमारे आस पास, यहां वहां कई लोग होते हैं. लेकिन कई बार आस पास के ही लोग इस तनाव का वजह बनते हैं. वो हम पर हावी होने लगते हैं. हमारे दोस्त धीरे धीरे छूटने लगते हैं… दोस्तों को लगता है कि ये अभी मूड में नहीं है लेकिन वो डिप्रेशन में जा रहा होता है…

ऐसे समय में साथ छोड़ने वाले लोगों का एक जत्था दिखने लगता है और लगता है कि बस अब इसे यहीं समाप्त करते हैं क्योंकि इस जीवन का, जिसके लिए मैं इतना संघर्ष कर रहा हूं, कोई मतलब नहीं है…

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मैं खुद भी एक मुश्किल दौर से निकल रहा हूं और समझ सकता हूं कि अमन पर क्या बीती होगी. लेकिन आपको बता सकता हूं कि मुश्किल दौर में जब लोग साथ छोड़ने लगते हैं तो इतनी बेबसी महसूस होती है कि सच में मर जाने को जी चाहता है…कई बार मन में ख्याल आता है कि अब बस, फिर लगता है कि नहीं – मैं उठ सकता हूं और कर सकता हूं – बस अमन उठ नहीं सका… श्रद्धांजलि मेरे दोस्त और माफी की हम तुम्हारे किसी काम नहीं आ सके…

वैसे एक बात बताऊं, ये तो मुझे भी पता चला है – यहां कोई किसी के काम नहीं आता – आपका काम आपको खुद करना पड़ता है…जब दोस्त कहे जाने वाले लोग फोन नहीं उठाते, लगभग डांट देने वाला मैसेज कर देते हैं, बुला कर मिलते नहीं तो बुरा लगता है, कोई पोस्ट, पेप टॉक, जोशीली बात काम नहीं करती – पर मरना हल नहीं होता, ज़िंदा रहना चाहिए ऐसे ही लोगों के लिए ताकी सनद रहे… विदा दोस्त, तुम याद रहोगे

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Meena Kotwal : मैं अमन को नहीं जानती, ये भी नहीं जानती कि वो मेरे फेसबुक की फ्रेंड लिस्ट में कब से है. शायद, सामने से कभी मिली भी हूं या नहीं, पता नहीं. लेकिन सुबह-सुबह उसकी आत्महत्या की खबर मुझे फेसबुक के ज़रिए ही मिली, जिसका दुःख हुआ. वो किस दर्द से गुज़र रहा था, पता नहीं. मुझे उसके बारे में कुछ नहीं पता. हां, वो आईआईएमसी का था और एक रिपोर्टर था, वो भी मुझे उसकी प्रोफाइल से पता चला. आख़िरी समय में उसके दिमाग में क्या चल रहा होगा, उसने किस तरह इतनी हिम्मत जुटाई वो जानती तो नहीं, लेकिन समझ सकती हूं. क्योंकि मैं भी इस पड़ाव से एक नहीं दो-दो बार निकल चुकी हूं. बहुत मुश्किल होता है वहां तक पहुंच कर वापस आना. जब आप इस तरह का कदम उठाने की सोचते हैं तो आपको कुछ दिखाई नहीं देता और थोड़ा स्वार्थी हो जाते हैं क्योंकि उस समय सिर्फ आप अपना सोचते हैं. वो समय होता है जब आपसे कोई बात कर ले तो वो व्यक्ति अमृत बन सकता है. लेकिन बात करता कौन है..!

अब यहां कई लोग दोस्ती का बखान करेंगे कि दोस्तों को बताता, वो दोस्त किस काम के जो आख़िरी समय में काम नहीं आए ब्ला…ब्ला… लेकिन वही लोग भूल भी जाते हैं कि उनके भी दोस्त हैं, उनकी भी कभी किसी को जरूरत पड़ी होगी या पड़ सकती है. लेकिन जब आपसे कोई ऐसा व्यक्ति बात करने पहुंचता है तो आप उसे पूरी तरह ही सुने जजमेंटल हो जाते हैं. और उसे ही गलत समझकर समझाने लगते हैं या फिर ऐसे लोगों से बात ही करना पसंद नहीं करते. ख़ासकर तब जब आप एक जैसी जॉब और एक ही संस्थान में होते हैं. आपको डर रहता है कि इसका साथ दिया तो आपकी नौकरी जा सकती है, बॉस आपको टारगेट कर सकता है. इसलिए आप जैसे दोस्त तब नहीं सोचते इतना, तो अब भी ना सोचें. और ऐसा दोस्त देखने के लिए बहुत दूर नहीं जाना आपको, बस आपको अपने अंदर देखना है क्योंकि आप उन्हीं में से एक हैं.

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यहां मैं अमन ने जो किया उसे सही नहीं ठहरा रही. उसने बहुत गलत किया. वो होता तो ऐसे लोगों की पहचान अच्छे से कर सकता था. और शायद अपने जैसे दूसरे लोगों को भी उन लोगों से बचा सकता था. लेकिन अफसोस वो भी उस वक्त उतना ही स्वार्थी हो गया होगा, जिसने सिर्फ अपना सोचा अपने पीछे छोड़े गए दोस्त और परिवार के लिए नहीं सोचा. एक बार वो वापस आने की हिम्मत कर लेता फिर उसमें सबसे लड़ने की जो हिम्मत आती वो सब देखते रह जाते.

विनम्र श्रद्धांजली दोस्त, एक ऐसी दोस्त जो इस समय से वाकिफ़ थी लेकिन तुमसे कभी मिल नहीं पाई. माफ़ी चाहूंगी.

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सौजन्य- फेसबुक

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