-राहुल राइजिंग-
हर दिवाली यह मंत्र पढ़ा जाता है, तमसो मा ज्योर्तिगमय! अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर चलें। लेकिन अंधकार से प्रकाश की ओर चलने की इस प्रक्रिया में लगता है कि हमने दुनिया भर में कुछ ज्यादा ही प्रकाश कर लिया। अब पता चल रहा है कि हमने दुनिया भर में जितनी लाइटें लगा रखी हैं, ये हमको तो नुकसान पहुंचा ही रही हैं, धरती के हर जीव-जंतु, यहां तक कि हमारे शरीर में रहने वाले रोगाणुओं को भी हमारे जैसा उदास, निराश, हताश और भ्रमित बनाने लगी हैं।
जब तक पुराना पीला बल्ब टिमटिमाता था, तब तक तो मामला कुछ ठीक था। लेकिन जब से ये सस्ते एलईडी बल्ब और कई तरह की लेजर लाइट्स आ गई हैं, धरती पर प्रकाश इंसानों की आबादी से भी दोगुनी रफ्तार से बढ़ने लगा है।
इंसान हर साल 1 फीसद के आसपास बढ़ते हैं तो प्रकाश दो फीसद तक बढ़ रहा है। इसकी वजह से हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि कीट-पतंगों ने परागण कम कर दिया है, जो इस ग्रह में चलने वाली फूड साइकिल की चाबी है। पेड़ों में वसंत से पहले ही कल्ले फूटने लगे हैं, तो समुद्र किनारे बने होटलों की जगमगाती लाइट देखकर कछुए रात में सनबाथ करने तटों पर आ रहे हैं।
इंग्लैंड की एक्सेटर यूनिवर्सिटी में हुई इस रिसर्च में पिछले पंद्रह सालों के दौरान पब्लिश हुए 126 रिसर्च पेपरों को साथ में मिलाकर कहा गया है कि सरकारों को अब प्रकाश प्रदूषण के बारे में भी गंभीरता से एक्शन लेना होगा, क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन से कम बड़ी मुसीबत नहीं है।
हालांकि इस स्टडी में सब कुछ बुरा ही नहीं पाया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया की कुछ खास जगहों पर रहने वाली प्रजातियों को रात में जलती इन रोशनियों से फायदा मिला है। कुछ पौधे हैं, जो इनके चलते जल्दी बड़े हुए और कुछ चमगादड़ भी बढ़े। लेकिन कुल मिलाकर इससे नुकसान ही हुआ है। सबसे बड़ा नुकसान तो यह कि इससे इंसान सहित रोगाणुओं के भी व्यवहार बदलने लगे हैं।