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उत्तर प्रदेश

अमिताभ ठाकुर आईजी बन कर पूरी ठसक के साथ अपने आफिस में बैठे हैं

लखनऊ : मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान केवल सात दिन की तैनाती पाये वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चंद्र दुबे को दंगा न सम्‍भाल पाने को लेकर शासन ने दोषी ठहराया। दुबे को इस आरोप में मुजफ्फरनगर से हटाकर लखनऊ में पुलिस महानिदेशक कार्यालय में सम्‍बद्ध कर दिया गया और इसके 15 दिन बाद उन्‍हें निलम्बित भी कर दिया गया। अब हकीकत यह देखिये। सुभाष च्रंद्र दुबे की कार्यशैली बेदाग रही है। दुबे जहां भी रहे, अपनी कुशलता के झंडे गाड़ दिया। दंगा शुरू होने पर दुबे को शासन ने खासतौर पर सहारनपुर भेजा था। तब तक मुजफ्फरनगर में अपर महानिदेशक कानून-व्‍यवस्‍था, आईजी, डीआईजी समेत कई अधिकारी भी तैनात थे, ताकि वे अपनी निगरानी में दंगा सम्‍भालने की कोशिश करें। लेकिन प्रमुख गृह सचिव ने इसी बीच सात दिन की तैनाती के बाद ही दुबे को डीजीपी कार्यालय में अटैच कर दिया था।

कोई सहज बुद्धि का चपरासी या बाबू भी आसानी से समझ सकता है कि जब जहां एडीजी, आईजी, डीआईजी से लेकर भारी पुलिस बल मौजूद हो, ऐसे में एसएसपी जैसा अदना अफसर की क्‍या औकात होगी। लेकिन चूंकि इसके पहले प्रमुख सचिव गृह आरएन श्रीवास्‍तव से काफी नाराजगी हो गयी थी, इललिए आरएन श्रीवास्‍तव ने दुबे के गर्दन पर सस्‍पेंशन की आरी रख दी। दुबे पर श्रीवास्‍तव इस लिए खार खाये बैठे थे, क्‍यों कि उनके एक खासमखास आदमी और माध्‍यमिक शिक्षा के एक बड़े अफसर को दुबे ने 85 लाख रूपयों की नकदी के साथ गिरफ्तार किया था। यह रकम इंट्रेंस की घूस के तौर पर थी। लेकिन दुबे अडिग रहे, और मुजफ्फरनगर दंगे में उन पर काम लगा दिया गया।

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लेकिन आज तक दुबे पर लगे आरोपों की फाइल देखने की जरूरत न तो मौजूदा प्रुमुख गृह सचिव देवाशीष पाण्‍डेय ने की, या फिर मुख्‍य सचिव आलोक रंजन ने। जानकार बताते हैं कि दुबे की यह फाइल देखते ही सच साफ दिख जाता है। इसके लिए आईएएस  बनने की जरूरत नहीं। ठीक यही हालत थी अमिताभ ठाकुर की। आठ साल पहले ठाकुर ने सरकारों की खाल खींचनी शुरू कर दिया। वजह थी, ठाकुर पर प्रताड़ना। ठाकुर का आईआईएम में दाखिला मिला, लेकिन शासन ने उसे छुट्टी नहीं दी। बोले, यह अराजकता है। अमिताभ ने उस पर ऐतराज किया तो शासन ने उसे औकात में लाने की साजिशें बुन दीं। पहले ढक्‍कन पोस्टिंग लगा दी।

यह भी सहन किया ठाकुर ने, लेकिन अपनी आवाज उठाये रखा। नतीजा यह हुआ कि शासन ने निलम्बित कर दिया। इतना ही नहीं, निलम्‍बन की तयशुदा समयसीमा खत्‍म होने के बावजूद निलम्‍बन खत्‍म नहीं किया। ठाकुर ने इसके लिए अदालत और सेंट्रल ट्रब्‍युनल पर अर्जी लगायी। आज ठाकुर आईजी बन कर अपनी पूरी ठसक के साथ अपने आफिस में बैठ रहे हैं। एक वरिष्‍ठ अधिकारी ने अमिताभ के इस प्रकरण पर बहुत जोरदार चुटकी ली। बोले:- अब चाहे कुछ भी हो जाए, सरकारों और आला अफसरों की संवेदनहीनता व प्रताड़ना के चलते अमिताभ ठाकुर में प्रवेश कर चुका अदालती कीड़ा वापस नहीं जाने का।

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सच भी है। आपको अगर इस लोकतंत्र में सत्ता सिस्टम से टकराना है तो राहत फिलहाल अदालत और मीडिया के माध्यम से ही मिल सकती है।

लेखक कुमार सौवीर लखनऊ के वरिष्ठ और बेबाक पत्रकार हैं.

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