प्रिय अखिलेश भैया,
जब 2012 में चुनाव था, तब मेरे पास वोट नही था। सपा नापसन्द होते हुए भी मैंने आपको सपोर्ट किया, दूसरों को कहा आपको वोट दें। ऐसा सुनने में आता रहा कि आप तो इस परिवारवाद से ऊपर आना चाहते हैं लेकिन आपके ही घर के लोग आपको फैसले नहीं करने देते, वगैरह!! तो मुझे आपसे यह कहना है कि फैसले कदम दर कदम लिए जाते हैं। आपने तब क्यों नहीं आवाज़ निकाली जब मुजफ्फरनगर दंगे हो रहे थे, और सैफई में नाच होता रहा।
जिस ढंग से पार्टी ऑफिस पर कब्ज़ा हुआ, उससे क्या जताना चाहते हैं? जैसे कि उत्तर प्रदेश आपकी सल्तनत है और आप इसके शहज़ादे जो तख़्तापलट करेंगे! नेता जो थे, वो आपके पिता श्री हैं । उनका संघर्ष है ये पार्टी । कांग्रेस के भक्ति काल में जब वो प्रचार के लिए गांव गांव जाते थे तब काले झंडे से ले कर जूते तक, सब उन्होंने सहा है और हिम्मत नहीं हारी है । आज इटावा में अहीरों को जो इज़्ज़त मिली है, उनकी देन है, भले इसका गलत फायदा उठाया जा रहा है तब भी । आपको उनकी बे इज़्ज़ती करने का कोई अधिकार नहीं है।
आपने पार्टी पर कब्ज़ा कर के ये सिद्ध किया कि आपको स.पा. की बैसाखी की जरूरत है, आपका अचानक से यह दुस्साहस आपकी बौखलाहट दिखा रहा है । आप परिवारवाद से निकले ही नहीं, एक चाचा छोड़ा तो दूसरे को लाद लिया !! आप को खुद को सिद्ध करना ही था तो छोड़ते पार्टी, और करते संघर्ष ! इस बार नहीं भी तो अगली बार बनते मुख्यमंत्री और तब कहलाते आप नेता, अपने पिता की तरह!
सपा को उसके हाल पर छोड़ते, पिता जी की जिंदगी भर की मेहनत थी वो ! आपके पिता में लाख़ कमी रही लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वो आपसे बेहतर देख पा रहे होंगे कि आप के पिछलग्गू क्या कर रहे हैं । आपको चने के झाड़ पर चढ़ाया जा रहा है और आप चढ़ रहे हैं! अगर आप चुनाव जीतते हैं तो उम्मीद है कि आप अपनी अक्ल चलाएंगे, सलाहकारों की नहीं!
इस बार एक वोटर!
लेखिका अपूर्वा प्रताप सिंह आगरा की निवासी हैं और सोशल मीडिया पर बेबाक टिप्पणियों के लिए जानी पहचानी जाती हैं. उनका यह लिखा उनकी एफबी वॉल से साभार लेकर भड़ास पर प्रकाशित किया गया है.
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