प्रभात रंजन-
यह कुमार गंधर्व की जन्मशताब्दी का साल है और यह इस साल उनके ऊपर मेरे जानते सबसे अच्छी पेशकश है। रज़ा फाउंडेशन की पत्रिका ‘स्वर मुद्रा’ ने दो खंडों में कुमार गंधर्व पर एकाग्र अंक निकाला है।
ग्यारह सौ से अधिक पन्नों की सामग्री।
हिंदी, अंग्रेज़ी और मराठी भाषाओं में उनके ऊपर उपलब्ध बहुलांश इस पत्रिका में है। संपादन किया है पीयूष दईया ने। इसमें अनेक लेख समकालीन लेखकों के भी हैं जो इस पत्रिका की उपलब्धि जैसी है।
कुमार गंधर्व पर अनामिका जी, मनीषा कुलश्रेष्ठ, प्रत्यक्षा, गीत चतुर्वेदी, रश्मि भारद्वाज, बोधिसत्व, अंबर पांडेय जैसे प्रिय समकालीनों को पढ़ना-समझना उत्सुकता से भरा रहा। इनके अलावा भी अनेक समकालीन हैं लेकिन ग्यारह सौ से अधिक पन्नों की सामग्री को इतने कम समय में पढ़कर या बिना पढ़े लिख पाना एक बेईमानी होगी। एक श्रमपूर्वक तैयार किए गये यादगार अंक के साथ।
लेकिन दो लेखों का विशेष उल्लेख करना चाहूँगा- एक युवा कवयित्री अनामिका अनु का लेख जिसमें उन्होंने बहुत स्पष्टता से कुमार गंधर्व की गायकी की विशेषताओं को बताया है और दूसरा लेख है युवा कवि आस्तीक वाजपेयी का। कितने साहस और तर्क के साथ इस युवा कवि ने कुमार गंधर्व की गायकी की सीमाओं के बारे में लिखा है पढ़ने लायक़ है। इससे पहले मैने कुमार गंधर्व की गायकी पर इस दिशा में कुछ नहीं पढ़ा था।
संग्रहणीय अंक है। सबसे ज़रूरी बात क़ीमत की तो वह अप्रत्याशित रूप से बहुत कम है। 200-200 के दोनों अंक। छपाई थॉमसन प्रेस की, आवरण, संयोजन हमेशा की तरह सुंदर। पीयूष दईया के संपादन की एक विशेषता यह भी रही है।
प्रकाशन रज़ा न्यास का है और वितरक हैं सेतु प्रकाशन।
लेकिन एक बात है। आपको हवाई जहाज़ से यात्रा करनी हो तो दोनों अंक एक साथ नहीं ले जा सकते!