Anil Singh : महुआ भारतीय जीवनशैली, संस्कृति और परंपरा से जुड़ा पेड़ है। आदिवासी समाज में तो इसे जीवन का वृक्ष मानता है। बचपन में इसके ताजा फूलों को बीनने, खाने की यादें अब भी जेहन में ताज़ा हैं। इसके मीठे ठेकुआ का स्वाद अब भी नहीं भूला। कोइनी बीनने और घानी में उसका तेल निकालना भी याद है। आजी, उसके जो उपयोग बताती थीं, वह भी याद है।
लेकिन इधर अहमदाबाद आया हुआ हूं तो पता चला कि गुजरात का वन विभाग महुआ के फूलों को तोड़कर नष्ट कर देता है, क्योंकि राज्य में शराब-बंदी लागू है और महुआ का एक इस्तेमाल शराब बनाने में भी किया जाता है। सुनकर ऐसा लगा जैसे कोई भ्रूण हत्या कर रहा हो। ऐसा तब है जब महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल व दिल्ली जैसे अनेक राज्यों में इसे संरक्षित पेड़ माना गया है। हो सकता है कि गुजरात में भी ऐसा हो। लेकिन जब फूल ही नहीं होंगे तो फल कहां से आएंगे और जब फल (कोइनी) नहीं होंगे तो महुआ के नए पेड़ कहां से आएंगे? इसलिए मुझे तो लगता है कि शराब-बंदी के नाम पर किसी भी सरकार को भारत की प्राकृतिक संपदा के ऐसे विनाश की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए।
कई न्यूज चैनलों-अखबारों में उच्च पदों पर कार्यरत रहे और इन दिनों मुंबई में रहकर अर्थ कॉम डॉट कॉम का संचालन कर रहे वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह के फेसबुक वॉल से.