नई दुनिया में स्ट्राइक…. मैनेजमेंट की छंटनी नीति के खिलाफ नईदुनिया के संपादकीय टीम के सदस्य काम छोड़ कर ऑफिस के नीचे उतरे, नारेबाजी की… दरअसल 40℅ स्टाफ को नौकरी से निकालने का मिशन लेकर आया है नया संपादक सदगुरु शरण अवस्थी। अब तक 25℅ को निकाल भी चुका है।
इंदौर। नईदुनिया (जागरण समूह) में अनेक मीडियाकर्मियों ने अपनाया कड़ा रुख। पिछले 3 दिनों से हो रही छंटनी के खिलाफ ऑफिस से नीचे उतर आए मीडियाकर्मी। हंगामा और नारेबाजी की।
नई दुनिया इंदौर में अब भी बवाल जारी है। यहां लगातार तीन दिन से कर्मचारियों को निकाला जा रहा है।
आज एक साथ ऑफ रोल वाले 7-8 कर्मचारियों को निकाल दिया गया। इससे 2-3 को छोड़ सभी कर्मचारी भड़क गए। वो सब ऑफिस से बाहर आ गए और हंगामा-नारेबाजी कर रहे हैं।
ऑफिस के कर्मचारियों का गुस्सा सहयोगी कर्मचारी जितेंद्र रिछारिया और जितेंद्र व्यास के खिलाफ भी भड़क गया है। पूरा ऑफिस एकजुट हो गया, लेकिन जितेंद्र रिछारिया ने उनका साथ नहीं दिया और वो नए आए संपादक सद्गुरु शरण अवस्थी के पिट्ठू बनकर काम करते रहे।
जितेंद्र व्यास का भी यही हाल है। संपादक इन सबसे बेफिक्र हैं। उन्होंने साफ बोल दिया कि जिसको जाना है जाए और अखबार तो निकलेगा ही। उन्होंने भोपाल एडिशन से पेज मंगवाकर इंदौर एडिशन छापने की तैयारी कर ली है।
ज्ञात हो कि पत्रकार, डेस्क कर्मचारी व अन्य कर्मचारियों को नौकरी से हटाने के विरोध में आज शाम यानी गुरुवार को नई दुनिया में भारी हंगामा हुआ और सभी कर्मचारी नई दुनिया के परिसर में आकर बैठ गए। सभी ने काम करने से मना कर दिया और मालिकों, संपादक और आला अधिकारियों को मनमानी बंद करने की बात कही। इस पर सीईओ संजय शुक्ला ने सभी को मनाने की कोशिश की। कई चाटुकार अब भी संपादक की गोद मे बैठे हुए हैं।
इसी प्रकरण पर आदित्य पांडेय फेसबुक पर लिखते हैं-
नईदुनिया ने जो सुनहरे दिन देखे थे आज उनका अंत इस तरह हुआ कि इसके मीडियाकर्मी सड़क पर उतरने को मजबूर हो गए।
बुरे दिन तभी शुरू हो चुके थे जब यह पुराने मालिकों के पास था लेकिन अब तो हद हो गई है। सारे अखबार मालिक एक हो गए हैं इसलिए बड़ी मुश्किल भी झेल पा रहे हैं लेकिन मीडिया कर्मियों का एकजुट होना मुश्किल रहा है।
आज सड़क पर आने की नौबत ही न आती यदि हंट मैन की तरह लाए गए श्रवण गर्ग की ज्यादती पर ही सब साथ खड़े हो गए होते।
जब कुछ साथियों ने मजीठिया केस लगाए तो नौकरी कर रहे कर्मी उनसे उनसे नजरें चुराते थे, साथ देने की बात तो बहुत दूर है। मालिकों की हिम्मत इसी वजह से बढ़ती रही।
आज भी कुछ लोग मालिकों के लिए खड़े हैं और बाकी सड़क पर हैं। मालिकों को शर्म नहीं आती क्योंकि वो तो उन्होंने बेच खाई है लेकिन कुछ बातों पर हमें भी शर्म आनी ही चाहिए।