सुशोभित-
मेरे प्रिय आत्मन्!
रजनीश पर मेरी किंचित प्रतीक्षित पुस्तक अब पाठकों के सम्मुख प्री-बुकिंग के लिए प्रस्तुत है!
यह किताब लिखने का निर्णय मैंने तब लिया था, जब रजनीश से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बायोग्राफ़िकल और बिब्लियोग्राफ़िकल डाटा मेरे हाथ आया। मैंने पाया कि बहुत लोगों की उस डाटा तक पहुँच नहीं है और इन अर्थों में वह एक्सक्लूसिव है, इसने मेरा उत्साह बढ़ाया। यों मैंने अपनी किशोरावस्था में रजनीश को बहुत पढ़ा था और उनके बारे में मेरी एक नपी-तुली समझ पहले से थी। पर उसकी मदद से मैं कुछ अच्छे लेख ही लिख सकता था, एक पूरी किताब उससे नहीं बनती थी।
जब मुझे जिन खोजा तिन पाइयाँ की तर्ज़ पर रजनीश से सम्बंधित वह डाटा मिला, तो अपने प्रिय आत्मन् और गुरुवर के प्रति गहरे लगाव, उत्सुकता और रुचि के चलते मैं उसे उलटने-पुलटने, खंगालने लगा। इसमें कुछ माह बीते। मैंने पाया कि मेरी पूर्व-निर्मित समझ से यह नई सूचनाएँ जुड़कर कुछ ऐसी सूझबूझ का निर्माण कर रही हैं, जो वृहत्तर पाठकों के लिए रुचिकर और उपयोगी हो सकती हैं। शुरू में इससे कुछ लेख जो तत्समय निर्मित हुए, उन्हें मैंने यहाँ शेयर किया, फिर हाथ रोक लिया और नई लिखी जा रही सामग्री को अपने तक ही सीमित रखा। क्योंकि तब तक इस उद्यम को पुस्तकाकार स्वरूप देने का निर्णय कर चुका था। तदनंतर लिखा गया समस्त अप्रकाशित लेखन इस पुस्तक में संकलित हुआ है।
रजनीश एक फ़िनॉमिना हैं। बीते पचास सालों में स्प्रिचुअलिज़्म के क्षेत्र में भारत से इतना बड़ा और प्रभावी वैश्विक ब्रांड विरला ही कोई निकला है। रजनीश के द्वारा रची गई इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ही अब एक महाकाय वित्तीय साम्राज्य बन चुकी है, जो विज़डम-लिट्रेचर की छतरी-तले देश-विदेश के बाज़ारों में घूमती रहती है और नित-नए रजनीशप्रेमियों को तैयार करती है। इसी के साथ रजनीश के बारे में कुछ प्रामाणिक जानने की भूख भी जन्म लेती है, जिसके लिए पाठक रजनीश पर अच्छी किताबों की खोज करते हैं। पर वो मिलें कहाँ?
रजनीश पर हिंदी में जो पुस्तकें लिखी गई हैं, उनमें से अधिकतर उनके शिष्यों, प्रेमियों, संन्यासियों ने लिखी हैं और उनमें मूल-स्वर अनुग्रह और अहोभाव का है। वह स्वाभाविक भी है। पर इन पंक्तियों के लेखक ने स्वयं रजनीशप्रेमी होने के बावजूद इस किताब में एक वस्तुनिष्ठ रीति अपनाई है और रजनीश के जीवन पर एक विश्लेषणात्मक विवेचना प्रस्तुत की है। लेखक ने रजनीश के विराट-विरोधाभासों का सामना करने से भी संकोच नहीं किया है। मैं कहूँगा, रजनीश को जानने, समझने के लिए यह पुस्तक केंद्रीय महत्व की वस्तु साबित होगी।
किताब सात खण्डों में विभक्त है। हर खण्ड को रजनीश की ही किसी पुस्तक के आधार पर शीर्षक दिया गया है। एक खण्ड उनके जीवन के महत्वपूर्ण शहरों पर, दूसरा उनके प्रियजनों पर, तीसरा विभिन्न महत्वपूर्ण आध्यात्मिक परम्पराओं से उनके तारतम्य पर, चौथा ध्यान-साधना पर, पाँचवाँ उनके साहित्य पर और दो अन्य खण्ड रजनीश के जीवन से जुड़े विभिन्न आयामों जैसे सेक्स, धन-सम्पदा, इस्लाम, गांधी आदि पर केंद्रित हैं। दो अन्य स्वतंत्र निबंध भी हैं, जो प्रवेश और उपसंहार का हाशिया बाँधते हैं।
साथ ही, किताब में पाठकों के लिए एक दुर्लभ उपहार है- रजनीश की हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रकाशित सभी 600 से अधिक किताबों की क्रोनोलॉजिकल सूची! इस तरह की सूची हिंदी में पहली बार प्रकाशित हो रही है!
किताब के आमुख पर रजनीश के आचार्य-रूप का चित्र है। यह किताब में व्यक्त आचार्य-भगवान द्वैत पर लेखक की निजी पसंद का द्योतक है। लेखक इस किताब के लेखन के अनुक्रम में रजनीश के प्राक्तन-स्वरूप की ओर निरंतर भावनात्मक रूप से झुकता चला गया है।
1960 के दशक में आचार्य रजनीश अपने व्याख्यानों का आरम्भ ‘मेरे प्रिय आत्मन्’ सम्बोधन से करते थे। इसी से इस पुस्तक को उसका यह शीर्षक मिला है। वे मेरे भी प्रिय आत्मन् हैं। उनके इस शिष्य की यह गुरुदक्षिणा अब पाठकों को समर्पित है!
किताब का मूल्य 299 रुपए है, किंतु प्री-बुकिंग के चरण (12 से 19 जुलाई) में इसे 17 प्रतिशत छूट के साथ 249 रुपए के ऑफ़र-मूल्य पर प्रस्तुत किया जा रहा है। प्राइम सदस्यता वालों के लिए डिलीवरी फ्री रहेगी। यह किताब दिनकर पुस्तकालय के द्वारा भी 225 रुपयों में फ्री डिलीवरी के साथ दी जा रही है। इति शुभम्!
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