Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

इस व्यवस्था में कितना मुश्किल है किसी गरीब का जी पाना… जानिए जानी आलम की कहानी

Vikas Mishra : हर इंसान में कहानी है। कई बार तो लगता है कि कहानियों से लैस इंसान अक्सर मुझसे टकरा जाता है। एक पेंटर है-जानी आलम, बिल्कुल दुबला-पतला। मेरे किराए वाले घर को उसी ने पेंट किया, बाद में अपने घर में भी उसी से पेंटिंग करवाई। कल तक उसके बारे में इतना ही जानता था- मेहनती है, ईमानदार है, जरूरतमंद है और गरीब भी। आज काम खत्म हो गया था। वो फाइनल पेमेंट लेने आया था। मैंने उसे पेमेंट के साथ जींस का पैंट और शर्ट दिया, कुछ इनाम भी। (ये मेरी मां का फरमान है कि अगर कोई दो दिन से ज्यादा घर में काम करता है, तो उसे कपड़ा और कुछ इनाम जरूर देना, मेहनतकश लोगों की दुआएं लगती हैं) कपड़े और इनाम पाकर जानी खुश बहुत हुआ, इतना कि रोने ही लगा। जींस नापा तो फिट था, कमर थोड़ी ढीली थी। मैं अंदाज से 30 नंबर का ले आया था, लेकिन उसकी कमर तो 28 इंच की निकली। खैर जानी बोला-कोई बात नहीं सर जी। हफ्ते भर ठीक से खाऊंगा तो टाइट हो जाएगी। वो तो परेशानियों ने मार रखा है, वरना मैं ऐसा नहीं था।

<p>Vikas Mishra : हर इंसान में कहानी है। कई बार तो लगता है कि कहानियों से लैस इंसान अक्सर मुझसे टकरा जाता है। एक पेंटर है-जानी आलम, बिल्कुल दुबला-पतला। मेरे किराए वाले घर को उसी ने पेंट किया, बाद में अपने घर में भी उसी से पेंटिंग करवाई। कल तक उसके बारे में इतना ही जानता था- मेहनती है, ईमानदार है, जरूरतमंद है और गरीब भी। आज काम खत्म हो गया था। वो फाइनल पेमेंट लेने आया था। मैंने उसे पेमेंट के साथ जींस का पैंट और शर्ट दिया, कुछ इनाम भी। (ये मेरी मां का फरमान है कि अगर कोई दो दिन से ज्यादा घर में काम करता है, तो उसे कपड़ा और कुछ इनाम जरूर देना, मेहनतकश लोगों की दुआएं लगती हैं) कपड़े और इनाम पाकर जानी खुश बहुत हुआ, इतना कि रोने ही लगा। जींस नापा तो फिट था, कमर थोड़ी ढीली थी। मैं अंदाज से 30 नंबर का ले आया था, लेकिन उसकी कमर तो 28 इंच की निकली। खैर जानी बोला-कोई बात नहीं सर जी। हफ्ते भर ठीक से खाऊंगा तो टाइट हो जाएगी। वो तो परेशानियों ने मार रखा है, वरना मैं ऐसा नहीं था।</p>

Vikas Mishra : हर इंसान में कहानी है। कई बार तो लगता है कि कहानियों से लैस इंसान अक्सर मुझसे टकरा जाता है। एक पेंटर है-जानी आलम, बिल्कुल दुबला-पतला। मेरे किराए वाले घर को उसी ने पेंट किया, बाद में अपने घर में भी उसी से पेंटिंग करवाई। कल तक उसके बारे में इतना ही जानता था- मेहनती है, ईमानदार है, जरूरतमंद है और गरीब भी। आज काम खत्म हो गया था। वो फाइनल पेमेंट लेने आया था। मैंने उसे पेमेंट के साथ जींस का पैंट और शर्ट दिया, कुछ इनाम भी। (ये मेरी मां का फरमान है कि अगर कोई दो दिन से ज्यादा घर में काम करता है, तो उसे कपड़ा और कुछ इनाम जरूर देना, मेहनतकश लोगों की दुआएं लगती हैं) कपड़े और इनाम पाकर जानी खुश बहुत हुआ, इतना कि रोने ही लगा। जींस नापा तो फिट था, कमर थोड़ी ढीली थी। मैं अंदाज से 30 नंबर का ले आया था, लेकिन उसकी कमर तो 28 इंच की निकली। खैर जानी बोला-कोई बात नहीं सर जी। हफ्ते भर ठीक से खाऊंगा तो टाइट हो जाएगी। वो तो परेशानियों ने मार रखा है, वरना मैं ऐसा नहीं था।

