संजीव चौहान-
हिंदुस्तान के मशहूर फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट डॉ. के एल शर्मा नहीं रहे। 8 मार्च 2024 को जब हिंदुस्तान महाशिवरात्रि के पावन पर्व के उल्लास में मशरूफ था तब, डॉ. शर्मा इस झंझावती मृत्युलोक से अपनी उस अनंत यात्रा पर निकल चुके थे जहां से, किसी की भी वापिसी अंसभव है।
आज उनकी अनुपस्थिति में, इस विशेष-लेख के जरिए उनसे जुड़े संस्मरणों का यहां जिक्र करने के लिए विवश कर रहा है। ताकि इस फॉरेंसिक साइंस/फॉरेंसिक मेडिसन की दुनिया में आने वाली तमाम पीढ़ियों के वास्ते सनद रहे। यहां जिक्र कर रहा हूं उन्हीं बिरले फॉरेंसिक मेडिसन एक्सपर्ट डॉ. के एल शर्मा का, जिन्हें देश में मौजूद फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स की बाकी तमाम भीड़ का हिस्सा बनना कभी गवारा ही नहीं हुआ।
बतौर श्रृद्धांजलि, जिक्र उन काबिल-ए-तारीफ फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट डॉ. के एल शर्मा का, जिन्हें महारत हासिल थी, पोस्टमॉर्टम हाउस में टेबल पर सामने मौजूद किसी भी ‘लाश’ के कातिल की गर्दन तक लाश को देखते ही पहुंच जाने की। महज मुर्दे और कातिल की चूड़ी-चप्पल, खाल-बाल और बिंदी के बलबूते। उनकी इस काबिलियत का कायल मैं ही नहीं अपितु, हिंदुस्तानी फॉरेंसिक साइंस/फॉरेंसिक मेडिसिन की दुनिया में उनके वरिष्ठ-कनिष्ठ दोस्त और दुश्मन सब शामिल थे हैं और आइंदा भी रहेंगे। यूं तो फॉरेंसिक साइंस की दुनिया समुद्र है।
डॉ. के एल शर्मा ने मगर जिन मुर्दों के मुजरिमों की गर्दन तक, दिल्ली पुलिस को अपने फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट जीवन-काल में पहुंचाकर, कानून और खाकी की इज्जत में हमेशा चार-चांद ही लगाए। वे आज भी दिल्ली पुलिस अफसर-कर्मचारियों और देश व दिल्ली की अदालतों में मौजूद दस्तावेजों में बतौर सबूत मौजूद हैं। जिनकी गिनती कर पाना शायद ही आज तक कभी किसी के लिए मुनासिब हो सका हो। इनकी तादाद इतनी बड़ी है कि आइंदा भी शायद कोई ऐसे नामचीन डॉ. के एल शर्मा के द्वारा फॉरेंसिक साइंस की दुनिया में पेश इन उदाहरणों की गिनती कर सकेगा, जो आज मील का पत्थर साबित हो चुके हैं।
17 अप्रैल सन् 1945 को यानी अब से करीब 79 साल पहले ऐसे होनहार फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट डॉ. के एल शर्मा का जन्म हुआ था, राजस्थान राज्य के अलवर जिलांतर्गत स्थित गांव बानसूर में। साल 1968 में मात्र 23 साल की छोटी सी उम्र में ही उन्होंने, उदयपुर (राजस्थान) स्थित रविंद्रनाथ टैगोर कॉलेज से एमबीबीएस कर लिया। डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करते ही वे राजस्थान राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग में सिविल असिस्टेंट सर्जन बन गए। जोकि उस जमाने के नजरिए से तब 23 साल के किसी भारतीय युवा के लिए बड़ी उपलब्धि थी। हालांकि बाद में साल 1973 में डॉ. के एल शर्मा उत्तर प्रदेश राज्य के रामपुर और लखनऊ जिला में जिला स्वास्थ्य और सिटी प्रभारी भी बने।
22 फरवरी सन् 1975 को डॉ. के एल शर्मा केंद्रीय लोक सेवा आयोग के जरिए, केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा में चयनित हो गए। यहां सेवारत रहते हुए ही उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से साल 1982 में फॉरेंसिक मेडिसिन (न्यायालिक आयुर्विज्ञान) में परास्नातक की डिग्री हासिल कर ली। ऐसे होनहार डॉ. के एल शर्मा ही वो बिरले हिंदुस्तानी युवा भी साबित हुए थे जिन्होंने उस जमाने में, फॉरेंसिक मेडिसिन में पहले पोस्ट ग्रेजुएट होने का गौरव हासिल किया था।
