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अपने मीडियाकर्मियों को ठेकेदार का आदमी बताकर बाहर निकाल रहा है अमर उजाला प्रबंधन!

अमर उजाला ने मजीठिया के डर से कर्मचारियों को ठेकेदार का कर्मचारी बताकर बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है। अभी तक यह खेल पीटीएस डिपार्टमेंट में शुरू किया गया है, लेकिन विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि यह नियम जल्द ही संपादकीय विभाग में भी लागू कर दिया जाएगा। पिछले साल मई महीने में मजीठिया वेज बोर्ड का लेटर बांटने के बाद अखबार प्रबंधन कुछ ऐसी नीतियां अपना रहा है ताकि उसे मजीठिया वेज बोर्ड के नाम पर धेला भी न देना पड़े। कुछ महीने पहले माहेश्वरी परिवार के खासमखास बताए जाने वाले और मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब किताब करने वाले एचआर प्रमुख को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।

<p>अमर उजाला ने मजीठिया के डर से कर्मचारियों को ठेकेदार का कर्मचारी बताकर बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है। अभी तक यह खेल पीटीएस डिपार्टमेंट में शुरू किया गया है, लेकिन विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि यह नियम जल्द ही संपादकीय विभाग में भी लागू कर दिया जाएगा। पिछले साल मई महीने में मजीठिया वेज बोर्ड का लेटर बांटने के बाद अखबार प्रबंधन कुछ ऐसी नीतियां अपना रहा है ताकि उसे मजीठिया वेज बोर्ड के नाम पर धेला भी न देना पड़े। कुछ महीने पहले माहेश्वरी परिवार के खासमखास बताए जाने वाले और मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब किताब करने वाले एचआर प्रमुख को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।</p>

अमर उजाला ने मजीठिया के डर से कर्मचारियों को ठेकेदार का कर्मचारी बताकर बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है। अभी तक यह खेल पीटीएस डिपार्टमेंट में शुरू किया गया है, लेकिन विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि यह नियम जल्द ही संपादकीय विभाग में भी लागू कर दिया जाएगा। पिछले साल मई महीने में मजीठिया वेज बोर्ड का लेटर बांटने के बाद अखबार प्रबंधन कुछ ऐसी नीतियां अपना रहा है ताकि उसे मजीठिया वेज बोर्ड के नाम पर धेला भी न देना पड़े। कुछ महीने पहले माहेश्वरी परिवार के खासमखास बताए जाने वाले और मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब किताब करने वाले एचआर प्रमुख को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है।

अब जब ऊपर बैठे बड़े-बड़े अफसरों को नहीं बख्शा जा रहा है तो अपने कर्मचारियों को ठेकेदार का बताने में कितना समय लगेगा। अखबार में बड़े से ज्यादा छोटे कर्मचारी होते हैं, जिनके सिर पर विज्ञापन टेंडर बनाने से लेकर तमाम काम होते हैं और जब गाज गिरने की बारी आती है तो सबसे पहले उन्हें ही बलि का बकरा बनाया जाता है। नाइट अलाउंस का लेटर देकर आठ महीने तक चुप रहने के बाद कुछ लोगों को क्राइटेरिया में लिया गया और कुछ को नहीं। इसमें वे निकाले गए कर्मचारी भी शामिल हैं, जिन्हें यह कहकर भेज दिया गया कि अब आप की जरूरत नहीं है। ऐसे में उनके बच्चों और परिवार के बारे में सोचो मित्रों, जो दूरदराज से आकर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। उनके मां-बाप और पत्नी व बच्चों से पूछिए जो घर में यह कहकर आए थे कि आफिस जा रहे हैं और दो घंटे में ही अपना भरा हुआ टिफिन लेकर वापस लौटे तो ऐसा लगा कि उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई, जो उन पर आश्रित हैं। आखिर कब तक ऐसे बलिदान देने पड़ेंगे।

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एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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