भोला नाथ शर्मा-
अपने तमाम साथियों को खोने के बाद भी uppolice अग्रिम मोर्चे पर है। लखनऊ में पत्रकार चंदन सिंह की लाश तीन दिनों तक पड़ी रही। किसी कारण वश परिवार का सदस्य अंतिम संस्कार के लिए नहीं आया तो पुलिस कर्मियों ने उनका अंतिम संस्कार पूरे रीति रिवाज से कराया। सैल्यूट!
नवेद शिकोह-
हम पत्रकार वैसे तो बातें बहुत बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन हकीक़त में हम दो कौड़ी के भी नहीं हैं। लखनऊ के गोमतीनगर में हमपेशा पत्रकार चंदन प्रताप सिंह का लावारिस जनाज़ा पड़ा रहा।
पुलिस ने सूचित किया। ख़बर सब तक पंहुची लेकिन हममें से कोई नहीं पंहुचा। अंततः पुलिस ने अंतिम विदाई दी और दाह संस्कार किया। लखनऊ कमिशनरेट पुलिस को सलाम और लानत हम पर और हमारे पत्रकार संगठनों पर।
पत्रकार चंदन कुमार सिंह की कहानी क्या है-
16 साल पहले की बात है जब आज तक के संस्थापक एसपी सिंह अस्पताल में भर्ती थे तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी , वीपी सिंह, शरद पंवार , कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी समेत इस देश की तमाम हस्तियां उन्हें देखने अस्पताल पहुंची थी, जाहिर है सभी ब़ड़े पत्रकारों का वहां जमाव़ड़ा लगा रहता था । अंतिम यात्रा में भी यही स्थिति थी। कल उनके बेटे चंदन प्रताप सिंह की लखनऊ में मौत हो गई । शव का अंतिम संस्कार लावारिस में कराया गया। चूंकि एसपी की कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने भतीजे चंदन को बेटा मान लिया था।
चंदन के घर वालों ने शव लेने से मना कर दिया। घरवालों से मतलब भाई और चाचा और उनके परिवार से है।
उनका कहना है कि चंदन उनके लिए दस साल पहले ही मर चुका था। दरअसल, जब मां की मौत हुई तो चंदन बंगाल के गारुलिया कस्बे में स्थित अपने पैतृक घर नहीं गया था। अंतिम दिनों में वह बेटा चंदन और चंदन के बेटे को देखना चाहती थी, लेकिन चंदन नहीं आया। मां चंदन और बाबू -बाबू (चंदन के बेटे) कहते -कहते इस दुनिया से चलीं गईं। पिता नरेंद्र प्रताप की मौत पर भी चंदन घर नहीं गया। इससे पूरा परिवार नाराज था।
परिवार ने मान लिया कि जो माता-पिता की मौत पर घर नहीं आया, उससे किसी संबंध का क्या मतलब। चंदन यहीं तक नहीं रुका ,उसने पत्नी से संबंध तोड़ लिए। पत्नी से संबंध इसलिए टूट गया कि बीमार बच्चे की जिम्मेदारी लेने से वह बचता था। इसके बावजूद माता -पिता, पत्नी और बेटे के प्रति गैरजिम्मेदार रहनेवाले इस शख्स की मौत सदमा दे गई है। चंदन की मौत एक सबक भी दे गई है , माता-पिता, पत्नी -बच्चों और अन्य रिश्तों के प्रति जो हमारी जिम्मेदारी है, उसे कथित सफलता की दौड़ में दरकिनार नहीं कर देना चाहिए। चंदन सारी जिंदगी उन रिश्तों के प्रति भागता रहा जिनका वजूद सिर्फ कागजों में ही था। काश चंदन ने रिश्तों की अहमियत समझी होती तो आज इस तरह उसकी दुनिया से विदाई नहीं होती।
मूल खबर-
https://www.bhadas4media.com/chandan-pratap-singh-corona-death/