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मजीठिया वेज बोर्ड देने से पहले नौकरी छोड़ने के लिए दबाव बना रहा नई दुनिया प्रबंधन!

श्रवण गर्ग के नई दुनिया से विदा होने के बाद पत्रकारों पर बिजनेस लाने के लिए दबाव दिया जाने लगा है. पिछले माह 17 सितंबर को जबलपुर मुख्यालय में ब्यूरो की मीटिंग की गई. मीटिंग में इंदौर से भी कुछ लोग आए थे. मीटिंग में पत्रकारों से कहा गया कि अब आपको न्यूज के साथ बिजनस और सर्कुलेशन भी देखना है. इसके बाद इसी माह 15 नंवबर को एक बार फिर मीटिंग का आयोजन जबलपुर कार्यालय में किया गया. इस मीटिंग में सभी ब्यूरो को अलग अलग बुलाकर डांट पिलाई गई. निकाले जाने की धमकी भी दी गई. मीटिंग के बाद से देखने में आ रहा है कि न सिर्फ बिजनेस बल्कि न्यूज में भी डेस्क प्रभारियों के रंग बदल गए हैं.

<p>श्रवण गर्ग के नई दुनिया से विदा होने के बाद पत्रकारों पर बिजनेस लाने के लिए दबाव दिया जाने लगा है. पिछले माह 17 सितंबर को जबलपुर मुख्यालय में ब्यूरो की मीटिंग की गई. मीटिंग में इंदौर से भी कुछ लोग आए थे. मीटिंग में पत्रकारों से कहा गया कि अब आपको न्यूज के साथ बिजनस और सर्कुलेशन भी देखना है. इसके बाद इसी माह 15 नंवबर को एक बार फिर मीटिंग का आयोजन जबलपुर कार्यालय में किया गया. इस मीटिंग में सभी ब्यूरो को अलग अलग बुलाकर डांट पिलाई गई. निकाले जाने की धमकी भी दी गई. मीटिंग के बाद से देखने में आ रहा है कि न सिर्फ बिजनेस बल्कि न्यूज में भी डेस्क प्रभारियों के रंग बदल गए हैं.</p>

श्रवण गर्ग के नई दुनिया से विदा होने के बाद पत्रकारों पर बिजनेस लाने के लिए दबाव दिया जाने लगा है. पिछले माह 17 सितंबर को जबलपुर मुख्यालय में ब्यूरो की मीटिंग की गई. मीटिंग में इंदौर से भी कुछ लोग आए थे. मीटिंग में पत्रकारों से कहा गया कि अब आपको न्यूज के साथ बिजनस और सर्कुलेशन भी देखना है. इसके बाद इसी माह 15 नंवबर को एक बार फिर मीटिंग का आयोजन जबलपुर कार्यालय में किया गया. इस मीटिंग में सभी ब्यूरो को अलग अलग बुलाकर डांट पिलाई गई. निकाले जाने की धमकी भी दी गई. मीटिंग के बाद से देखने में आ रहा है कि न सिर्फ बिजनेस बल्कि न्यूज में भी डेस्क प्रभारियों के रंग बदल गए हैं.

डेस्क का काम देखने वाले संजय तिवारी और अन्य लोग बेवजह फोन पर देर रात तक डांट पिलाते हैं. यदि ब्यूरो के लोग अपनी दिक्कतें जिनमें फर्नीचर, आफिस का रख-रखाव और कर्मचारियों की भारी कमी का रोना रोते हैं तो भी कोई सुनवाई नहीं होती. कहा जाता है कि काम तो करना ही पड़ेगा. लग रहा है कि जैसे जैसे मजीठिया देने के दिन पास आ रहे हैं, इस तरह के प्रेशर बनाकर जाब छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है.  पिछले साल एक पत्र भेजा गया था जिस पर सभी कर्मचारियों के हस्ताक्षर कराने का आदेश था. पत्र में लिखा था कि हमारा संस्थान हमें सही वेतनमान दे रहा है, हमें मजीठिया नहीं चाहिए. कुछ जगह से लोगों ने हस्ताक्षर कर भेज दिए लेकिन कई जगह से इसे नहीं भेजा गया. अब तो वीकली आफ भी नहीं दिया जा रहा है. कभी चुनाव का तो कभी कम संसाधन का बहाना बनाकर छुट्टी नहीं दी जा रही है.

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एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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