मीना कोटवाल-
बहुत-बहुत शुक्रिया ‘वेदजी’ क्योंकि आप भी शायद उसी भीड़ में शामिल हो गए हैं, जो मेरी जातिवाद/भेदभाव के ख़िलाफ़ की लड़ाई को कमजोर करना चाहते हैं. आपसे शिकायत क्या करूँ क्योंकि मुझे नहीं पता कि आप ये सब क्यों लिख रहे हैं लेकिन आप अपनी ही पोस्ट में ये भी लिख रहे हैं कि ‘आपसी सहमती’ हो चुकि है! चूँकि आपने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है तो मुझे यहाँ अपना वर्जन भी रखना चाहिए. आपकी पोस्ट में जो अहम बिंदु हैं उन्हीं पर अपनी बात रखूँगी और पूरे प्रूफ़ के साथ रखूँगी…
पहला बिंदु – BBC से निकाले जाने पर मैंने और मेरे पार्टनर ने आपसे संपर्क किया. पहली बात तो ये कि उस समय मैंने आपको क्या किसी को भी फ़ोन करके नहीं कहा कि कोई मेरे लिए लिखें या मेरा साथ दे. उस समय तो मैं ख़ुद लोगों का व्यवहार समझने की कोशिश कर रही थी कि कौन क्या सोचता है इस मुद्दे पर. हाँ, कुछ अनजान लोगों ने बिना मुझे जाने संपर्क किया और मेरा साथ दिया. इसमें कुछ ऐसे दोस्त पराए हो गए कुछ पराए अपने हो गए थे. लेकिन पहले मैंने किसी को ना फ़ोन किया ना संपर्क. अगर आपको लगता है कि मैंने आपसे संपर्क किया तो कृपया प्रूफ़ दिखाएं.
दूसरा बिंदु – मेरे साथ जो हुआ उस सबके लिए पहला ज़िम्मेदार व्यक्ति जो हैं, थे और रहेंगे उनके बारे में अपनी ‘मैं और बीबीसी’ में लिख चुकी हूं. बाक़ी ‘सहमती वाली मैडम’ इनके बाद आती थी. क्योंकि इन्हें मैंने उस व्यक्ति के व्यवहार के बारे में बताया था लेकिन इन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया. (इसके लिए आप ‘मैं और बीबीसी’ सीरीज भी देख सकते हैं जो मैंने बीबीसी से निकाले जाने के बाद लिखी थी.)
तीसरा बिंदु – आपने जब 2019 में रूपा झा के लिए पोस्ट लिखी थी तब मुझे पता भी नहीं था कि आप लिख रहे हैं, ना मुझसे पूछकर आपने लिखा था. हाँ आपने लिखने के बाद मुझे उसका स्क्रिनशॉट ज़रूर भेजा था, जिसे देखते ही मैंने फ़ोन भी किया था और मैसेज भी किया था कि- “ये पोस्ट सही नहीं और किसी भी महिला के लिए ये सब सही नहीं”. यही सब मैंने फ़ोन पर भी समझाने की कोशिश की थी और डिलीट करने के लिए कहा था लेकिन आप नहीं माने. (प्रूफ़ के लिए व्हाट्सएप चैट का स्क्रीनशॉट लगा रही हूँ)
चौथा बिंदु – इस मामले में जब आप पर कंप्लेंट हुई तो मेरी आपसे बात हुई थी. लेकिन उस समय आप मुझसे मेरा कॉन्ट्रैक्ट और अन्य दस्तावेज माँग रहे थे, मैंने उस समय यह इसलिए शेयर नहीं किया क्योंकि मेरे वकील ने मना कर दिया था. जैसा कि आपको पता था कि मैं इस मामले को उस समय कोर्ट में ले जाना चाहती थी. इस केस की पेटिशन मेरे पास आज भी तैयार रखी हुई है लेकिन कोविड की वजह से उस मामले में देरी होती गई और फिर मैंने द मूकनायक की शुरूआत कर दी.
लेकिन यहाँ अपनी पोस्ट में आप कह रहे हो कि दलित होने के नाते मुझे निकाला गया, इसका प्रूफ़ माँग रहे थे. शायद आप से तो मैं ये उम्मीद नहीं करती थी वेदजी कि आपको भी ये समझाना पड़े कि जातिवाद व्यवहार में होता है जिसका आसानी से कोई प्रूफ़ नहीं होता. वो आपकी नज़रों में होता है, दिमाग़ में होता है, व्यवहार में होता है. उसे पेपर पर दिखाना थोड़ा मुश्किल होता है. साथ ही कोई भी बड़े से बड़ा या छोटे से छोटा संस्थान भी आपको ये कहकर या पेपर में लिख कर नहीं निकालेगा कि आप दलित हो तो निकल जाओ. उसका एक तरीक़ा होता है जो शायद आप भी जानते हैं और आपकी पोस्ट पर समर्थन देने वाले भी जानते होंगे.
अगर आपको लगता है कि फिर भी मेरे साथ इस वजह से बीबीसी ने नहीं निकाला तो आप मेरे जैसे उन तमाम लोगों को ग़लत ठहरा रहे हो जिन्हें जाति का दंश झेलना पड़ता है. जिन्हें जाति की वजह से नौकरी नहीं मिलती और इसके बारे में देश-दुनिया के कई रिसर्च हैं जो बताते हैं कि जाति की वजह से दलित-आदिवासियों के साथ यहाँ क्या क्या होता है.
