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सुख-दुख

जब मुंबई में नवीन कुमार से उनके Article19 India का एक प्रशंसक अचानक टकरा गया…

नवीन कुमार-

मुंबई की एक दोपहर। तारीख थी १७ सितंबर। संदीप बिस्वास के घर कांदिवली से शानदार लंच करके मड के लिए निकला। संदीप दादा ने ऑटो तक छोड़ा। ऑटो चल पड़ा। झक सफेद कुर्ते में एक अधेड़ उम्र के शख्स ड्राइविंग सीट पर थे। अपनी मद्धिम रफ्तार से। मैं आसपास देख रहा था। कोई दस मिनट के बाद उन्होंने अचानक चुप्पी तोड़ी।

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“आप अच्छा काम कर रहे हैं।”

मैं चौंका। पूछा आपको कैसे पता मैं क्या करता हूं।

“मुझे तो ये भी पता आप बहुत बीमार थे और दिल्ली से आए हैं।”

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लेकिन कैसे?

” Article19 India देखता हूं। कई बार लगता है आपकी जुबान में हमारे अल्फाज हैं। कल से आपका कोई वीडियो नहीं आया।”

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मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या कहूं। मेरा संकोची स्वभाव अक्सर ऐसे में मुझे बुत बना देता है।

“मेरा नाम अब्दुल है। अहमद नगर से आया था बीस बाइस साल पहले।”

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मैं अचानक बोल पड़ा आपको सलाम है अब्दुल भाई।
“अगर आपको देर न हो रही हो तो क्या आप मेरे साथ एक चाय पीना पसंद करेंगे? आप हमारे शहर में मेहमान हैं।”

मैने तपाक से कहा क्यों नहीं। अब्दुल भाई ने एक चौराहे पर ऑटो खड़ा किया। चाय के साथ समोसा लेने की भी जिद की। मैं मना नहीं कर सका। पैसे देने लगा तो उन्होंने हाथ पकड़ लिया। फिर पता नहीं उन्हें क्या महसूस हुआ उन्होंने हाथ छोड़ दिया।

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मैने कहा अब्दुल भाई चाय के पैसे आप देंगे। वो बच्चे की तरह मुस्कुरा पड़े।

आगे बढ़ने पर मैंने पूछा आपने हाथ पकड़ने के बाद छोड़ क्यों दिया था अब्दुल भाई? वो उदास हो गए। कहने लगे-
“मियां हमारे पुरखों ने तो 47 में हिंदुस्तान का हाथ पकड़ा था। तब से कभी छोड़ा नहीं। लेकिन आजकल हाथ पकड़ो तो लोग गर्दन पकड़ लेते हैं।”

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मेरा मन रोने रोने का हुआ। अब्दुल भाई रौ में थे।

“जम्हूरियत को क्या बना दिया हमने भाई जान। हमने तो जिन्ना पर नेहरू को चुना था। गांधी को चुना था। फिर अब किस बात का फसाद।”

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मैं क्या कहता? सिर्फ इतना कह सका कि अब्दुल भाई हमारे पुरखों ने सैकड़ों इम्तिहान से गुजरके हमको एक आइन दिया था। अगली नस्ल को बेहतर मुल्क मिले इसके लिए हमको भी इम्तिहान देना होगा। इससे भाग तो नहीं सकते।

अब्दुल भाई मुस्कुराए। बोले आपको अल्लाह ने बड़ी साफ जुबान दी है। और एक अच्छा दिल।

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मड आ गया था। मैने मीटर देखा २६२ रुपए। मैने जेब से बटवा निकाला। अब्दुल भाई ने फिर से हाथ पकड़ लिया। इसबार छोड़ा नहीं। गले से लगा लिया। बटवा वापस जेब में डाल दिया।

कहा- “सवारियां तो दिनभर ढोता हूं। पर मैं कभी सफर में नहीं होता। आज आपके साथ मैं भी सफर में था। इसका दाम चुकाकर जलील मत कीजिए।”

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आज गैलरी में घूमते हुए चुपके से ली गई अब्दुल भाई को तस्वीर पर नजर पड़ी तो ये किस्सा उमड़ पड़ा। अब्दुल भाई ने मेरा नंबर लिया था। कहा था अगली बार मुंबई आएं तो इत्तिला करें। हवाई अड्डे से ही आपको उठा लूंगा। गलती ये हुई कि अब्दुल भाई नंबर सेव करने के चक्कर में मिस्ड कॉल करना भूल गए। मैं आपकी कॉल का इंतजार कर रहा हूं अब्दुल भाई।

चलते चलते, अब्दुल भाई MA हैं।

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1 Comment

1 Comment

  1. Pankaj jha

    September 27, 2021 at 10:39 am

    मैं कुछ कह नहीं सकता क्योंकि मेरे पास शब्द नहीं है सिर्फ मेरा गला भर आया है और आंख में आंसू है।

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