अमिताभ श्रीवास्तव-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना, निंदा, खिंचाई करने और/या उनका मज़ाक उड़ाने के लिए बहुत से मुद्दे हैं जिनका इस्तेमाल उनके विरोध के लिए किया जा सकता है, किया जाता है। गलत अंग्रेज़ी बोल जाना उन तमाम मुद्दों में बहुत छोटा है। यह एक अभिजातीय दृष्टि है जो ठीक नहीं। भाषाई अशुद्धियों या अस्पष्ट अभिव्यक्तियों के लिए सोनिया गांधी, राहुल गांधी, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव, जी के मूपनार, करुणानिधि का मज़ाक उड़ाया जाता रहा है।
ऐसा करने वालों में इन नेताओं के राजनीतिक विरोधियों के अलावा मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी शामिल रहा है। बीजेपी के लोग, उनके समर्थक और मीडिया के तमाम प्रतिनिधि राहुल गांधी और सोनिया गांधी की हिंदी पर फब्तियां कसते रहे हैं जिनमें महान मोदी जी भी शामिल हैं। मोदी भी बेटी पटाओ कहकर आलोचना और व्यंग्य के केंद्र में आ चुके हैं। यह उस घटिया राजनीति का हिस्सा है जिसके सूत्रधार और ध्वजावाहक स्वयं नरेंद्र मोदी हैं। कुछ समय पहले की राजनीति में इस तरह की प्रवृत्ति नहीं थी।
लालू प्रसाद यादव जब कभी लोकसभा में अपने भाषणों के बीच में अंग्रेजी बोलते थे तो अक्सर हास-परिहास की स्थिति पैदा हो जाती थी जिसका लालू समेत पक्ष-विपक्ष के सब लोग छींटाकशी और कड़वाहट के बिना आनंद लेते थे। लालू यादव की अंग्रेजी पर, उनकी टिप्पणियों पर सोमनाथ चटर्जी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे धीर-गंभीर सांसदों का मुक्त और निर्मल हास्य हमारे लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा का हिस्सा रहा है।
संसदीय लोकतंत्र की इस परंपरा को नष्ट करने में सबसे बड़ा हाथ स्वयं नरेंद्र मोदी का है जो फिलहाल अमेरिकी संसद में अपने अंग्रेजी संबोधन के कुछ हिस्सों की वजह से विरोधियों के निशाने पर हैं। मोदी ने राजनीतिक विरोधियों और असहमत आवाजों को शत्रुओं की तरह देखने की जो शुरुआत की थी, वह छिछली राजनीति उन पर भी भारी पड़ रही है। विपक्ष के नेताओं, प्रवक्ताओं और उनके समर्थकों को इससे भरसक बचना चाहिए।