Akhilesh Sharma-
दैनिक जागरण ने ‘दिवाली’ बनाम ‘दीवाली’ की बेमानी बहस को समाप्त कर दिया। हिन्दी के इस सर्वाधिक लोकप्रिय समाचार पत्र ने आज ‘दीवाली’ लिखा। हिन्दी पत्रकारिता के कुछ मूर्धन्य लोग ‘दीवाली’ को गलत और ‘दिवाली’ को सही बताते आए हैं। जबकि ‘दिवाली’ से ‘दिवाला’ का भाव आता है। दीवाली और दीपावली दोनों एक जैसे दिखते हैं और दोनों का ही अर्थ दीपों की पंक्तियाँ है।
शंभूनाथ शुक्ल–
दीपावली यानी दीपकों की लड़ी। इसी का देशज रूप है दीवाली।
Himanshu Mishra–
दिवाला के साथ दिवा का भी भाव है
Yogesh Kumar–
हिंदी भाषा की 10वीं की पुस्तक में शुद्ध और अशुद्ध शब्द सिखाए जाते हैं । इस तरह गलत हिंदी को प्रचलित करने वाले इन विद्वानों ने यदि उसे पढ़ लिया होता तो भाषा की अन्य कई अशुद्धियां जैसे अध्यक्ष के महिला होने पर उसे अध्यक्षा कहना, अनेक को अनेकों लिखना इत्यादि का प्रचलन यूं आम ना होता।
Krishna Kumar Sharma-
दीवाली तो समृद्धि का त्योहार है । उसे दिवाली लिखकर दिवाला से संबद्ध करना एकदम गलत है । अखबार ने सही लिखा – दीवाली