Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

‘इनदिनो’ अख़बार के फाउंडर-एडीटर एसएम आसिफ का इंतेक़ाल

नवेद शिकोह-

इनदिनो अख़बार के फाउंडर-एडीटर एस एम आसिफ का इंतेक़ाल

Advertisement. Scroll to continue reading.

इन दिनों उर्दू अखबारों के मर जाने का सीजन चल रहा है। बुरे दिनों से गुजर रही उर्दू सहाफत को एक बड़ा झटका लगा है।उर्दू रोज़नामा इनदिनों अखबार के फाउंडर -संपादक एस एम आसिफ का आज सुबह दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में इंतेक़ाल हो गया। वो किडनी वगैरह की खराबी के होते बीमार चल रहे थे और उनका काफी दिनों से इलाज चल रहा था।

उर्दू सहाफत की दुनियां में मरहूम का तआआऊ (योगदान)भुलाया नहीं जा सकता। नब्बे के दशक के शुरुआती दौर में उर्दू की मिठास का शहर लखनऊ उदास था। उर्दू अखबार का मतलब था पंडित जवाहरलाल नेहरू के हेराल्ड ग्रुप का क़ौमी आवाज़। इस अखबार की गोद में उर्दू सहाफत फल फल-फूल रही थी। उर्दू भाषा इसी अखबार पर निर्भर थे। नब्बे के दशक की शुरुआत में जब क़ौमी आवाज़ का डाउनफॉल चल रहा था, अखबार बंदी की कगार की तरफ बढ़ रहा था, तो बहुत लोग उदास थे। हेराल्ड ग्रुप और कौमी अवाज के अनगिनत मुलाजिमों के साथ लाखों पाठक फिक्रमंद थे। उस वक्त राष्ट्रीय सहारा ग्रुप ने रोजनामा राष्ट्रीय सहारा शुरू करके किसी हद तक सहारा दिया। लेकिन कॉरपोरेट जगत का ये अखबार क़ौमी आवाज़ की जगह नहीं ले सकता है। उन दिनों ही एस एम आसिफ साहब ने इनदिनों अख़बार की शुरुआत की और फिर कौमी आवाज़ की कमी का खलना कम कर दिया।
अदब और उर्दू सहाफत के शहर में आसिफ साहब के इस अखबार को लखनऊ से शाया (प्रकाशित) करने की ज़िम्मेदारी ज़हीर मुस्तफा साहब ने निभाई। क़ौमी आवाज़ की तमाम हस्तियों ने इन दिनों में काम किया। ज़हिर मुस्तफा साहब की मेहनत रंग लाई और आसिफ साहब का ये अखबार उत्तर प्रदेश में उर्दू का टॉप अखबार बन गया। कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, राम प्रकाश गुप्ता, मुलायम सिंह और मायावती के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में ये अखबार खूब फला-फूला। क़ाबिले ग़ौर बात ये है कि राम जन्म भूमि आंदोलन और बाबरी विध्वंस के तआसुब (साम्प्रदायिक माहौल) के दौरान भाजपा की हुकुमतों में भी उर्दू अखबारों के साथ सरकार कोई भी सौतेलापन नहीं दिखाती थी। कल्याण सिंह और राजनाथ हुकुमतों में इनदिनों को सिर आंखों पर लिया जाता था। एस एम आसिफ, और ज़हीर मुस्तफा की सरपरस्ती में इनदिनों में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार आसिफ जाफरी, जावेद ज़ैदी, राहिल आग़ा और ज़हीर इक़बाल बताते हैं कि उन दिनों “इनदिनों”को मुलायम और मायावती की हुकुमतों से ज्यादा कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह की हुकुमतों को सरकारी सहयोग और तवज्जो दी जाती थी।‌ कल्याण सिंह की हर पीसी में आंमत्रित चंद अखबारों में इनदिनों का नाम प्रथम पंक्ति में होता था।
वक्त गुज़रा महीने और साल ग़ुजर गए, उर्दू सहाफत और उर्दू अखबारों के खराब हालात के साथ इनदिनों के भी हालात खराब हो गए, एम एम आसिफ की सेहत खराब हो गई। इनदिनों अब नज़र नहीं आता, आसिफ भाई तो अब कभी नज़र नहीं आएंगे।
इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैही राजिऊन

  • नवेद शिकोह
1 Comment

1 Comment

  1. Shakun Raghuvanshi

    September 21, 2023 at 3:27 pm

    In really he was a good person and a socialist too. He was president of Rashtriya Alpsankhyak Morcha. I was attached with In Dinon (Hindi) at New Delhi in my early days of journalism.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास तक खबर सूचनाएं जानकारियां मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group_one

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement