कारोबारी के अपहरण मामले की सीबीआई जांच होगी… पूर्व सासंद एवं बाहुबली अतीक अहमद को बरेली जेल से नैनी जेल में शिफ्ट करके प्रयागराज में फूलपुर,इलाहाबाद और इससे लगे कौशाम्बी संसदीय क्षेत्रों में अल्पसंख्यक मतदाताओं को प्रभावित करके महागठबंधन के प्रत्याशियों को नुकसान पहुँचाने के योगी सरकार के मंसूबे उस समय धूलधूसरित हो गये जब उच्चतम न्यायालय ने अतीक अहमद को नैनी जेल से गुजरात के जेल में स्थानांतरित करने का आदेश पारित कर दिया।कारोबरी को धमकी देने और अपहरण कर जेल की सेल में लाने के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह आदेश दिया है। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने कारोबारी के अपहरण मामले की सीबीआई जांच का भी दिया गया है।उच्चतम न्यायालय में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश दिया है।
गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर में एक बिजनेसमैन का अपहरण कर उसे जेल में लाकर मारने-पीटने के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय के नोटिस के बाद अपना जवाब दाखिल कर दिया था। इस मामले में अमाइकस क्यूरी वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार ने जो रिपोर्ट दाखिल की है उसमें इशारा किया गया है कि अतीक अहमद ने बिजनेसमैन का अपहरण किया था। साथ ही हंसारिया ने कहा था कि रिपोर्ट के मुताबिक घटना के समय जेल परिसर में न तो सीसीटीवी कैमरे काम कर रहे थे और न ही जेल मैन्युवल का पालन हुआ।
8 जनवरी 19 को मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने पीठ को इस घटना की जानकारी दी थी।उपाध्याय की याचिका में आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने वाले नेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने की गुहार की गई है।
गौरतलब है कि रियल एस्टेट डीलर मोहित जायसवाल ने गक्त 28 दिसंबर को अतीक अहमद के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी।इसमें आरोप लगाया था कि मोहित का लखनऊ से अपहरण कर देवरिया जेल में लाया गया है जेल में पीटा गया था और उसकी दो कंपनियों को हड़प लिया गया है। अतीक अहमद के गुर्गों ने 26 दिसंबर, 2018 को बिल्डर मोहित को सरेआम अगवा कर लिया था। मोहित को उसी गाड़ी से देवरिया जेल लाया गया था।आरोप है कि अतीक ने मोहित की बंधवाकर पिटाई करवाई. साथ ही उनकी दो कंपनियों को जबरन अपने गुर्गों के नाम करवा लिया। एफआईआर के बाद यूपी प्रशासन ने जेल में छापा भी मारा था। बाद में अतीक को देवरिया से बरेली जेल भेज दिया गया था।
बरेली जेल में बंद बाहुबली अतीक अहमद पिछले दिनों देवरिया जेल में मारपीट के एक मामले में देवरिया जेल से उन्हें पिछले दिनों बरेली सेंट्रल जेल शिफ्ट करा गया था। इसबीच उत्तर प्रदेश सरकार ने माफिया अतीक अहमद को स्वास्थ्य कारणों के आधार पर चुनाव आयोग की अनुमति से नैनी जेल स्थानांतरित कर दिया था। चुनाव प्रक्रिया के दौरान अतीक को तब नैनी जेल स्थानांतरित किया गया, जब कि अतीक का कार्यक्षेत्र प्रयागराज होने की जानकारी सर्वविदित है।
राजनीतिक हलकों में माना जाता है कि अतीक के सत्तारूढ़ पार्टी में कुछ वरिष्ठ नेताओं विशेषकर प्रदेश के एक कद्दावर मंत्री से बहुत घनिष्ठ सम्बंध हैं। यहाँ माना जा रहा है कि इलाहाबाद संसदीय, फूलपुर संसदीय और कौशाम्बी संसदीय क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों की परोक्ष मदद के लिए अतीक को यहाँ नैनी जेल लाया जा रहा है ताकि अतीक स्वयं या अपनी पत्नी को फूलपुर संसदीय से उतार कर अल्पसंख्यक वोटों में सेंध लगा सकें और सपा बसपा के महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकें। यदि अतीक यहाँ से चुनाव लड़ते हैं या अपनी पत्नी को लड़ते हैं तो तीनों सीटों पर महागठबंधन के वोटों में सेंध लग सकती है।
गौरतलब है कि राज्य सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में दाखिल रिपोर्ट में माना था कि एक कारोबारी को जेल में बुलाकर प्रताड़ित किया गया था। सीसीटीवी कैमरों से की गई छेड़छाड़। सरकार ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि प्रोपर्टी डीलर मोहित जायसवाल को जब जेल में लेकर आया गया तब जेल के सीसीटीवी कैमरों से छेड़छाड़ की गई थी। जेल में अतीक अहमद के साथ-साथ उनके साथियों को सुविधा दी गई थी।
अतीक खिलाफ लंबित मामले
यूपी सरकार ने उच्चतम न्यायालय को यह भी जानकारी दी है कि अतीक अहमद के खिलाफ़ वर्ष 1979 से 2019 तक 109 आपराधिक केस लंबित हैं। इनमें 17 केस हत्या के हैं। अतीक अहमद के खिलाफ 8 केस वर्ष 2015 से 2019 में दर्ज किए गए जिनमें अभी जांच चल रही है। इन केसों में 2 केस हत्या के हैं। अतीक अहमद वर्ष 1989 से 2004 तक विधायक और वर्ष 2004 से 2009 तक सांसद रह चुके हैं। गौरतलब है कि 8 जनवरी को इस जानकारी को उच्चतम न्यायालय ने गंभीरता से लिया था। जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस एस. के कौल की पीठ ने राज्य सरकार से दो हफ्ते में रिपोर्ट मांगी थी।
दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन पाबंदी की मांग
दरअसल वकील और दिल्ली भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने ये आदेश जारी किए थे। याचिका में दोषी राजनेताओं पर आजीवन चुनाव लडने पर पाबंदी की मांग की गई है। इसके लिए उन्होंने जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी है, जो कि दोषी राजनेताओं को जेल की अवधि के बाद 6 साल की अवधि के लिए चुनाव लडने से अयोग्य करार देता है। इस मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल एक नवंबर 2017 को फास्ट ट्रैक न्यायालयों की तर्ज पर नेताओं के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों के निपटारे के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना के लिए केंद्र को जरूरी निर्देश दिया था।