जगमोहन को डीजीपी बनाना साम्प्रदायिक साजिश का हिस्सा – रिहाई मंच

लखनऊ : रिहाई मंच ने फैजाबाद सांप्रदायिक हिंसा के दौरान अपनी जिम्मेदारी न निभाने के चलते पद से हटा दिए गए आईपीएस अधिकारी जगमोहन यादव को डीजीपी बनाए जाने को सूबे में सांप्रदायिक व जातीय हिंसा को बढ़ावा देने और आगामी पंचायत चुनावों में सपा के लंपट तत्वों की जीत सुनिश्चित करने की योजना का हिस्सा बताया है।

Vicious Conspiracy of the Sangh Parivar to fan Communal Tensions in the North-East Delhi

The thumping electoral victory of Narendra Modi led BJP in this Lok Sabha polls has undoubtedly given fresh lease of life to the communal fascist forces in India. Needless to mention that this fascist machinery remains at work even when not in power. However, of late, the fascist brigade, at the helm of which is Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS), has tried to enforce its agenda of polarisation along communal lines throughout the country, both intensively as well as extensively. Be it the Trilokpuri riots in Delhi or the frenzy surrounding the all concocted ‘love jihad’; burning down of a church in North East Delhi or the recent ‘ghar wapasi’ (conversion) campaigns, the fascist engine has been running incessantly and spewing the communal venom. The latest in line of their attacks is their unwarrantable as well as unconstitutional claim over public spaces.

मोदी की तरह मुलायम ने भी मुस्लिम विहीन गांव गोद लिया!

लखनऊ : मुलायम सिहं यादव द्वारा आजमगढ़ के मुस्लिम आबादी विहीन तमौली गांव को गोद लिए जाने पर रिहाई मंच ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मुलायम सिंह भी मोदी की राह पर चल रहे है। मंच ने आरोप लगाते हुए कहा कि आरएसएस के सर्वे के आधार पर मोदी ने जिस तरह से वाराणसी के मुस्लिम आबादी विहीन जयापुर गांव को गोद लिया ठीक उसी सर्वे पर मुलायम ने भी मुस्लिम विहीन आबादी वाले गांव को ही चुना।

Secular राजदीप सरदेसाई को Communal मनोहर पर्रिकर पर प्यार आ गया!

Dilip C Mandal : सेकुलर और कम्युनल में क्या रखा है? राजदीप सरदेसाई कट्टर Secular गौड़ सारस्वत ब्राह्मण (GSB) हैं और मनोहर पर्रिकर कट्टर Communal गौड़ सारस्वत ब्राह्मण (GSB). और फिर प्राइड यानी गर्व का क्या है? हो जाता है. राजदीप को पर्रिकर और प्रभु पर गर्व हो जाता है. सारस्वत को सारस्वत पर गर्व हो जाता है. सेकुलर को कम्युनल पर दुलार आ जाता है. वैसे, अलग से लिखने की क्या जरूरत है कि दोनों टैलेंटेड हैं. वह तो स्वयंसिद्ध है. राजदीप भी कोई कम टैलेंटेड नहीं हैं.

हमारे समाज में सांप्रदायिकता निहित है, जो बस किसी एक चिंगारी की बाट जोहती है

चुनाव आए और गए पर सवाल उन विवादास्पद सवालों का है जिनसे ‘हेट स्पीच’ के नाम से हम परिचित होते है। हेट स्पीच से हमारा वास्ता सिर्फ चुनावों में ही नहीं होता पर यह जरुर है कि चुनावों के दरम्यान ही उनका मापन होता है कि वो हेट स्पीच के दायरे में है। हम यहां इस पर कतई नहीं बात करेंगे कि ऐसे मामलों में क्या कार्रवाई हुई? पर इस पर जरुर बात करेंगे कि उस हेट स्पीच का हम पर क्या असर हुआ, वहीं उनके बोलने वालों की प्रवृत्ति में क्या कोई बदलाव आया?