जानी ने अनोखी दास्तान सुनाई। सात साल पहले उसने एक लड़की से प्रेम विवाह किया था। हालांकि लड़की भी मुस्लिम थी, फिर भी घर वालों ने जानी का साथ छोड़ दिया। गाजियाबाद आकर मेहनत-मजदूरी करने लगा, पेंटिंग आती थी, काम भी मिलने लगा। शादी के एक साल बाद एक बेटी और पांच साल बाद एक बेटे का पिता बना। इस बीच उसकी बीवी की भाभी ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। उसके मायके वालों ने रिपोर्ट लिखाई तो जानी की बीवी का नाम भी लिखवा दिया, जिसका मायके से बरसों पहले नाता करीब करीब टूट चुका था, लेकिन कानून की माया..पुलिस ने उसे गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। डेढ़ साल के बेटे के साथ वो जेल चली गई, छह साल की बेटी जानी के पास रह गई। दिन रात वो उसी के पास रहती। काम पर जाता तो साथ ले जाता। जानी कह रहा था-सर जी बेटी से ज्यादा ही मुहब्बत हो जाती है। वो मेरे बिना एक मिनट नहीं रह पाती थी। जहां जाता, साथ में चिपकी रहती थी। जानी की सबसे बड़ी चुनौती बीवी को जेल से छुड़ाने की थी। इंसाफ की अंधी देवी को जानी की हालत वैसे भी नहीं दिखाई देनी थी। कुछ पुलिस को चढ़ावा गया, कुछ वकीलों को और कुछ जेल में भी। कर्जा चढ़ता गया, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। दिन रात मेहनत करता रहा, बचे वक्त में बीवी को जेल से छुड़ाने के लिए इस दर, उस दर भटकता था। आखिरकार इसी ईद के चार दिन पहले उसकी बीवी जेल से जमानत पर छूट गई, पूरे सात महीने बाद..। लेकिन इस सारी कवायद में जानी करीब दो लाख रुपये का कर्जदार हो गया। बोल रहा था-सर जी एक से कर्जा लिया था, कल आकर सिर पर सवार हो गया, मैंने कहा भाई मैं भागा नहीं जा रहा हूं, बिना चुकाए मरूंगा भी नहीं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पड़ोस में एक चौधरी है, प्रॉपर्टी डीलर है। उसका प्लाट है, आधा बना हुआ है, आधा खाली है। उसमें वो भैंस और गाय रखे हुए है। जानी उसी में एक छोटी सी कोठरी में परिवार के साथ रहता है। चौधरी की गाय और भैंस की देखभाल करता है, गोबर उठाता है, साफ सफाई करता है। चौधरी उससे किराया नहीं लेता। जानी कहता है-सर जी, कर्जदारों के तकादों से ऊबकर कई बार मन करता है कहीं भाग जाऊं, खुद को खतम कर लूं, लेकिन जब बेटी का चेहरा देखता हूं, तो भीतर से आवाज आती है कि मेरे बिना इसका क्या होगा। बेटी के लिए ही जीना है सर जी। आप ये कहानी पढ़ रहे हैं और मैं ये कहानी उससे सुन रहता था, जिस पर ये बीती थी। अगर इसे पढ़कर आपके भीतर कुछ हुआ तो आप अंदाजा लगा सकते हैं मेरे भीतर कितना कुछ हुआ होगा।

आजतक न्यूज चैनल में कार्यरत पत्रकार विकास मिश्र के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement