Sanjaya Kumar Singh : असली विकास तो महंगाई का हुआ है… इस सरकार ने असली विकास महंगाई बढ़ाने में किया है। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत पर कोई नियंत्रण नहीं है। गैस की सबसिडी छुड़ा दी और जिसे दी उसके लिए इतनी महंगी है कि पूरा प्रयास ही बेकार गया। रेलों का किराया वैसे ही बढ़ा दिया है।
रेल किराए का हाल यह है कि अगर सीधी फ्लाइट है तो विमान किराया हमेशा कम होता है। अगर रेलवे की तरह तीन चार महीने पहले टिकट लेना हो तो कोई बात ही नहीं है। अगर हवाई अड्डे से 100-200 किलोमीटर टैक्सी से भी जाना पड़े तो समय इतना बचता है कि अपर क्लास में ट्रेन से चलने का कोई मतलब नहीं है। बाकी रेलवे स्टेशन की हालत – ना लिफ्ट ना एसक्लेटर ना एसी और ना साफ शौंचालय। अगर 200 किलोमीटर से 1000 किलोमीटर के बीच की यात्रा हो और आप अकेले नहीं जा रहे हैं तो गाड़ी से जाने का विकल्प भी सेकेंड एसी के मुकाबले सस्ता पड़ेगा। रिजर्वेशन नहीं मिलने की हालत में अब तो लोग टैक्सी से भी चलने लगे हैं हालांकि टोल और बिना टोल वाली सड़कें – यात्रा को खतरनाक बनाती हैं।
महंगाई बढ़ाने और जीवन मुश्किल करने में रही सही कसर मेट्रो का किराया बढ़ाकर पूरी कर दी गई है। मेट्रो से चलना कम होता है इसलिए महसूस नहीं हुआ पर पिछले दिनों लगा कि किराया लगभग दूना हो गया। यह हाल तब है जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने किराया बढ़ाने का विरोध किया था और आम समझ यही है कि सार्वजनिक परिवहन का किराया इतना कम होना चाहिए कि लोग उसका उपयोग करने के लिए प्रेरित हों। मेट्रो का बढ़ा हुआ किराया 100 सीसी की मोटरसाइकिल पर चलने से सस्ता नहीं है।
पेट्रोल की कीमत बढ़ने के बावजूद। मेट्रो में मेट्रो के किराए के अलावा घर से स्टेशन और स्टेशन से ऑफिस जाने का भी खर्च होता है, समय लगता है और इस लिहाज से ज्यादा दूर न हो तो कोई भी मोटर साइकिल से जाना पसंद करेगा। दूसरी ओर, कम कमाने वालों के लिए दोनों ही विकल्प महंगे हैं। उनके लिए अब सोचा ही नहीं जाता है। वैशाली से मेट्रो चलने लगी तो मैंने नियम बनाया था कि अकेले जाना हो तो मेट्रो से ही जाउंगा। पर अब लगता है यह नियम तोड़ना पड़ेगा। आखिर खड़े होकर यात्रा करने की कोई तुक तो हो।
मुझे याद है कि दो-तीन साल पहले पत्नी बीमार थी तो वैशाली से एम्स कई बार जाना होता था और एक तरफ के 19 रुपए लगते थे। यह 19 रुपए मुझे इसलिए भी याद है कि बहुत साल पहले जब मैं मयूर विहार में रहता था और एम्स जाना होता था तो ऑटो वाला एक तरफ के बीस रुपए लेता था। वर्षों बाद मेट्रो में 19 रुपए में काम हो जाता था तो महंगा नहीं लगता था।
पिछली बार वैशाली से जनकपुरी जाने के 50 रुपए लगे तो माथा ठनका। पर कोई चारा तो था नहीं। पिछले दिनों बाराखंबा रोड तक जाना हुआ तो 30 रुपए से ऊपर कट गए। यकीन नहीं हुआ तो नेट पर चेक किया और वाकई लंबी दूरी के किराए दूने हो गए हैं। आप सोचिए राजीव चौक से बदल कर एम्स तक के 19 रुपए लगते थे और अब राजीव चौक से पहले ही 30 रुपए से ऊपर। इस ‘ईमानदार’ सरकार से अच्छी तो वो भ्रष्ट सरकार ही थी! सबसिडी देती ही थी, दाम कम थे और नोटबंदी व जीएसटी लगाने का शौक नहीं था। इससे हम भी कमा तो सकते थे।
भारतीय रेल और भक्तोलॉजी
ट्रेन लेट चलने की शिकायत बढ़ गई तो भक्तों ने तर्क दिया कि पटरियों की मरम्मत के कारण ट्रेन लेट हो जाती है। फिर रेलवे ने सफाई दी कि बड़े पैमाने पर मेनटेनेंस का काम चल रहा है इसलिए ट्रेन लेट चल रही है। उसकी प्राथमिकता यात्रियों को सुरक्षित रखना है और दुर्घटनाएं कम हुई हैं आदि। इकनोमिक टाइम्स ने मई में खबर छापी थी कि 30 प्रतिशत ट्रेन लेट चल रही थीं और समय पालन के मामले में पिछला साल गुजरे तीन साल में सबसे खराब रहा। आम यात्री इस बारे में पूछता नहीं है, गोदी मीडिया अपनी सेवा में लगा है और सरकार खुद कुछ बताती नहीं है।
क्या आपने सुना कि बड़े पैमाने पर चलाए गए मेनटेनेंस कार्यों के तहत कहां क्या काम हुए, कितने पैसे खर्च हुए और ट्रेन लेट चलने से कितना नुकसान हुआ और यह काम कब तक चलेगा और कब ट्रेन समय से चलने लगेगी? नालायकी का आलम यह है कि सेकेंड एसी का टिकट लेकर थर्ड एसी में यात्रा करना पड़ा (उस दिन यही कोच था) और रेलवे ने किराए का अंतर वापस नहीं किया। ना पहले सूचना दी कि सेकेंड एसी का कोच नहीं है ना ये बताया कि क्या करना है। टीटीई ने कहा कि अपने आप पैसे वापस आ जाएंगे पर महीने भर से ज्यादा हो गया कोई पता नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.
https://www.youtube.com/watch?v=RdlXRolMO38