यशवंत उत्पीड़न प्रकरण : लोक व्यवहार सीखने में दिल्ली पुलिस की दिलचस्पी नहीं!

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अशोक कुमार शर्मा-

मैं पिछले दो दशकों से अधिक समय से विभिन्न विभागीय अफसरों, इंजीनियरों, डॉक्टरों, कारागार विभाग, पावर ग्रिड, पैरा मिलिट्री तथा पुलिस के उच्च अधिकारियों आईपीएस, पीपीएस, इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर्स और यहां तक कि पुलिस के सिपाहियों तक को बहुत से विषयों को पढ़ाता रहा हूं। ट्रेनिंग देता रहा हूं। इनमें से एक विषय है ‘आधुनिक पुलिस लोक व्यवहार’।

लेखक अशोक कुमार शर्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ. फाइल फोटो

जैसा कि नाम से जाहिर है लोक व्यवहार के प्रशिक्षण में पुलिस अधिकारियों को खास और आम व्यक्तियों से एक ही जैसा व्यवहार करने की हिदायत दी जाती है और साफ बताया जाता है कि जब तक दोष सिद्ध ना हो जाए किसी को अपराधी मानकर उसके विरुद्ध हिंसा करना अथवा कानून को अपने हाथ में लेना पुलिस के लिए आत्मघाती है क्योंकि जनता के पास में ऐसी परिस्थितियों के निदान के लिए न्यायालय हैं और न्यायालय किसी भी स्थिति में इस प्रकार की हरकतों को माफ नहीं करती और पुलिस वालों को बेहद कठोर दंड मिला करते हैं जिनमें उनके करियर बर्बाद हो जाया करते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालत तक किस प्रकार के निर्णय के हजारों मामले हैं। इसी प्रकार एक दूसरा विषय है जिसका नाम है “समानुभूति”। आप सही से समझिए यह सहानुभूति नहीं है। समानुभूति है। किसी भी व्यक्ति की परिस्थितियों से खुद को परिचित कराना और उसके समान अनुभव करना।

यह एक प्रकार से सहानुभूति से भी बड़ा है।

युवा अफसरों के साथ प्रशिक्षक अशोक कुमार शर्मा

अब तक हजारों पुलिसकर्मी यह प्रशिक्षण पा चुके हैं परंतु पूरे देश में दिल्ली ही एक ऐसा राज्य है जहां की पुलिस ने इस प्रकार के लोक व्यवहार और समानुभूति जैसे प्रशिक्षणों को महत्व नहीं दिया है। जाहिर है कि दिल्ली पुलिस अपने आप को ऐसे किसी भी प्रशिक्षण के योग्य नहीं मानती। यही कारण है कि पूरे देश में दंडात्मक कार्रवाइयों में सबसे ज्यादा नुकसान भी दिल्ली पुलिस को ही हुआ करता है।

इसका एक कारण यह भी है कि दिल्ली मीडिया की दृष्टि से बहुत सक्रिय और कानून की दृष्टि से बहुत व्यापक क्षेत्र है जहां स्थानीय अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक मौजूद हैं। राजनीति का यह गढ़ है और यहां पुलिस जैसा भी व्यवहार किसी के साथ करती है उसकी गूंज पूरे देश में सुनाई देती है और उसका असर भी हुआ करता है।

दिल्ली पुलिस अपने आप को सुधारे, संवारे, निखारे और आगे बढ़े इसके लिए यह जरूरी है कि शुरुआती खोजबीन से पहले व्यवहारिक मानवता को समझ ले। वरना इसकी चपेट में एक दिन दिल्ली पुलिस के आला अफसरों का आना तय है। पुलिस को हमेशा याद रखना चाहिए कि वह किसी भी व्यक्ति की कठपुतली नहीं है और अगर उन्होंने यह भ्रम पाल लिया और उसे तरह से आचरण किया, उसके न्यायिक परिणाम उन्हीं को झेलने पड़ेंगे ना कि जिनके हाथों में उनकी डोर है, उसे झेलने हैं। वो तो तस्वीर में कभी आएगा ही नहीं।

यशवंत सबकी मदद करने वाले इंसान हैं। हर मजबूर का साथ निभानेवाले देवदूत हैं। खासतौर से मीडिया बंधुओं के साथ किसी भी तरह के अन्याय के विरुद्ध लड़नेवाले योद्धा के साथ यह सब होना प्रथम दृष्टया शर्मनाक है। कोई भी व्यक्ति किसी बुद्धिजीवी की विचारधारा से बेशक हो सकता है और उसके विरुद्ध कार्रवाई करने के खुले हुए मार्गों को संवैधानिक माध्यमों से इस्तेमाल कर सकता है लेकिन किसी पत्रकार तो छोड़िए किसी आम मतदाता के साथ भी ऐसा होना अकल्पनीय है।

बहुत मुमकिन है कि देश के बहुत से मीडियाकर्मी गलत हों। मैं इससे इनकार नहीं करता। लेकिन प्रतिष्ठित पत्रकारों के साथ ठीक उसी तरह शालीन तथा मर्यादित आचरण होना चाहिए, जैसे किसी मामले में स्थापित राजनेताओं या बड़े अधिकारियों के साथ करने की परंपरा है।

दिल्ली पुलिस इस देश का दिल है। इसकी धड़कन में राष्ट्र के सम्मानित नागरिकों के सम्मान की सुर ताल ही भली लगेगी। उसे हिटलर की नाज़ी सेना बनने से रोकना होगा।


पूरा प्रकरण क्या है, इससे समझ सकते हैं-

https://www.bhadas4media.com/tag/acp-sanjeev-kumar-inspector-suraj-pal/

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