पाँचवा बिंदु – हाँ मेरा कॉन्ट्रैक्ट एक साल का ही था. लेकिन मेरे साथ लगभग नौ-दस लोगों की भर्तियाँ हुई थी तो मुझे ही कॉन्ट्रैक्ट पर क्यों रखा गया? एक साल बाद ही कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म क्यों नहीं कर दिया गया ? मेरे काम में दिक़्क़त थी तो कभी कोई नोटिस क्यों नहीं दिया गया? मेरी रिपोर्ट्स पर अवार्ड क्यों मिल रहे थे (जहां तमाम बीबीसी वालों ने भी अप्लाई किया था), मेरी रिपोर्ट्स पर लंदन से मेल के ज़रिए तारीफ़ क्यों आती थी, मेरी कई स्टोरी आइडिया मुझसे ना करवाकर दूसरों से करवाया गया और मेरे निकलने के बाद भी करवाए गए (अगर किसी को ना पता हो तो बता दूँ कि बीबीसी का एक नियम जैसा है कि जिसका स्टोरी आइडिया होता है वही करता है. हाँ अगर स्टोरी आइडिया देने वाला पत्रकार ख़ुद चाहता है कि वो कोई और करे तो बात अलग है). इसके साथ ही जब दो साल होने वाले थे तो अचानक कॉन्ट्रैक्ट क्यों ख़त्म किया गया? मुझे तो इसका कारण दिया गया कि मिस्टर झा छुट्टी से वापस आ रहे हैं इसलिए ख़त्म किया गया. जबकि वो तो इस्तीफ़ा दे चुके थे तो अगर मुझे उनकी जगह रखा गया था (जिसका लिखित में मुझे कुछ नहीं दिया गया) तो फिर मुझे परमानेंट क्यों नहीं किया गया?
छठा बिंदु – आप जब अपने केस के लिए दिल्ली आए थे जिसमें गारंटर के लिए पूछा गया तो मैंने आपको बताया था कि मैं ख़ुद उस समय पटना में रहूंगी. तब आपने बताया कि आप दिल्ली हो अपने केस के लिए. (26 जनवरी से 29 जनवरी तक पटना में NWMI के प्रोग्राम में थी और तुम इसी बीच दिल्ली आए थे, प्रूफ़ के तौर पर स्क्रीनशॉट यहाँ लगा रही हूँ)
सातवाँ बिंदु – आपकी रिसर्च में थोड़ी-सी कमी रह गई वेदजी. मेरे पार्टनर का सही नाम भी आपको नहीं पता है. अगर आपको उनसे शादी करने में भी दिक़्क़त है तो डॉ. आम्बेडकर से भी होनी चाहिए क्योंकि उन्होंने भी माई साहब से इसीलिए शादी की थी ताकि जातिवाद का विनाश हो. मेरे पार्टनर का सरनेम/जाति जिस तरह से आपने ज़ोर डालकर लिखा है उसी तरह से अगर आप मेरी और अपनी जाति भी लिखते तो बैलेंस हो जाता ना 🙂 . बाबा साहेब के मुताबिक़ हम जातिवाद का विनाश चाहते हैं और उनकी तरह ही इंटरकास्ट मैरिज की ताकि जातिवाद को खत्म कर सके.
आख़िर में कहना चाहूँगी वेदजी कि चूँकि आपने इस तरह से सोशल मीडिया पर मेरी छवि को नुक़सान पहुँचाने की कोशिश की है. आपने जो भी आरोप लगाए हैं एक पत्रकार और IIMC के छात्र होने के नाते उसका प्रमाण आपको देना चाहिए, मैंने तब आपसे रूपा झा पर किए गए आपत्तिजनक पोस्ट हटाने के लिए कहा था उसका स्क्रीनशॉट लगा रही हूँ. जिस तरह से आपने मेरी छवि धूमिल करने की कोशिश की है, एक पत्रकार के तौर पर आपको साक्ष्य प्रस्तुत करना चाहिए था.
भेदभाव के उन दिनों को याद करके फिर से मुझे यह सब लिखना पड़ा, जो मेरे लिया कठिन था. यह सब लिखना मेरे लिए चुनौतीपूर्ण इसलिए भी था क्योंकि अपनी ऊर्जा हाशिए पर खड़े लोग/समाज के लिए खर्च ना कर यहाँ लगानी पड़ रही है. आपको ये भी समझना चाहिए कि ये सिर्फ़ मेरी ख़ुद की लड़ाई नहीं है. खैर, अब मैं अपना पक्ष यहाँ समाप्त करती हूँ. पाठकों को दोनों पक्ष जानने का अधिकार है वो भी प्रूफ़ के साथ.
वैसे तो मेरे काम पर सिर्फ़ एक ही व्यक्ति को सवाल उठाने का अधिकार है/देती हूँ और वे हैं सिर्फ बाबा साहेब. क्योंकि मैंने जीवन में उन्हीं से प्रेरणा ली है. हाँ, मेरे पाठकों/श्रोताओं/दर्शकों/शुभचिंतकों के लिए ये मेरी पहली और आखिरी पोस्ट है. वैसे भी इन सब से मैं बहुत पहले ही निकल चुकी हूँ जब मैं अपने आप को ख़त्म करने जा रही थी. अब ये सब मेरे लिए आम है. इसलिए इतनी ट्रोलिंग/धमकी/गाली/चरित्रहनन के बाद भी मेरा काम नहीं रूकता और ना यह रूकेगा. मेरे भाई दादा साहेब ने मुझे बहुत पहले ही कह दिया था कि ये सब तो अभी शुरूआत है आगे-आगे देखते जाओ होता है क्या. क्योंकि इस देश में एक दलित महिला का आगे बढ़ना आसानी से पचा नहीं पाएगा यह जातिवादी और पितृसत्तात्मक समाज.
शुक्रिया, जय भीम!
मूल पोस्ट-