अब से 4-5 साल पहले यह बात डॉ. के एल शर्मा ने काफी कुरेदे जाने पर, पूर्वी दिल्ली के वसुंधरा एन्क्लेव स्थित पवित्रा अपार्टमेंट वाले अपने आवास पर खुद, इस लेखक से उजागर की थी। यहां जिक्र हो रहा है उन्हीं डॉ. के एल शर्मा का जिनके सामने खड़े होने की जुर्रत, कभी कोई गलत या संदिग्ध आचरण वाला पुलिस अफसर या कर्मचारी कभी नहीं कर सका। फॉरेंसिक साइंस की दुनिया में मुर्दों और मुजरिमों के मामलों में भी ‘मसाला’ खोजने वाले अखबारनबीस अक्सर एक्सक्लूसिव खबरों के फेर या उम्मीद में, डॉ. के एल शर्मा के चारों ओर मधुमक्खी की मानिंद मंडराते तो देखे जाते थे। उनसे मगर कभी कोई खबरनवीस खबर लीक करके नहीं ला सका। डॉ. के एल शर्मा की मर्जी के बिना। इन तमाम तथ्यों की पुष्टि दिल्ली स्थित लोक नायक जयप्रकाश नरायण अस्पताल के (एलएनजेपी हॉस्पिटल) के मशहूर डॉक्टर और पूर्व चिकित्सा अधीक्षक डॉ. विकास रामपाल भी बातचीत में करते हैं।
डॉ. विकास रामपाल लंबे समय तक देश की सबसे पुरानी और बड़ी मोर्च्यूरी (दिल्ली के सब्जीमंडी बर्फखाना इलाके में स्थित) में डॉ. के एल शर्मा के मातहत फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट के बतौर काम कर चुके हैं। फॉरेंसिक साइंस में लंबे समय तक डॉ. के एल शर्मा के निर्देशन में तमाम वरिष्ठ पदों पर तैनात रह चुके, देश के मशहूर और चर्चित फॉरेंसिक मेडिसन एक्सपर्ट डॉ. एल सी गुप्ता कहते हैं, ‘फॉरेंसिक मेडिसन की नौकरी में गुरु जी (डॉ. के एल शर्मा) ने जीवन भर जो चाहा वही किया। उन्हें किसी के हुकूम की तामील करने की आदत तो मानो जन्मजात थी ही नहीं। बहैसियत फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट उनका एक ही फार्मूला था कि वे, खुद को सिर्फ और सिर्फ कोर्ट-कानून के प्रति जवाबदेह मानते रहे। यही वजह थी कि पोस्टमॉर्टम टेबल पर मौजूद मुर्दे (लाश) पर नजर डालने के बाद वे, इंक्वेस्ट पेपर पर (पुलिस द्वारा पोस्टमॉर्टम के लिए लाई गई लाश संबंधी दस्तावेज) नजरें गड़ा देते थे। उसके बाद जब वे पोस्टमॉर्टम के लिए मुर्दे को लेकर पहुंचे, पुलिस अफसर की ओर आंखें मिलाकर देखते थे तो, उसे जाड़े में भी पसीना आ जाता था। यह सोचकर कि न मालूम डॉ. के एल शर्मा उससे क्या सवाल दाग बैठें? और जवाब न दे पाने की स्थिति में समझिए की जांच अधिकारी की खाकी वर्दी पर कब शामत बन आए?
श्रृद्धांजलि देते वक्त हिंदुस्तान के ऐसे नामी फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट डॉ. के एल शर्मा के बारे में बताना जरूरी है कि, वे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया, सफदरजंग, एलएनजेपी जैसे हिंदुस्तान के मशहूर अस्पतालों में कई साल तक बहैसियत फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट नियुक्त रहे थे। उनके अधीनस्थ लंबे समय तक बहैसियत फॉरेंसिक साइंस काम करने का अनुभव रखने वाले डॉ. सर्वेश टंडन बताते हैं, ‘सर से मैंने फॉरेंसिक साइंस की दुनिया की एबीसीडी सब्जी मंडी मोर्च्यूरी में उनके अधीन तैनाती के कार्यकाल में सीखी-समझी थीं। जो आज भी मेरे काम आ रही हैं और आइंदा भी जीवन-पर्यंत काम आएंगीं।’
साल 1996 में सब्जी मंडी मोर्च्यूरी में फॉरेंसिक चीफ बनने के बाद यहीं से, ऐसे बिरला डॉ. के एल शर्मा साल 2005 में सेवा-निवृत्त हुए थे। उस कार्यकाल में उन्होंने 25 हजार से ज्यादा शवों का पोस्टमॉर्टम किया था। यह बात भी डॉ. के एल शर्मा ने मुझे 4-5 साल पहले उनके घर पर हुई मेरी विशेष मुलाकात के दौरान बताई थी। यह बेबाक संस्मरण कहिए या फिर जिक्र था, उन्हीं डॉ. के एल शर्मा का जो साल 1984 में देश की राजधानी दिल्ली में हुए, सिख विरोधी दंगों के मेडिकल बोर्ड के चेयरमैन भी रहे थे।
संजीव चौहान देश के वरिष्ठ खोजी पत्रकार हैं।